चंडीगढ़:20 अक्टूबर:- आरके विक्रमा शर्मा+अनिल शारदा +करण शर्मा प्रस्तुति:–*प्राचीन काल में जातियाँ नहीं होती थीं। उनमें वर्ण होते थे।
**प्राचीन भारतीय समाज ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र वर्णों में विभाजित था।*
भारतवर्ष में प्राचीन हिंदू में लोगों को उनके द्वारा किये जाने वाले कार्य के अनुसार अलग-अलग वर्गों में रखा गया था। विभिन्न प्रकार के कार्यों के अनुसार बने ऐसे समुदायों को जाति या वर्ण कहा जाता
सनातन ग्रंथों ने सिद्धांत रूप में समाज को चार वर्णों में वर्गीकृत किया:
ब्राह्मण : पुजारी, विद्वान और शिक्षक।
क्षत्रिय : शासक, योद्धा, सैनिक और प्रशासक।
वैश्य : कृषिविद, पशुपालक और व्यापारी।
शूद्र: सेवा प्रदाता।
पारम्परिक रूप से शासक व सैनिक क्षत्रिय वर्ग का हिस्सा होते थे, जिनका कार्य युद्ध काल में समाज की रक्षा हेतु युद्ध करना व शांति काल में सुशासन प्रदान करना था।
गीता में श्री क़्रिशन ने कहा है-
शौर्यं तेजो धृतिर्दाक्ष्यं युद्धे चाप्यपलायनम् ।
दानमीश्वरभावश्च क्षात्रं कर्म स्वभावजम् ॥१८-४३ ॥
(वीरता, तेज, धैर्य, दक्षता, युद्ध से पलायन न करना, दान, और ईश्वरभाव (राजा या स्वामी होने का भाव) – ये क्षत्रिय के स्वाभाविक कर्म हैं।)
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*दीवान हेमंत किंगर (कश्यप गोत्र,क्षत्रिय,सूर्यवंशी)* ने यह जानकारी अल्फा न्यूज़ इंडिया के माध्यम से लोगों में व्याप्त भ्रांतियों को दूर करने की मंशा से प्रेषित की है।
*नोट: हिन्दी में ख़त्री ओर संस्कृत में (क्षत्रिय) दोनों एक ही है*