चरवाहे ने मुख्य चुनाव आयुक्त को दिखाया ज्ञान का असली प्रकाश स्रोत

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चंडीगढ़:- 13 जून :-आरके विक्रम शर्मा प्रस्तुति:- सही और सारगर्भित ज्ञान वही है। जो सामने वाले ज्ञानवान को भी अपने ज्ञान की कसौटी को पर रखने की चुनौती दे डाली किसी भी विक्ड और विषम घड़ी में जो निर्णय किसी की जान शान किसी भी तरह का हित करें वही ज्ञान है और उसी ज्ञान का अर्जित किए का फायदा है जिससे दूसरों का कल्याण हो। यह बात पंडित रामकृष्ण शर्मा धर्म प्रज्ञ ने आज के संदर्भ में ज्ञान का पिटारा लिए घूमते, ज्ञान के ठेकेदारों को सम्मुख रखते हुए, अल्फा न्यूज़ इंडिया के साथ संक्षिप्त बातचीत के चलते कहीं।

टी एन शेषन मुख्य चुनाव आयुक्त थे तब एक बार वे उत्तर प्रदेश की यात्रा पर गए। उनके साथ उनकी पत्नी भी थीं। रास्ते में एक बाग के पास वे लोग रुके। बाग के पेड़ पर बया पक्षियों के घोसले थे। *उनकी पत्नी ने कहा दो घोसले मंगवा दीजिए मैं इन्हें घर की सज्जा के लिए ले चलूंगी। उन्होंने साथ चल रहे पुलिस वालों से घोसला लाने के लिए कहा।*

पुलिस वाले वहीं पास में गाय चरा रहे एक बालक से पेड़ पर चढ़कर घोसला लाने के बदले दस रुपये देने की बात कहे, लेकिन वह लड़का घोसला तोड़ कर लाने के लिए तैयार नहीं हुआ। टी एन शेषन उसे दस की जगह पचास रुपए देने की बात कही फिर भी वह लड़का तैयार नहीं हुआ। *उसने शेषन से कहा साहब जी! घोसले में चिड़िया के बच्चे हैं शाम को जब वह भोजन लेकर आएगी तब अपने बच्चों को न देख कर बहुत दुखी होगी, इसलिए आप चाहे जितना पैसा दें मैं घोसला नहीं तोड़ सकता।*

इस घटना के बाद टी.एन. शेषन को आजीवन यह ग्लानि रही कि *जो एक चरवाहा बालक सोच सका और उसके अन्दर जैसी संवेदनशीलता थी, इतने पढ़े-लिखे और आईएएस होने के बाद भी वे वह बात क्यों नहीं सोच सके, उनके अन्दर वह संवेदना क्यों नहीं उत्पन्न हुई? शिक्षित कौन हुआ ? मैं या वो बालक ?*

*उन्होंने कहा उस छोटे बालक के सामने मेरा पद और मेरा आईएएस होना गायब हो गया। मैं उसके सामने एक सरसों के बीज के समान हो गया। शिक्षा, पद और सामाजिक स्थिति मानवता के मापदण्ड नहीं हैं।*

*प्रकृति को जानना ही ज्ञान है। बहुत सी सूचनाओं के संग्रह को ज्ञान नहीं कहा जा सकता है। जीवन तभी आनंददायक होता है जब आपकी शिक्षा से ज्ञान, संवेदना और बुद्धिमत्ता प्रकट हो।*

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