चंडीगढ़:- 15 फरवरी:- आरके विक्रमा शर्मा/ करण शर्मा:– हिंदुस्तान की सरजमीं पर जन्मे मिर्जा गालिब की शायरी का मुल्क भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के कोने कोने में डंका बजता है!! हर कोई गालिब को गुनगुनाता है! आज मिर्जा गालिब की 220वीं पुण्यतिथि सालगिरह है। कृतज्ञ राष्ट्र अपने हिंदुस्तानी मुसलमान शायर को याद फरमाते हुए श्रद्धा सुमन भेंट करता है।
अल्फा न्यूज़ इंडिया देश के और उर्दू के महबूब शायर मिर्जा गालिब को याद फरमाते हुए उनके शेयर उनके लाखों चाहने वालों की खिदमत में पेश करते हैं।।।।
“तकदीर पर यूं नाज मत कर ऐ गालिब
बस कफन हमारा जरा सा मेला था।
वरना शायर हम भी कुछ कम नहीं थे”।।
और यह भी गालिब ने ही फरमाया है:—–
“मुझसे कहती है तेरे साथ रहूंगी सदा
ग़ालिब बहुत प्यार करती है मुझसे उदासी मेरी”।।।
इश्क पर भी ग़लिब खूब फरमाते हैं——
“इश्क पर जोर नहीं है
यह वो आतिश ग़ालिब
जो लगाए न लगे और बुझाए ना बने”।।।
जिंदगी के बारे मिर्जा गालिब फरमाते हैं
कैद ए हयात ओ बंद ए गम असल में दोनों एक हैं। मौत से पहले आदमी गम से निजात पाए क्यों।।
मिर्जा गालिब का जन्म 27 दिसंबर 1797 को आगरा के काला महल में ग़ालिब परिवार में हुआ था। और मिर्जा गालिब साहब आगरा में 15 फरवरी 1869 को फौत हुए थे। उनकी बीवी का नाम उमराव बेगम का जीवनकाल 1810 से 1869 रहा है।।