कलम का कलंदर और शब्दों का समंदर था प्रेमचंद ; डॉ निशा भार्गव
चंडीगढ़ : `31 जुलाई ; अल्फ़ा न्यूज इंडिया / आरके शर्मा विक्रमा /मोनिका शर्मा ;——- एमसीएम डीएवी कॉलेज फॉर वीमेन चंडीगढ़ के हिंदी विभाग की ओर से विश्वसाहित्य में अत्यंत लोकप्रिय उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में एक समारोह आयोजित किया गया। इसका मुख्य आकर्षण प्रेमचंद के सर्वाधिक चर्चित उपन्यास गोदान का प्रदर्शन था जिसमेंं किसान की समस्याओं, नव-उपनिवेशवाद एवं महाजनी सभ्यता को रेखांकित किया गया है। इस अवसर पर साहित्य अध्येता जंग बहादुर गोयल (सेवानिवृत प्रशासनिक अधिकारी) का वक्तव्य भी श्रोताओं के लिए अत्यंत ज्ञान वर्धक रहा।
उनके अनुसार किसान, स्त्री और दलितों को सामंती एवं पूंजीवादी व्यवस्था के शोषण एवं उत्पीडऩ से मुक्ति दिलाने के लिए प्रेमचंद की कलम निरंतर सक्रिय रही। आधार प्रकाशन की ओर से कॉलेज में हिंदी की साहित्यिक पुस्तकों की प्रदर्शनी भी छात्राओं को आकर्षित करने में सफल हुई। कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ. निशा भार्गव ने कॉलेज की अपनी समृद्ध साहित्य परंपरा को जीवित रखने के हिंदी विभाग के इस प्रयास की सराहना की। उन्होंने कहा कि कॉलेज के हिंदी विभाग की साहित्यिक पहलों के कारण, हिंदी का भविष्य निश्चित रूप से उज्जवल है। मुंशी जी ने अपनी साहित्य सृजना राष्ट्रीय भाषा हिंदी और उर्दू में रची !
एमसीएम डीएवी की प्रिंसिपल डॉ. निशा भार्गव ने कॉलेज की छात्राओं को राष्ट्रीय भाषा हिंदी करने और भाषा को नाते अपनाने के लिए खूब प्रेरित किया ! उन्हों ने आगे कहा कि हिंदी दुनिया में सब से अधिक बोली जाने वाली समृद्ध भाषाओँ में अग्रणी पंक्ति में शुमार है ! और ये ही दुनिया की वह भाषा है जिसमे अनगिनत भाषाओँ से शब्दों के जखीरे भरे पड़े हैं ! हिंदी समूचे राष्ट्र को एक धागे में पिरोने में कामयाब है ! मुंशी प्रेमचंद [धनपतराय श्रीवास्तव] ने से हिंदी माध्यम में धर्म कर्म समाज अर्थ जातिगत भेदभाव और सामाजिक पारिवारिक कुरीतिओं पर लेखिनी दौड़ाई ! गौदान और पूस की रात, ईदगाह और ठाकुर का कुआं ,सेवासदन, सज्जनता का दंड, परीक्षा दो बैलों की कथा व् कहानियों संग्रह मानसरोवर और निर्मला को भला कौन भूल सकता है !
प्रिंसिपल डॉ. निशा भार्गव ने सब उपस्थित अध्यापकगणों सहित छात्राओं को मुंशी प्रेम चाँद जी के जीवन के बारे बताते हुए कहा कि उपन्यासकार मुंशी प्रेम चंद जी का जन्म यूपी के जिला बनारस के लमही ग्राम में 31 जुलाई 1880 और देहावसान 8 अक्टूबर 1980 को वाराणसी में हुआ था ! आपने तकरीबन 250 कहानियां और तकरीबन 12 उपन्यास [नॉवल] लिखे ! मुंशी जी ने महीना भर खून पसीना एक करके कमाऐ गए मेहनताना को ” मासिक वेतन पूर्णिमा का चन्द्रमा माक़िफ़ है जो माह में एक बार दिखाई देता पर घटते घटते कब खत्म होजाता कोई न जाने ! 31 जुलाई 1980 मुंशी प्रेमचदं की जन्मशती के सुअवसर पर भारतसरकार ने डाक टिकट भी रिलीज करके कृतज्ञ राष्ट्र की और से सम्मानीय श्रद्धांजलि भेंट की थी !