थायरायड का कुदरती इलाज 101% है कारगर : नैचुरोपैथ कौशल

Loading

चंडीगढ़:30 जुलाई:- अल्फा न्यूज़ इंडिया डेस्क:–
*👉🏿 थायरायड की समस्या👈*
1⃣👉🏿 थायरायड की बीमारी
2⃣👉🏿 विभिन्न प्रकार के थायरॉइड रोग
3⃣👉🏿 थायरायड के रोगों में उपचार विधि
4⃣👉🏿 आसान घरेलू प्रयोग
5⃣👉🏿 योग द्वारा थायरॉइड का उपचार
*👉 हयपोथायरॉइडिज़म (Hypothyroidism) की बीमारी* ज़्यादातर स्त्रीयों में पाई जाती है जिससे कि उनका आंतरिक चयपचय (Metabolism) औसत से काफ़ी कम हो जाता है। कुदरती याआयुर्वेदीय चिकित्सा द्वारा इस रोग का निवारण भली-भाँति प्रकार किया जा सकता है। चयपचय की क्रिया को नियंत्रित करना थायराइड ग्रंथि का कार्य होता है और इसके द्वारा ही हम शरीर में लिया गया भोजन, जल और प्राण वायु कोशिकायों में सही रूप से चयपचय होकर उर्जा का स्रोत बनता है। छोटी अवशेषों में बाँटने के उपरांत उनका पुनर्संगठित होकर नवनिर्माण करना भी इस ग्रंथि के द्वारा स्रावित हॉर्मोन से संतुलित किया जाता है। जिस प्रक्रिया द्वारा शरीर में सुगठित तत्वों का निर्माण होता है उसे एनाबोलीज़म या चय कहा जाता है जबकि विघटन करने वाली प्रक्रिया को कॅटबॉलिज़म या पचय कहा जाता है। इन दोनो प्रक्रियायों के मिलन से उत्पन्न कार्य को मेटाबोलीज़म (Metabolism) या चयपचय कहा जाता है।

👉 जब व्यक्ति पूर्णतयः विश्राम की स्थिति में होता है तब आधारिक चयपचायी मान (Basal Metabolic Rate)- BMR की दर को लेना संभव है। यह व्यक्ति की स्वास्थ का माप है और यह प्राणवायु में प्रयोग हुई ऑक्सिजन एवं निकली हुई कार्बन–डाई ऑक्साइड (CO-2) के दर को निर्धारित करता है। अन्तःस्राविय ग्रंथियों के अच्छी तरह से चलने पर रक्त या लिंफ में रसायनिक परिवर्तन होते हैं जिसमें मुख्य अंतः स्राविय ग्रंथियों का विशेष कार्य समन्वित है। थायरॉइड नामक ग्रंथि का कार्य इनमें सबसे महत्वपूर्ण है।
यह गले के अग्र भाग में मौजूद होता है और इससे थायरॉक्सीन (thyroxine) नामक महत्वपूर्ण हॉर्मोन का स्राव होता है।
जब यह ग्रंथि ठीक से कार्य न करती हो, जैसे कि मयक्सेडीमा (Myxedema) में या फिर क्रीटीनिज़म (Cretinism) नामक अवस्था में।
जब इस ग्रंथि से थीरोक्सिन हॉर्मोन अधिकता में बनने लगे उसे एक्शोफ्ताल्मीक गायटर (Exophthalmic goitre) या ग्रेव के रोग के नाम से जान जाता है।

*👉विभिन्न प्रकार के थायरॉइड रोग👇*
1⃣👉 हाइपरथायरॉइदिस्म (Hyperthyroidism): इस अवस्था में व्यक्ति के शरीर में थिरॉक्साइन की स्राव आवश्यकता से बहुत अधिक होता है।
यह 30 से 40 वर्ष की उमर के व्यक्तियों में अधिक पाया जाता है।
पीड़ित व्यक्ति के शरीर में कंपन, चिड़चिड़ापन, घबराहट और इस प्रकार के लक्षण देखने को मिलते हैं।
बार-बार होने वाले दस्त, गर्मी का अधिक लगना, मासिक धर्म में अनियमितता और कभी-कभार आँखों की पुतलियों का बाहर को निकलना।
ऐसे लोग प्रायः जब बाहर निकलते हैं तो खुद को अजीबोगरीब स्थिति में पाते हैं जहाँ पर वे बात करना चाहते हैं पर स्वयं को शक्तिहीन महसूस करते हैं।
वे ज़्यादातर चिड़े हुए रहते हैं और छोटी सी बात आर अत्यधिक क्रुद्ध हो जाते हैं।

2⃣👉 हाइपोथायरिडिसम (Hyperthyroidism): इस स्थिति में में थायरॉक्साइन का स्राव सामान्य से कम पाया जाता है।
ज़्यादातर रोगी उस कगार पर पाए जाते हैं जिसमें जाँच द्वारा पता किया जान मुश्किल होता है।
परंतु इनके कारण रोगी के शरीर में प्रायः अप्रत्याशित रूप से थकावट, कमज़ोरी और मुख्य कार्यों में अवरोध पाया जाता है।

*👉🏿कुदरती/आयुर्वेदिक उपचार-*
1⃣👉 लंबी अवधि में मयक्षेदेमा नमक बीमारी का जन्म होता है जिससे आँखों में सूजन, त्वचा और पिंदलियों और शरीर के काई अंगों में सूजन पाई जाती है. त्वचा का सूखापन, पीलापन, भवों के बालों का टूटना, शरीर के तापमान का कम रहना, हृदय की धड़कन का कम होना, भूख का कम लगना, कब्ज़ीयत और रक्ताल्पता (अनेमिया)।

*👉 थायरायड के रोगों में उपचार विधि-*
1⃣👉 महर्षि चरक के अनुसार थायरॉइड का रोग अधिक मात्रा में दूध पीने वालों को नही होता. इसके अलावा साबुत मूँग, पुराने चावल, जौ, सफेद चने, खीरा, गन्ने का जूस और दुग्ध पदार्थों का सेवन करना भी अत्यंत आवश्यक है।
इसके विपरीत खट्टे और भारी पदार्थों का सेवन नही करना चाहिए।

2⃣👉 कचनार का प्रयोग इस ग्रंथि के अच्छी प्रकार से सक्रिय रहने के लिए आवश्यक है।
इसके अलावा, ब्राहमी, गुग्गूल, शिलाजीत भी लाभदायक है।
गोक्शुर और पुनर्नव भी इस रोग में फ़ायदा देते हैं।

*👉 आसान घरेलू प्रयोग-*
11 से 22 ग्राम जलकुंभी का पेस्ट बनाकर थायरॉइड के क्षेत्र में लगाने से इस स्थिति में लाभ मिलता है।
यह आयोडीन की कमी को पूरा करता है।
यह तो सर्वविदित हैं की नारियल तेल में पाए जाने वाले फैटी एसिडस से बहुत से लाभ मिलते हैं। यह शरीर के अंगों, मस्तिष्क को विशिष्ट लाभ प्रदान करने में सहायक है।
और यह हयपोथेरॉडिज़ॅम नामक रोग को ठीक करने में सहायक है।

*👉 योग द्वारा थायरॉइड ग्रंथि के रोगों का उपचार-👇*
1⃣👉 सर्वांगसन करने से थायरॉइड ग्रंथि के क्षेत्र में दबाव पड़ता है और इससे थायरॉकसीन के स्राव में सुधार पाया जाता है।
इसमें शरीर के स्थाई पड़े हुए अंतः स्रावीय ग्रंथि तंत्र पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
परंतु अत्यंत गंभीर थायरो-टोक्सीकोसिस (Thyrotoxicosis), शारीरिक कमज़ोरी तथा जहाँ पर थायरॉइड बहुत बढ़ गया हो।
उस स्थिति में इन आसनों को नही करना चाहिए. अपितु पहले चिकित्सकीय परामर्श के अनुसार रोग का निवारण करें।
परंतु सूर्य नमस्कार, पवन्मुक्तासन जो की मस्तिष्क और गर्दन के क्षेत्र में अधिक प्रभावशाली हों, उनका अभ्यास होना चाहिए। सुप्त्वाज्रासन, योग मुद्रा और पीछे की और झुक के करने वाले आसन अत्यंत लाभदायक हैं।
2⃣👉 इस रोग में उज्जयी प्राणायाम लाभदायक है।
यह गले के क्षेत्र में प्रभावशाली होता है।
यह हायपोथॅलमस और दिमाग़ के निचले क्षेत्र को उर्जावान बनाकर सीधे-सीधे लाभ देता है और चयपचय की क्रिया को भी नियंत्रित करता है।
साथ ही नाड़ी शोधन प्राणायाम का भी विशेष लाभ इसमें पाया जाता है। साभार नैचुरोपैथी कौशल।।।

9215522667

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

94138

+

Visitors