जिस घर गिलोय, वहां कभी भी रोग दोष, कफ, पित्त व विकार ना होए

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चंडीगढ़: 3 जुलाई: अल्फा न्यूज इंडिया डेस्क :– गिलोय की लताएं लगभग भारत में सभी जगह पायी जाती है। हमेशा हरी-भरी रहने वाली यह लता कई वर्षो तक फूलती और बढ़ती रहती है। इसके बेल वृक्षों की सहायता से बढ़ती रहती है।*

*गिलोय की लताएं लगभग भारत में सभी जगह पायी जाती है। हमेशा हरी-भरी रहने वाली यह लता कई वर्षो तक फूलती और बढ़ती रहती है। इसके बेल वृक्षों की सहायता से बढ़ती रहती है। नीम के वृक्ष पर चढ़ी गिलोय को सबसे उत्तम माना जाता है। इसके वृक्ष के लते खेतों की मेड़ों, पहाड़ों की चट्टानों पर भी फैल जाते हैं। गिलोय के पत्ते दिल के आकार के पान के पत्तों के समान होते हैं। इन पत्तों का व्यास 2 से 4 इंच होता है तथा ये चिकने होते हैं। गिलोय के फूल छोटे-छोटे गुच्छों में लगते हैं जो गर्मी के मौसम में आते हैं। गिलोय के फल मटर के समान अण्डाकार, चिकने गुच्छों में लगते हैं जो पकने पर लाल रंग के हो जाते हैं तथा इसके बीज मुडे़ हुए तिरछे दानों के समान सफेद और चिकने होते हैं।*
*गिलोय हरे रंग की होती है।*
*गिलोय खाने में तीखी होती है।*
*गिलोय एक प्रकार की बेल होती है जो बहुत लम्बी होती है। इसके पत्ते पान के पत्तों के समान होते हैं। इसके फूल छोटे-छोटे गुच्छों में लगते हैं। इसके फल मटर के दाने के जैसे होते हैं।*
*गिलोय की प्रकृति गर्म होती है।*
*गिलोय की तुलना सत गिलोय से की जा सकती है।*

*गिलोय की 20 ग्राम मात्रा में सेवन कर सकते हैं।*

*गिलोय पुरानी पैत्तिक और रक्तविकार वाले बुखारों का ठीक कर सकती है। यह खांसी, पीलिया, उल्टी और बेहोशीपन को दूर करने के लिए लाभकारी है। यह कफ को छांटता है। धातु को पुष्ट करता है। भूख को खोलता है। वीर्य को पैदा करता है तथा उसे गाढा करता है, यह मल का अवरोध करती है तथा दिल को बलवान बनाती है।*

गिलोय के उपयोग-

घी के साथ गिलोया का सेवन करने से वात रोग नष्ट होता है।
गुड़ के साथ गिलोय का सेवन करने से कब्ज दूर होती है।
खाण्ड के साथ गिलोया का सेवन करने से पित्त दूर होती है।
शहद के साथ गिलोय का सेवन करने से कफ की शिकायत दूर होती है।
रेण्डी के तेल के साथ गिलोय का उपयोग करने से गैस दूर होती है।
सोंठ के साथ गिलोय का उपयोग करने से गठिया रोग ठीक होता है।
आयुर्वेद के अनुसार गिलोय बुखार को दूर करने की सबसे अच्छी औषधि मानी जाती है। यह सभी प्रकार के बुखार जैसे टायफाइड (मियादी बुखार), मलेरिया, मंद ज्वर तथा जीर्ण ज्वर (पुराने बुखार) आदि के लिए बहुत ही उत्तम औषधि है। इससे गर्मी शांत करने की शक्ति होती है।

गिलोय गुण में हल्की, चिकनी, प्रकृति में गर्म, पकने पर मीठी, स्वाद में तीखी, कड़वी, खाने में स्वादिष्ट, भारी, शक्ति तथा भूख को बढ़ाने वाली, वात-पित्त और कफ को नष्ट करने वाली, खून को साफ करने वाली, धातु को बढ़ाने वाली, प्यास, जलन, ज्वर, वमन, पेचिश, खांसी, बवासीर, गठिया, पथरी, प्रमेह, नेत्र, केश और चर्म रोग, अम्लपित्त, पेट के रोग, मूत्रावरोध (पेशाब का रुकना), मधुमेह, कृमि और क्षय (टी.बी.) रोग आदि को ठीक करने में लाभकारी है।

यूनानी पद्धति के अनुसार गिलोय की प्रकृति गर्म और खुश्क होती है। यह तीखा होने के कारण से पेट के कीड़ों को मारता है। यह सभी प्रकार के बुखार में बहुत ही लाभदायक है।

वैज्ञानिको के अनुसार :

गिलोय की रासायनिक संरचना का विश्लेषण करने पर यह पता चला है कि इसमें गिलोइन नामक कड़वा ग्लूकोसाइड, वसा अल्कोहल ग्लिस्टेराल, बर्बेरिन एल्केलाइड, अनेक प्रकार की वसा अम्ल एवं उड़नशील तेल पाये जाते हैं। पत्तियों में कैल्शियम, प्रोटीन, फास्फोरस और तने में स्टार्च भी मिलता है। कई प्रकार के परीक्षणों से ज्ञात हुआ की वायरस पर गिलोय का प्राणघातक असर होता है। इसमें सोडियम सेलिसिलेट होने के कारण से अधिक मात्रा में दर्द निवारक गुण पाये जाते हैं। यह क्षय रोग के जीवाणुओं की वृद्धि को रोकती है। यह इन्सुलिन की उत्पत्ति को बढ़ाकर ग्लूकोज का पाचन करना तथा रोग के संक्रमणों को रोकने का कार्य करती है।

विभिन्न रोगों में प्रयोग-

1. दांतों में पानी लगना: गिलोय और बबूल की फली समान मात्रा में मिलाकर पीस लें और सुबह-शाम नियमित रूप से इससे मंजन करें इससे आराम मिलेगा।

2. रक्तपित्त (खूनी पित्त): 10-10 ग्राम मुलेठी, गिलोय, और मुनक्का को लेकर 500 मिलीलीटर पानी में उबालकर काढ़ा बनाएं। इस काढ़े को 1 कप रोजाना 2-3 बार पीने से रक्तपित के रोग में लाभ मिलता है।

3. खुजली: हल्दी को गिलोय के पत्तों के रस के साथ पीसकर खुजली वाले अंगों पर लगाने और 3 चम्मच गिलोय का रस और 1 चम्मच शहद को मिलाकर सुबह-शाम पीने से खुजली पूरी तरह से खत्म हो जाती है।

4. मोटापा:

नागरमोथा, हरड और गिलोय को बराबर मात्रा में मिलाकर चूर्ण बना लें। इसमें से 1-1 चम्मच चूर्ण शहद के साथ दिन में 3 बार लेने से मोटापे के रोग में लाभ मिलता है।
हरड़, बहेड़ा, गिलोय और आंवले के काढ़े में शुद्ध शिलाजीत पकाकर खाने से मोटापा वृद्धि रुक जाती है।
3 ग्राम गिलोय और 3 ग्राम त्रिफला चूर्ण को सुबह और शाम शहद के साथ चाटने से मोटापा कम होता जाता है।
5. हिचकी:

सोंठ का चूर्ण और गिलोय का चूर्ण बराबर मात्रा में मिलाकर सूंघने से हिचकी आना बंद हो जाती है।
गिलोय का चूर्ण एवं सोंठ के चूर्ण में पानी मिलाकर दूध के साथ पीने से हिचकी आना बंद हो जाती है।
6. सभी प्रकार के बुखार: सोंठ, धनियां, गिलोय, चिरायता तथा मिश्री को बराबर मात्रा में मिलाकर इसे पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को रोजाना दिन में 3 बार 1-1 चम्मच की मात्रा में लेने से हर प्रकार के बुखार में आराम मिलता है।

7. कान का मैल साफ करने के लिए: गिलोय को पानी में घिसकर और गुनगुना करके कान में 2-2 बूंद दिन में 2 बार डालने से कान का मैल निकल जाता है और कान साफ हो जाता है।

8. कान में दर्द: गिलोय के पत्तों के रस को गुनगुना करके इस रस को कान में बूंद-बूंद करके डालने से कान का दर्द दूर हो जाता है।

9. संग्रहणी (पेचिश): अती, सोंठ, मोथा और गिलोय को बराबर मात्रा में लेकर पानी के साथ मिलाकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को 20-30 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम पीने से मन्दाग्नि (भूख का कम लगना), लगातार कब्ज की समस्या रहना तथा दस्त के साथ आंव आना आदि प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं।

10. कब्ज: गिलोय का चूर्ण 2 चम्मच की मात्रा गुड़ के साथ सेवन करें इससे कब्ज की शिकायत दूर हो जाती है।

11. एसीडिटी:

गिलोय के रस का सेवन करने से ऐसीडिटी से उत्पन्न अनेक रोग जैसे- पेचिश, पीलिया, मूत्रविकारों (पेशाब से सम्बंधित रोग) तथा नेत्र विकारों (आंखों के रोग) से छुटकारा मिल जाता है।
गिलोय के रस में कुष्माण्ड का रस और मिश्री मिलाकर पीने से अम्लपित्त की विकृति नष्ट हो जाती है।
गिलोय, नीम के पत्ते और कड़वे परवल के पत्तों को पीसकर शहद के साथ पीने से अम्लपित्त समाप्त हो जाती है।
12. खून की कमी (एनीमिया): गिलोय का रस शरीर में पहुंचकर खून को बढ़ाता है और जिसके फलस्वरूप शरीर में खून की कमी (एनीमिया) दूर हो जाती है।

13. हृदय की दुर्बलता: गिलोय के रस का सेवन करने से हृदय की निर्बलता (दिल की कमजोरी) दूर होती है। इस तरह हृदय (दिल) को शक्ति मिलने से विभिन्न प्रकार के हृदय संबन्धी रोग ठीक हो जाते हैं।

14. हृदय के दर्द: गिलोय और काली मिर्च का चूर्ण 10-10 ग्राम की मात्रा में मिलाकर इसमें से 3 ग्राम की मात्रा में हल्के गर्म पानी से सेवन करने से हृदय के दर्द में लाभ मिलता है।

15. बवासीर, कुष्ठ और पीलिया: 7 से 14 मिलीलीटर गिलोय के तने का ताजा रस शहद के साथ दिन में 2 बार सेवन करने से बवासीर, कोढ़ और पीलिया का रोग ठीक हो जाता है।

16. बवासीर:

मट्ठा (छाछ, तक्र) के साथ गिलोय का चूर्ण 1 चम्मच की मात्रा में दिन में सुबह और शाम लेने से बवासीर में लाभ मिलता है।
20 ग्राम हरड़, गिलोय, धनिया को लेकर मिला लें तथा इसे 5 किलोग्राम पानी में पकाएं जब इसका चौथाई भाग बाकी रह तब इसमें गुड़ डालकर मिला दें और फिर इसे सुबह-शाम सेवन करें इससे सभी प्रकार की बवासीर ठीक हो जाती है।
17. मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में कष्ट या जलन): गिलोय का रस वृक्कों (गुर्दे) क्रिया को तेज करके पेशाब की मात्रा को बढ़ाकर इसकी रुकावट को दूर करता है। वात विकृति से उत्पन्न मूत्रकृच्छ (पेशाब में जलन) रोग में भी गिलोय का रस लाभकारी है।

18. रक्तप्रदर: गिलोय के रस का सेवन करने से रक्तप्रदर में बहुत लाभ मिलता है।

19. चेहरे के दाग-धब्बे: गिलोय की बेल पर लगे फलों को पीसकर चेहरे पर मलने से चेहरे के मुंहासे, फोड़े-फुंसियां और झाइयां दूर हो जाती है।

20. सफेद दाग: सफेद दाग के रोग में 10 से 20 मिलीलीटर गिलोय के रस को रोजाना 2-3 बार कुछ महीनों तक सफेद दाग के स्थान पर लगाने से लाभ मिलता है।

21. हलीमक: गिलोय के चूर्ण का रस, 5-10 ग्राम भैंस के घी में मिला लें तथा इसमें इसके 4 गुने दूध मिलाकर दिन में 3 से 4 बार रोगी को पिलाए, इससे हलीमक रोग ठीक हो जाता है।

22. पेट के रोग: 18 ग्राम ताजी गिलोय, 2 ग्राम अजमोद और छोटी पीपल, 2 नीम की सींकों को पीसकर 250 मिलीलीटर पानी के साथ मिट्टी के बर्तन में फूलने के लिए रात के समय रख दें तथा सुबह उसे छानकर रोगी को रोजाना 15 से 30 दिन तक पिलाने से पेट के सभी रोगों में आराम मिलता है।

23. श्लीपद (पीलपांव): 10 से 20 ग्राम गिलोय के रस में 50 मिलीलीटर सरसों के तेल को मिलाकर रोजाना सुबह-शाम खाली पेट पीने से श्लीपद रोग दूर हो जाता है।

24. जोड़ों के दर्द (गठिया): गिलोय के 2-4 ग्राम का चूर्ण, दूध के साथ दिन में 2 से 3 बार सेवन करने से गठिया रोग ठीक हो जाता है।

25. वातज्वर: गम्भारी, बिल्व, अरणी, श्योनाक (सोनापाठा), तथा पाढ़ल इनके जड़ की छाल तथा गिलोय, आंवला, धनियां ये सभी बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें। इसमें से 20-30 ग्राम काढ़े को दिन में 2 बार सेवन करने से वातज्वर ठीक हो जाता है।

26. शीतपित्त (खूनी पित्त): 10 से 20 ग्राम गिलोय के रस में बावची को पीसकर लेप बना लें। इस लेप को खूनी पित्त के दानों पर लगाने तथा मालिश करने से शीतपित्त का रोग ठीक हो जाता है।

27. जीर्णज्वर (पुराने बुखार):

जीर्ण ज्वर या 6 दिन से भी अधिक समय से चला आ रहा बुखार व न ठीक होने वाले बुखार की अवस्था में उपचार करने के लिए 40 ग्राम गिलोय को अच्छी तरह से पीसकर, मिटटी के बर्तन में 250 मिलीलीटर पानी में मिलाकर रात भर ढककर रख दें और सुबह के समय इसे मसलकर छानकर पी लें। इस रस को रोजाना दिन में 3 बार लगभग 20 ग्राम की मात्रा में पीने से लाभ मिलता है।
20 मिलीलीटर गिलोय के रस में 1 ग्राम पिप्पली तथा 1 चम्मच शहद मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से जीर्णज्वर, कफ, प्लीहारोग (तिल्ली), खांसी और अरुचि (भोजन का अच्छा न लगना) आदि रोग ठीक हो जाते हैं।
28. वमन:

गिलोय का रस और मिश्री को मिलाकर 2-2 चम्मच रोजाना 3 बार पीने से वमन (उल्टी) आना बंद हो जाती है।
धूप में घूमने फिरने से या गर्मी के कारण से उल्टी आ रही हो तो 10-15 मिलीलीटर गिलोय के रस में 4-6 ग्राम मिश्री मिलाकर सुबह-शाम पीने से उल्टी होना रूक जाती है।
गिलोय के 125 से 250 मिलीलीटर रस में 15 से 30 ग्राम तक शहद मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करने से वमन (साधारण उल्टी) भी बंद हो जाती है।
गिलोय का काढ़ा बनाकर ठण्डा करके पीने से उल्टी होना बंद हो जाती है।
29. पेचिश (संग्रहणी):

20 ग्राम पुनर्नवा, कटुकी, गिलोय, नीम की छाल, पटोलपत्र, सोंठ, दारुहल्दी, हरड़ आदि को 320 मिलीलीटर पानी में मिलाकर इसे उबाले जब यह 80 ग्राम बच जाए तो इस काढ़े को 20 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम पीने से पेचिश ठीक हो जाती है।
1 लीटर गिलोय रस का, तना 250 ग्राम इसके चूर्ण को 4 लीटर दूध और 1 किलोग्राम भैंस के घी में मिलाकर इसे हल्की आग पर पकाएं जब यह 1 किलोग्राम के बराबर बच जाए तब इसे छान लें। इसमें से 10 ग्राम की मात्रा को 4 गुने गाय के दूध में मिलाकर सुबह-शाम पीने से पेचिश रोग ठीक हो जाता है तथा इससे पीलिया एवं हलीमक रोग ठीक हो सकता है।
30. नेत्रविकार (आंखों की बीमारी):

लगभग 11 ग्राम गिलोय के रस में 1-1 ग्राम शहद और सेंधानमक मिलाकर, इसे खूब अच्छी तरह से गर्म करें और फिर इसे ठण्डा करके आंखो में लगाने से आंखों के कई प्रकार के रोग ठीक हो जाते हैं। इसके प्रयोग से पिल्ल, बवासीर, खुजली, लिंगनाश एवं शुक्ल तथा कृष्ण पटल आदि रोग भी ठीक हो जाते हैं।
गिलोय के रस में त्रिफला को मिलाकर काढ़ा बना लें। इसे पीपल के चूर्ण और शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से आंखों की रोशनी बढ़ जाती है तथा और भी आंखों से सम्बंधित कई प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं।
31. क्षय (टी.बी.):

गिलोय, कालीमिर्च, वंशलोचन, इलायची आदि को बराबर मात्रा में लेकर मिला लें। इसमें से 1-1 चम्मच की मात्रा में 1 कप दूध के साथ कुछ हफ्तों तक रोजाना सेवन करने से क्षय रोग दूर हो जाता है।
गिलोय, दशमूल, असगंध, सतावर, बलामूल, अड़ूसा, पोहकरमूल तथा अतीस को बराबर की मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें। इसमें से 50-60 ग्राम की मात्रा को सुबह-शाम सेवन करने से टी.बी का रोग ठीक हो जाता है। इसके सेवन करने के साथ ही रोगी को केवल दूध अथवा मांस का रस ही सेवन करना चाहिए और कुछ भी नहीं।
कालीमिर्च, गिलोय का बारीक चूर्ण, छोटी इलायची के दाने, असली वंशलोचन और भिलावा समान भाग कूट-पीसकर कपड़े से छान लें। इसमें से 130 मिलीग्राम की मात्रा मक्खन या मलाई में मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करने से टी.बी. रोग ठीक हो जाता है।
32. वातरक्त:

मुण्डी के 2-5 ग्राम चूर्ण को 2 चम्मच शहद और 1 चम्मच घी के साथ चाटकर गिलोय के 40-60 ग्राम काढ़े को रोजाना सुबह-शाम पीने से वातरक्त रोग ठीक होता है।
गिलोय के 5-10 मिलीमीटर रस अथवा 3-6 ग्राम चूर्ण या 10-20 ग्राम कल्क अथवा 40-60 ग्राम काढ़े को प्रतिदिन निरन्तर कुछ समय तक सेवन करने से रोगी वातरक्त से मुक्त हो जाता है।
33. प्रमेह (वीर्य विकार):

गिलोय का रस, हल्दी का चूर्ण और शहद बराबर मात्रा में मिलाकर इसमें से 1-1 चम्मच दिन में 3 बार रोजाना 10-15 दिनों तक सेवन करने से प्रमेह के रोग में लाभ मिलता है।
गिलोय खस, आंवला, हरड़, पठानी लोध्र अंजन, लाल चंदन, नागरमोथा, पलवल की पत्ती, नीम की छाल, पद्यकाष्ठ इन सभी पदार्थों को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर छान लें और किसी बर्तन में रख लें। इस चूर्ण में से 10 ग्राम की मात्रा को शहद के साथ दिन में 3 बार लेने से पित्तज प्रमेह दूर हो जाता है।
20-30 मिलीलीटर गिलोय और चित्रक का काढ़ा सुबह-शाम पीने से सर्पिप्रमेह मिटता है। गिलोय के 10-20 मिलीलीटर रस में 2 चम्मच शहद मिलाकर दिन में दो बार पीने से प्रमेह नष्ट हो जाता है।
1 ग्राम गिलोय के रस में 3 ग्राम शहद मिलाकर सुबह-शाम चाटने से प्रमेह के रोग में लाभ मिलता है।
34. खूनी कैंसर:

रक्त कैंसर से पीड़ित रोगी को गिलोय के रस में जवाखार मिलाकर सेवन कराने से उसका रक्तकैंसर ठीक हो जाता है।
गिलोय लगभग 2 फुट लम्बी तथा एक अंगुली जितनी मोटी, 10 ग्राम गेहूं की हरी पत्तियां लेकर थोड़ा सा पानी मिलाकर पीस लें फिर इसे कपड़े में रखकर निचोड़कर रस निकला लें। इस रस की एक कप की मात्रा खाली पेट सेवन करें इससे लाभ मिलेगा।
35. आन्त्रिक (आंतों) के बुखार: 5 ग्राम गिलोय का रस को थोड़े से शहद के साथ मिलाकर चाटने से आन्त्रिक बुखार ठीक हो जाता है। गिलोय का काढ़ा भी शहद के साथ मिलाकर पीना लाभकारी है।

36. अजीर्ण (असाध्य) ज्वर: गिलोय, छोटी पीपल, सोंठ, नागरमोथा तथा चिरायता इन सबा को पीसकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को पीने से अजीर्णजनित बुखार कम होता है।

37. वीर्य गाढ़ा करना: गिलोय का रस और अलसी वशंलोचन बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इसमें से 2 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ एक हफ्ते तक सेवन करने से वीर्य गाढ़ा होता है।

38. अंडकोष की खुजली: गिलोय के रस को गुग्गल के साथ या कड़वी नीम के साथ या हरिद्रा, खदिर और आंवले के काढ़े के साथ रोजाना 3 बार सेवन करने से अंडकोष की खुजली दूर हो जाती है।

39. नपुंसकता (नामर्दी): गिलोय, बड़ा गोखरू और आंवला सभी बराबर मात्रा में लेकर कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। इसमें से 5 ग्राम चूर्ण प्रतिदिन मिश्री और घी के साथ खाने से संभोग शक्ति में वृद्धि होती है।

40. शीतला (मसूरिका) ज्वर: गिलोय, लाल चंदन, मुलहठी, रास्ना, लघु पंचमूल, कुंभेर के फल, खिरेंटी और कटाई आदि को मिलाकर पीसकर उबालकर काढ़ा बना लें। जब मसूरिका के दाने पकने या भरने लगे उस समय में इसे पीने से लाभ मिलता है।

41. पुनरावर्तक ज्वर: गिलोय के काढ़े में शहद मिलाकर सुबह और शाम सेवन करें इससे पुनरार्तक बुखार ठीक होता है।

42. वात-कफ ज्वर:

वात के बुखार होने के 7 वें दिन की अवस्था में गिलोय, पीपरामूल, सोंठ और इन्द्रजौ को मिलाकर काढ़ा बनाकर पीने से लाभ मिलता है।
गिलोय, सोंठ, कटेरी, पोहकरमूल और चिरायता को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर 1 दिन में सुबह और शाम सेवन करने से वात का ज्वर ठीक हो जाता है।
गिलोय, कटेरी, सोंठ और एरण्ड की जड़ को 6-6 ग्राम की मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर पीने से वात के ज्वर (बुखार) में लाभ पहुंचाता है। यह काढ़ा उस ज्वर की अवस्था में भी लाभकारी है जिसमें कफ और वायु की अधिकता होती है।
दाख, गिलोय, कुंभेर, त्रायमाण और अनन्तमूल को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा लें फिर इस काढ़े में थोड़ा-सा गुड़ मिलाकर पीने से वात और कफ के बुखार नष्ट हो जाते हैं।
43. दमा (श्वास का रोग):

गिलोय की जड़ की छाल को पीसकर मट्ठे के साथ लेने से श्वास-रोग ठीक हो जाता है।
6 ग्राम गिलोय का रस, 2 ग्राम इलायची और 1 ग्राम की मात्रा में वंशलोचन शहद में मिलाकर खाने से क्षय और श्वास-रोग ठीक हो जाता है।
44. मलेरिया बुखार:

गिलोय 5 अंगुल लम्बा टुकड़ा और 15 कालीमिर्च को मिलाकर कुटकर 250 मिलीलीटर पानी में डालकर उबाल लें। जब यह 58 ग्राम बच जाए तो इसका सेवन करें इससे मलेरिया बुखार की अवस्था में लाभ मिलेगा।
गिलोय (गुरूच) के काढ़े या रस में छोटी पीपल और शहद मिलाकर 40 से 80 ग्राम की मात्रा में रोजाना सेवन करने से लाभ मिलता है।
45. वात-पित्त का बुखार: गिलोय, नीम की छाल, कुटकी, नागरमोथा, इन्द्रायन, सोंठ, पटोल (परवल) के पत्तें और चंदन को 5-5 ग्राम की मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इसमें से 1 चम्मच चूर्ण का काढ़ा बनाकर पीने से वात-पित्त का बुखार में लाभ मिलता है।

46. बुखार:

गिलोय 6 ग्राम, धनिया 6 ग्राम, नीम की छाल 6 ग्राम, पद्याख 6 ग्राम और लाल चंदन 6 ग्राम इन सब को मिलाकर काढ़ा बना लें। इस बने हुए काढ़े को सुबह और शाम पीते रहने से हर प्रकार का बुखार ठीक हो जाता है।
गिलोय, पीपरामूल (पीपल की जड़), नीम की छाल, सफेद चंदन, पीपल, बड़ी हरड़, लौंग, सौंफ, कुटकी और चिरायता को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में से 3 से 6 ग्राम की मात्रा में व्यस्क रोगी को तथा छोटे बालकों को 1 से 2 ग्राम की मात्रा पानी के साथ सेवन कराएं इससे लाभ मिलता है।
गिलोय के रस में पीपल का चूर्ण और शहद को मिलाकर लेने से जीर्ण-ज्वर तथा खांसी ठीक हो जाती है।
गिलोय के रस में शहद मिलाकर चाटने से पुराना बुखार ठीक हो जाता है।
47. कफ व खांसी: गिलोय को शहद के साथ चाटने से कफ विकार दूर हो जाता है।

48. जीभ और मुंख का सूखापन:- गिलोय (गुरुच) का रस 10 मिलीलीटर से 20 मिलीलीटर की मात्रा शहद के साथ मिलाकर खायें फिर जीरा तथा मिश्री का शर्बत पीयें। इससे गले में जलन के कारण होने वाले मुंह का सूखापन दूर होता है।

49. जीभ की प्रदाह और सूजन: गिलोय, पीपल, तथा रसौत का काढ़ा बनाकर इससे गरारे करने से जीभ की जलन तथा सूजन दूर हो जाती है।

50. मुंह के अन्दर के छालें (मुखपाक): धमासा, हरड़, जावित्री, दाख, गिलोय, बहेड़ा एवं आंवला इन सब को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें। ठण्डा होने पर इसमें शहद मिलाकर पीने से मुखपाक दूर होते हैं।

51. कमजोरी: 100 ग्राम गिलोय का लई (कल्क), 100 ग्राम अनन्तमूल का चूर्ण, दोनों को एक साथ 1 लीटर उबलते पानी में मिलाकर किसी बंद पत्ते में रख दें। 2 घंटे के बाद मसल-छान कर रख लें। इसे 50-100 ग्राम रोजाना 2-3 बार सेवन करने से बुखार से आयी कमजोरी मिट जाती है।

52. एड्स (एच.आई.वी.): गुरुच (गिलोय) का रस 7 से 10 मिलीलीटर, शहद या कड़वे नीम का रस अथवा दाल चूर्ण या हरिद्रा, खदिर एवं आंवला एक साथ प्रतिदिन 3 बार खाने से एड्स में लाभ होता है। यह उभरते घाव, प्रमेह जनित मूत्रसंस्थान के रोग नाशक एवं जीर्ण पूति केन्द्र जनित विकार नाशक में लाभदायक होता है।

53. भगन्दर:

गिलोय, सोंठ, पुनर्ववा, बरगद के पत्ते तथा पानी के भीतर की ईट- इन सब को बराबर मात्रा में लें, और पीसकर भगन्दर पर लेप करने से यदि भगन्दर की फुंसी पकी न हो तो वे फुंसी बैठ जाती है।
गिलोय, सांठी की जड़, सोंठ, मुलहठी तथा बेरी के कोमल पत्ते इनको महीन पीसकर इसे हल्का गर्म करके भगन्दर पर लेप करें इससे लाभ मिलेगा।
54. प्रदर रोग:

गिलोय का रस शहद में मिलाकर सेवन करने से प्रदर में आराम मिलता है।
गिलोय का रस पीने से प्रदर रोग खत्म हो जाता है।
3-4 टुकडे़ गिलोय, 3-4 टुकड़े शतवार इनको कूट लें फिर इसमें 2 कप पानी डालकर इसे पकाएं जब काढ़ा 1 कप बचा रह जाये तो इसे दो खुराक के रूप में सुबह-शाम पीयें। इससे प्रदर में आराम मिलता है।
गिलोय का रस निकालकर शर्बत बनाकर पीने से प्रदर रोग में बहुत लाभ होता है।
55. जिगर का रोग: गिलोय, अतीस, नागरमोथा, छोटी पीपल, सोंठ, चिरायता, कालमेघ, यवाक्षार, हराकसीस शुद्ध और चम्पा की छाल बराबर मात्रा में लेकर इसे कूटकर बरीक पीस लें और कपड़े से छानकर इसका चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को 3-6 ग्राम की मात्रा में लेने से जिगर से सम्बंधित अनेक रोग जैसे- प्लीहा, पीलिया रोग, अग्निमान्द्य (अपच), भूख का न लगना, पुराना बुखार, और पानी के परिवर्तन के कारण से होने वाले रोग ठीक हो जाते हैं।

56. प्यास अधिक लगना: गिलोय का रस 6 से 10 मिलीलीटर की मात्रा में दिन में कई बार लेने से प्यास शांत हो जाती है।

57. पित्त ज्वर: गिलोय के शर्बत में चीनी डालकर पीने से पित्त बुखार ठीक हो जाता है।

58. पित्त बढ़ना: गिलोय का रस 7 से 10 मिलीलीटर रोज 3 बार शहद में मिलाकर खायें इससे लाभ मिलेगा।

59. मधुमेह:

40 ग्राम हरी गिलोय का रस, 6 ग्राम पाषाण भेद, और 6 ग्राम शहद को मिलाकर 1 महीने तक पीने से मधुमेह रोग ठीक हो जाता है।
20-50 मिलीलीटर गिलोय का रस सुबह-शाम बराबर मात्रा में पानी के साथ मधुमेह रोगी को सेवन करायें या रोग को जब-जब प्यास लगे तो इसका सेवन कराएं इससे लाभ मिलेगा।
15 ग्राम गिलोय का बारीक चूर्ण और 5 ग्राम घी को मिलाकर दिन में 3 बार रोगी को सेवन कराऐं इससे मधुमेह (शूगर) रोग दूर हो जाता है।
60. शीतपित्त:

गिलोय का मिश्रण 100 ग्राम और अनन्तमूल का चूर्ण 100 ग्राम दोनों को 1 लीटर खोलते पानी में मिलाकर बंद बर्तन में 2 घंटे के लिए रख दें। बाद में इसे मसलकर छान लें। इसमें से 50 ग्राम से 100 ग्राम की मात्रा सुबह-शाम के समय में रोगी को पिलाने से शीतपित्त ठीक हो जाता है।
गिलोय, हल्दी, नीम की अन्तरछाल और यवासा का काढ़ा बनाकर पीने से शीत पित्त की विकृति खत्म होती है।
61. स्तनों में दूध कम उतरना: गिलोय (गुरुच) को पकाकर काढ़ा बनाकर 1 दिन में 2 खुराक के रूप में बच्चे को जन्म देने वाली मां (प्रसूता स्त्री) को पिलाने से स्तन की शुद्धि होती है और छोटे बच्चों को स्वच्छ और पौष्टिक दूध मिलता है तथा स्तनों में दूध कम होने की शिकायत भी दूर हो जाती है।

62. स्त्री के स्तनों में दूध की शुद्धि: गिलोय या गुरुच को पकाकर काढ़ा बनाकर बच्चे की माता को पिलाने से उसके स्तन में होने वाले दोष दूर हो जाते हैं।

63. घाव (व्रण): 4 ग्राम से 6 ग्राम गिलोय का काढ़ा प्रतिदिन पीने से घाव ठीक हो जाता है।

64. उपदंश (फिरंग): गिलोय के काढ़े में 10-20 मिलीलीटर अरण्डी का तेल मिलाकर पीने से उपदंश रोग में लाभ मिलता है। इसको खाने से खून साफ होता है और गठिया-रोग भी ठीक हो जाता है।

65. जोड़ों के दर्द (गठिया):

गिलोय और सोंठ को एक ही मात्रा में लेकर उसका काढ़ा बनाकर पीने से पुराने से पुराना गठिया रोग में फायदा मिलता है।
गिलोय, हरड़ की छाल, भिलावां, देवदारू, सोंठ और साठी की जड़ इन सब को 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बना लें तथा छोटी बोतल में भर लें। इसका आधा चम्मच चूर्ण आधा कप पानी में पकाकर ठण्डा होने पर पी जायें। इससे रोगी के घुटनों का दर्द ठीक हो जाता है।
घुटने के दर्द दूर करने के गिलोय का रस तथा त्रिफुला का रस आधा कप पानी में मिलाकर सुबह-शाम भोजन के बाद पीने से लाभ मिलता है।
66. पेट में दर्द: गिलोय का रास 7 मिलीलीटर से लेकर 10 मिलीलीटर की मात्रा में शहद के साथ मिलाकर सुबह और शाम सेवन करने से पेट का दर्द ठीक हो जाता है।

67. योनि की खुजली:

गिलोय, जमालगोटा, हरड़ और आंवला को मिलाकर काढ़ा बना लें फिर इसी काढ़े की धार से योनि को धोने से योनि में होने वाली खुजली समाप्त हो जाती है तथा योनि के ओर भी रोग ठीक हो जाते हैं।
गिलोय, आंवला, हरड़, बहेड़ा और जमालगोटा को मिलाकर काढ़ा बनाकर इससे योनि को धोने से योनि की खुजली ठीक हो जाती है।
68. पीलिया रोग:

गिलोय अथवा काली मिर्च अथवा त्रिफला का 5 ग्राम चूर्ण शहद में मिलाकर प्रतिदिन सुबह और शाम चाटने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है।
गिलोय का 5 ग्राम चूर्ण शहद में मिलाकर चाटने से पीलिया रोग में लाभ होता है।
गिलोय की लता गले में लपेटने से कामला रोग या पीलिया में लाभ होता है।
गिलोय का रस 1 चम्मच की मात्रा में दिन में सुबह और शाम सेवन करें।
गिलोय, अडूसा, नीम की छाल, त्रिफला, चिरायता, कुटकी इन सबको बराबर की मात्रा में लेकर कुट ले फिर एक कप पानी में पकाकर काढ़ा बनाएं इसके बाद इसे छानकर इसमें थोड़ा-सा शहद लें फिर इसे पी जाएं। 20 दिन तक इसका सेवन करें इससे पीलिया रोग ठीक हो जाएगा।
20-30 ग्राम अमृता काढ़े में 2 चम्मच शहद मिलाकर दिन में 3-4 पीने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है।
गिलोय के 10-20 पत्तों को पीसकर एक गिलास छाछ (मट्ठा) में मिलाकर सुबह के समय पीने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है।
69. सूखा रोग (रिकेटस): हरी गिलोय के रस में बालक का कुर्त्ता रंगकर सुखा लें और यह कुर्त्ता सूखा रोग से पीड़ित बच्चे को पहनाकर रखें। इससे बच्चा कुछ ही दिनों में सही हो जायेगा।

70. फीलपांव (गजचर्म): गाय के पेशाब को गिलोय के रस के साथ पीने से फीलपांव रोग ठीक हो जाता है।

71. मानसिक उन्माद (पागलपन): गिलोय के काढ़े को ब्राह्मी के साथ पीने से उन्माद या पागलपन दूर हो जाता है।

72. शरीर की जलन:

शरीर की जलन या हाथ पैरों की जलन में 7 से 10 मिलीलीटर गिलोय के रस को गुग्गुल या कड़वी नीम या हरिद्र, खादिर एवं आंवला के साथ मिलाकर काढ़ा बना लें। प्रतिदिन 2 से 3 बार इस काढ़े का सेवन करने से शरीर में होने वाली जलन दूर हो जाती है।
गिलोय और पित्तपापड़े के रस को पीने से हर तरह की जलन शांत हो जाती है।
73. कुष्ठ (कोढ़): 100 मिलीलीटर बिल्कुल साफ गिलोय का रस और 10 ग्राम अनन्तमूल का चूर्ण 1 लीटर उबलते हुए पानी में मिलाकर किसी बंद बर्तन में 2 घंटे के लिये रखकर छोड़ दें। 2 घंटे के बाद इसे बर्तन में से निकालकर मसलकर छान लें। इसमें से 50 से 100 ग्राम की मात्रा प्रतिदिन दिन में 3 बार सेवन करने से खून साफ होकर कुष्ठ (कोढ़) रोग ठीक हो जाता है।

74. खून की कमी:

360 मिलीलीटर गिलोय के रस में घी मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने से शरीर में खून की वृद्धि होती है।
गिलोय (गुर्च) 24 से 36 मिलीग्राम सुबह-शाम शहद एवं गुड़ के साथ सेवन करने से शरीर में खून की कमी दूर हो जाती है।
75. वातरक्त के दोष होना: गिलोय का तेल दूध में मिलाकर गर्म करें। वातरक्त दोष के कारण से जो त्वचा फटी हो उस पर इस तेल को लगाए इससे लाभ मिलेगा।

76. सिर का दर्द: मलेरिया के कारण होने वाले सिर के दर्द को ठीक करने के लिए गिलोय का काढ़ा सेवन करें।

77. ज्यादा पसीना या दुर्गन्ध आना: 20 से 40 मिलीलीटर गिलोय का शर्बत 4 गुने पानी में मिलाकर सुबह-शाम के समय में पीने से बदबू वाला पसीना निकलना बंद हो जाता है।

78. शरीर को ताकतवर और शक्तिशाली बनाना: लगभग 4 साल पुरानी गिलोय जो कि नीम या आम के पेड़ पर अच्छी तरह से पक गई हो। अब इस गिलोय के 4-4 टुकड़े उंगली के जितने कर लें। अब इसको जल में साफ करके कूट लें और फिर इसे स्टील के बर्तन में लगभग 6 घंटे तक भिगोकर रख दें। इसके बाद इसे हाथ से खूब मसलकर मिक्सी में डालकर पीसें और इसे छानकर इसका रस अलग कर लें और इसको धीरे से दूसरे बर्तन में निथार दें और ऐसा करने से बर्तन में नीचे बारीक चूर्ण जम जाएगा फिर इसमें दूसरा जल डालकर छोड़ दें। इसके बाद इस जल को भी ऊपर से निथार लें। ऐसा 2 या 3 बार करने से एक चमकदार सफेद रंग का बारीक पिसा हुआ चूर्ण मिलेगा। इसको सुखाकर कांच बर्तन में भरकर रख लें। इसके बाद लगभग 10 ग्राम की मात्रा में गाय के ताजे दूध के साथ इसमें चीनी डालकर लगभग 1 या 2 ग्राम की मात्रा में गिलोय का रस डाल दें। हल्का बुखार होने पर घी और चीनी के साथ या शहद और पीपल के साथ या गुड़ और काले जीरे के साथ सेवन करने से शरीर में होने वाली विभिन्न प्रकार की बीमारियां ठीक हो जाती हैं तथा शरीर में ताकत की वृद्धि होती है।

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