कानून और सरकार रहे नाकाम, कोरोना कर गया नेक काम

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चंडीगढ़ 16 जून आर के विक्रम शर्मा करण शर्मा दुनिया के साथ-साथ भारत देश में भी कोरोना वायरस की विश्वव्यापी महामारी ने भौतिक संसार को बुरी तरह से प्रताड़ित और प्रभावित कर रखा है इसकी भयानक प्रताड़ना के आगे वैज्ञानिक आविष्कार और आधुनिक तकनीक की विज्ञान पूरी तरह से औंधे मुंह गिरे हैं। मानवीय सभ्यता को जर्जर कर देने वाला कोरोनावायरस आज मौतों का तांडव हमारे देश सहित पूरी दुनिया में नाच रहा है। और दुनिया की महान शक्तियां विकसित और विकासशील देश पूरी तरह से घुटने टेक चुके हैं। चारों ओर कोरोनावायरस ने त्राहि-त्राहि मचा रखी है। लेकिन कुदरत का कड़वा सच यह भी है कि सिक्के के दो पहलू होते हैं। नकारात्मक और सकारात्मक। कोरोनावायरस का नकारात्मक दम सभी देख रहे हैं। लेकिन जाने अनजाने में इसके कारण ही समाज में रूढ़िवादी परंपरागत प्राचीन आडंबर वादी परंपराएं जो आधुनिकता के नाम पर कलंक हैं उनका भी कोरोना ने विनाश करने का कामयाब और भरसक सार्थक काम किया है। वाक्य ही जो काम हमारी सरकारें जो कानून व्यवस्थाएं आज तक कई करोड़ों रुपए पानी की तरह बहा कर भी स्थापित नहीं कर सकी हैं। कोरोनावायरस वैश्विक स्तर पर महज 40-45 दिन यह सब कर दिखाया है।

दिखावे की दुनिया में विश्वास करने वाले आधुनिक और शिक्षित लोग शादी में और श्मशान घाट मे मेलों की तरह भीड़ लगा देते थे। कोरोना ने सबसे अहम और अनिवार्य कदम उठाते हुए दोनों ही जगह बेशुमार लोगों की मौजूदगी को दरकिनार करते हुए महज दो ढाई और ज्यादा से ज्यादा 4 दर्जन लोगों तक भीड़ को सीमित कर दिखाया है। धनाढ्य वर्ग और साधन संपन्न लोग तो हर हाल में दिखावे के लिए और संकीर्ण सोच के चलते करोड़ों रुपया पानी की तरह बहाते रहते हैं। लेकिन एक गरीब आदमी जिसे 2 जून की मुकम्मल रोटी भी नसीब नहीं है। उसके लिए शादी और श्मशान के भारी खर्चे उठाना दूसरे जन्म के माफिक ही है। लेकिन अब मरने वाले की मंजिल करने के लिए भी उन्होंने और अनिवार्य व्यवस्थाओं ने आगे बढ़कर 20 लोग शादी में और 50 लोग श्मशान में या फिर 50 लोग शादी में और 20 लोग मरघट में हाजिर होने निर्धारित कर दिए हैं। उक्त आदेशों की अवहेलना करने वालों पर कानून का उल्लंघन करने का जुर्म दर्ज किया जाएगा। और जुर्माना के साथ-साथ सजा का भी प्रावधान किया गया है। समाज के तकरीबन हर वर्ग ने कोरोना की इस व्यवस्था का खुले दिल से स्वागत करते हुए तारीफ की है। और सरकारों की बेपरवाही का कोरा सच भी बाहर आने पर सरकारों की भर्त्सना भी की है। कानून को चाहिए कि अब व्यवस्था पर मुहर लगा दी जाए। शादी में 20 से 50 और ऐसे ही श्मशान घाट में भी 20 से 50 से ज्यादा लोगों की भीड़ किसी भी मजबूरी में भी नहीं होनी चाहिए। और अगर कोई इस कानून का मजाक उड़ाता है तो उस पर तुरंत सख्त कानूनन कारवाई करके जुर्माना वसूलते हुए सजा मुकर्रर की जाए।

परिस्थितियों की पहल और मार्केट में मांग के अनुरूप अभाव स्वभाविक ही है ऐसे में श्मशान में लकड़ियों की जगह गोबर का इस्तेमाल होना चाहिए जिससे कि वातावरण की शुद्धता भी बनी रहे पर्यावरण भी प्रदूषित होने से बचा रहेगा देशराज इस आर्थिक संकट से गुजर रहा है मुझसे उभरने में भी आत्मनिर्भरता का बल मिलेगा शहरों के कारण जो गानों का तराश हुआ था वह पूर्व रूप में आने से भौतिक जीवन में आवश्यक बदलाव हमें पुरानी लीक पर जीवन जीने को प्रशस्त करेंगे और हम स्वस्थ और स्वच्छ जीवन जीवन जीने की ओर अग्रसर होंगे उसी प्रकार शादी व्याधि पार्टियों में भी बेफिजूल के अनावश्यक खर्चे रोक कर सादगी और संपूर्णता का उदाहरण प्रस्तुत करने होंगे ताकि पाखंडी और आडंबर वादे समाज को सही दिशा का बोध हो सके।

भले ही कोरोनावायरस में 21वीं सदी की पीढ़ी को अपना भयावह चेहरा दिखाया है। लेकिन कहीं ना कहीं इसी के चलते समाज में खर्चीली आडंबर वादी परंपराओं का पतन होगा। और हम अपनी मूल और अनिवार्य परंपराओं की ओर रुख कर के एक आत्मनिर्भर समृद्ध  समाज की इमारत निर्मित करेंगे।

अल्फा न्यूज़ इंडिया को अपने सुधी पाठकों से उपरोक्त समाज में आए अनिवार्य बदलावों को लेकर अपने विचार अनुभव सांचे करने का खुला निमंत्रण है।

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