राजनीतिक ध्येय का राजनीतिक शोषण अबाध रूप से जारी ही दुर्भाग्यपूर्ण

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चंडीगढ़:13 जून:- अल्फा न्यूज इंडिया प्रस्तोता:— परमार्थी राजनीति करने के लिए भी कुशल और कारगर रणनीति की जरूरत बनी रहती है। लेकिन इसमें कितनी पारदर्शिता और सच्चाई सफाई ईमानदारी परोपकारी भावना और राष्ट्रीयता का दम होता है यह ही कामयाबी का श्रेय बनता है। सरकार जनता अपने में से अपने लिए अपनों के लिए ही चुनौती है लेकिन यह सरकार जब अपने ध्याये से भटक कर अपने निजी स्वार्थों में लिफ्ट हो जाती है तो भोली भाली जनता बी व सी में मुंह ताकती रह जाती है और अपने अधिकारों तक से खुद ही वंचित होकर बैठ जाती है और जो अधिकारों की परिभाषा जानते हैं वह अपनी संकीर्ण मानसिकता के कारण धन लोलुपता के चलते चारों ओर त्राहि-त्राहि मचा देते हैं ऐसे में कौन किससे किस स्तर की आशा रखें यह यक्ष प्रश्न आज तक खुद एक मूक दर्शक बनकर रह गया है।।

जो 70 साल से परेशान थे,
“अच्छे दिनों वाली शासन के 6 साल, बेमिसाल-रिपोर्ट” जरूर पढ़ें।
पढ़ते जाये, आँखें खुलती जाएँगी।

सन 2014 से पहले तक इतिहास का वो दौर था जब हम भारत के लोग “बहुत ही दुखी” थे।

एक तरफ तो फैक्ट्रियों में काम चल रहा था और कामगार काम से दुखी थे, अपनी मिलने वाली पगार से दुखी थे।
सरकारी बाबू की तन्ख्वाह समय समय पर आने वाले वेतन आयोगों से बढ रही थी। हर 6 महीने या साल भर में 10% तक के मंहगाई भत्ते मिल रहे थे, नौकरियां खुली हुईं थीं। अमीर, गरीब, सवर्ण, दलित, हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सबके लिये यूपीएससी था, एसएससी था, रेलवे थी, बैंक की नौकरियां थीं।

प्राईवेट सेक्टर उफान पर था।मल्टी नेशनल कम्पनियां आ रहीं थी, जाॅब दे रहीं थीं।
हर छोटे बडे शहर में ऑडी और जगुआर जैसी कारों के शो रूम खुल रहे थे।
हर घर मे एक से लेकर तीन चार अलग अलग माॅडलो की कारें हो रही थीं। प्रॉपर्टी मे बूम था। नोयडा से पुणे, बंगलौर तक, कलकत्ता से बम्बई तक फ्लैटों की मारा-मारी मची हुई थी। महंगे बिकते थे फ़िर भी बुकिंग कई सालों की थी।
मतलब हर तरफ, हर जगह अथाह दुख ही दुख पसरा हुआ था।
लोग नौकरी मिलने से, तन्ख्वाह, पेन्शन और मंहगाई भत्ता मिलने से दुखी थे।
प्राईवेट सेक्टर, आई टी सेक्टर में मिलने वाले लाखों के पैकेज से लोग दुखी थे।
कारों से, प्रॉपर्टी से, शान्ति से बहुत लोग दुखी थे।

फिर क्या था?

प्रभु से भारत की जनता का यह दुख देखा न गया।

तब ‘अच्छे दिन’ का एक वेदमंत्र लेकर भारत की पवित्र भूमि पर एक अवतारी का अवतरण हुआ।

भये प्रकट कृपाला, दीन-दयाला।
जनता ने कहा –
कीजे प्रभु लीला, अति प्रियशीला।

प्रभु ने चमत्कार दिखाने आरम्भ किये।
जनता चमत्कृत हो कर देखती रही।

लगभग 10 फ़ीसदी की रफ़्तार से चलनें वाली तीव्र अर्थव्यवस्था को शून्य पर पहुंचाया प्रभु ने और इसके लिए रात दिन अथक प्रयास किये।

विदेशों से कालाधन लानें के बजाए जनता का बाप दादाओं का जमा खज़ाना खाली करवा दिया क्योंकि जनता ही चोर निकली। सारा कालाधन छिपाए बैठी थी और प्रभु तो सर्वज्ञानी हैं।
एक ही झटके में खेल दिया मास्टरस्ट्रोक। इस ऐतिहासिक लीला को नोटबन्दी का नाम दिया गया।
तमाम संवैधानिक संस्थायें रेलवे, एअरपोर्ट, दूरसंचार, बैंक, AIIMS, IIT, ISRO, CBI, RAW, BSNL, MTNL, NTPC, POWER GRID, ONGC आदि जो नेहरू और इंदिरा नाम के क्रूर शासकों ने बनायीं थीं उनको ध्वंस किया और उन्हें संविधान, कानून और नैतिकता के पंजे से मुक्त किया।
रिजर्व बैंक नाम की एक ऐसी ही संस्था थी जो जनता के पैसों पर किसी नाग की भाँति कुन्डली मारकर बैठी रहती थी। प्रभु ने उसका तमाम पैसा, जिसे जनता अपना समझने की भूल करती थी, तमाम प्रयासों से बाहर निकालकर उस रिजर्व बैंक को पैसों के भार से मुक्त किया।
प्रजा को इन सब कार्यवाहियों से बड़ा आनन्द मिला और करतल ध्वनि से जनता ने आभार व्यक्त किया और प्रभु के गुणगान में लग गयी।
प्रभु ने ऐसे अनेक लोकोपकारी काम किये जैसे सरकारी नौकरियां खत्म करने का पूर्ण प्रयास, बिना यूपीएससी परिक्षा के सीधा उपसचिव, संयुक्त सचिव नियुक्त करना, बड़े बड़े पदों पर मनमानी नियुक्तियां, ईमानदारी से काम करने वाले को सेवा निवृत्त, मंहगाई भत्ता रोकना, आदि।
पहले सरकारी कर्मचारी वेतन आयोगों में 30 से 40% तक की वृद्धि से दुखी रहते थे। फिर सातवें वेतन आयोग में जब मात्र 13% की वृद्धि ही मिली तब जा के कहीं सरकारी कर्मचारियों को संतुष्टि मिली वरना पहले के क्रूर शासक तो कर्मचारियों को तनख्वाह में बढोतरी और मंहगाई भत्ता की मद मे पैसे दे-देकर बिगाड़ रहा था।
प्रभु जब अपनी लीला में व्यस्त थे, तभी कोरोना नामक एक देवी चीन से प्रभु की मदद को आ गयीं। अब सारे शहर गाँव गली कूचे में ताला लगा दिया गया।लोगों को तालों मे बंद करके आराम करने का आदेश हो गया।अब सर्वत्र शान्ति थी। लोग घरों मे बंद होकर चाट पकौड़ी, जलेबी, मिठाई का आनंद उठाने लगे।
रेलगाड़ी और हवाई जहाज जैसी विदेशी म्लेच्छो के साधन छोड़कर लोग पैदल ही सैकड़ों हजारों मील की यात्रा पर निकल पड़े।

फैक्ट्रियां, दुकानें सब बंद कर दी गयी। कामगारों को नौकरियों से निजात दे दी गयी। सबको गुलामों और घोड़ों की तरह मुँह पर पट्टा बाधना अनिवार्य किया गया, जो लोग 2014 के पहले के तमाम लौकिक सुखों से दुखी थे उनमें प्रसन्नता का सागर हिलोरे मारने लगा।
सर्वत्र स्वराज छा गया।

जनता जो 2014 से पहले आत्मनिर्भर थी, किसी सरकार की मोहताज नहीं थी, स्वावलंबी थी उसे सड़को, पटरियों, पगडंडियों पर चलाकर गावों में पैदल पैदल पहुंचा दिया। प्रभु की लीला तो देखिए, जो गर्भवती महिला पहले डॉक्टर के कहनें पर घर में पड़ी हुई रोटियां तोड़ती थी उन महिलाओं का ऐसा सशक्तिकरण कर दिया प्रभु ने कि वे ख़ुद ही सड़क किनारे बच्चे को जन्म देकर 160 किलोमीटर तक दौड़ रही हैं। ऐसा चमत्कार प्रभु के अलावा कोई नहीं कर पाया।
आपनें तो छोटे छोटे बच्चों को भी सशक्त और आत्मनिर्भर बना दिया है। हज़ारों, लाखों बच्चों को भी सड़कों पर अपनें माता पिता के साथ पैदल चलते देखा जा सकता है। कुछ बच्चे तो अपनें छोटे छोटे पैरों से साईकिल चलाकर परिवार को ढ़ोने में खुशी पा रहे हैं। आप धन्य हैं प्रभु।
ग़रीबों की प्रभु को इतनी चिंता और फ़िक्र है कि देश का सारा खज़ाना ही उन पर न्यौछावर कर दिया।
20 लाख करोड़ रुपये अमीरों को दे दिए प्रभु ने ताक़ि ये अमीर जीवनभर ग़रीबों को ग़ुलाम बनाकर रखें।

धन्यवाद प्रभु।

यदि प्रभु के सारे कृत्य वर्णन किये जाये तो सारे भारत की भूमि और सारी नदियों का जल भी लिखने के लिये कम पड़ जाये। थोड़ा लिखना बहुत समझना, आप तो खुद समझदार हैं।
आगे की लीला के लिए प्रभु के दूरदर्शन पर प्रकट होने की प्रतीक्षा करें उसके बाद करतल ध्वनि से स्वागत करते रहिये।

अन्ध भक्तों को tag जरूर कर दे इस पोस्ट पर ओर एक शेयर प्लीज! . .#आपका #बॉबी_भैया✌

जय हो महाजुमलेश्वर महाराज की।✍✍✍

साभार व्हाट्सएप यूजर।।।।

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