धर्म विहीन देश का अस्तित्व कितना सार्थक : विचारणीय

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चंडीगढ़ : 10 अक्तूबर : अल्फा न्यूज इंडिया डेस्क :-विश्व के सबसे बड़े पांच धर्म हैं हिंदूत्व, ईसाइयत, इस्लाम, बुद्धिज़्म और जुडिस्म (यहूदी धर्म)।

इन सभी धर्मो को अधिकारिक रूप से मानने वाला कोई ना कोई देश अवश्य है। अर्थात इन देशों ने अपने संविधान में अपना एक राष्ट्रीयधर्म (state religion) माना है। जैसे कि:-

#ईसाइयत:

इंग्लैंड, स्कॉटलैंड, जर्मनी, डेनमार्क, आइसलैंड, नॉर्वे, फ़िनलैंड, सायप्रस, ग्रीस, अर्जेंटीना, बोलीविया, कोस्टा रिका, अल साल्वाडोर, माल्टा, मोनाको, स्लोवाकिया, स्विट्ज़रलैंड और वैटिकन सिटी ने ईसाइयत को अपने राष्ट्रियधर्म के रूप में संविधान में जगह दी है।

#इस्लाम:

अफगानिस्तान, अल्जीरिया, बहरीन, बांग्लादेश, ब्रूनेई, कोमोरोस, मिस्र, ईरान, इराक, जॉर्डन, कुवैत, लीबिया, मलेशिया, मालदीव्स, मोरक्को, ओमान, पाकिस्तान, क़तर, सऊदी अरबिया, सोमालिया, तुनिशिया, UAE और यमन आदि देशों ने राष्ट्रियधर्म के रूप में इस्लाम को अपनाया।

#बौद्ध_धर्म:

भूटान, कंबोडिया, श्रीलंका, थाईलैंड आदि देशों ने खुल कर बोद्ध धर्म को अपने संविधान में अपना पथप्रदर्शक माना।

#जुडिस्म (यहूदी धर्म)

इसराइल देश विश्वभर से विस्थापित हो रहे अंसख्य यहूदियों के लिए एकमात्र शरणस्थली बना और फिर इसराइल ने अपने संविधान में भी अपने धर्म को जगह दी।

#हिन्दू

निल बटे सन्नाटा ।

पुरे विश्व में एक भी हिन्दु देश नहीं है (अधिकारिक रूप से)। हिन्दू एक देशरहित धर्म है (Hinduism is a stateless religion)। आखिरी हिन्दू देश नेपाल था जो की अंततः 2006 में माओ के बलि चढ़ा दिया गया।

यदि पुरे विश्व में कहीं कोई इसाई प्रताड़ित होता है तो इंग्लैंड उसकी मदद को आता है। यदि कोई मुस्लमान प्रताड़ित होता है तो UAE आवाज उठाता है। और यदि कहीं किसी यहूदी पर अत्याचार होता है तो इसराइल बीच में आता है। लेकिन आप कहीं भी अपनी सुविधा अनुसार किसी भी हिन्दू को प्रताड़ित कर सकते हैं। कोई कुछ नहीं कहेगा। क्योंकि भाइयों, जिस धर्म को अपना मानने वाला कोई देश ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में नहीं है उस धर्म के अनुयाइयों की क्या औकात है।

क्या आपको पता है यदि पुरे विश्व में कहीं से कोई यहूदी अगर विस्थापित होता है, या किसी कारणवश वह देशविहीन (stateless) हो जाता है तो वो प्राकृतिक रूप से इसराइल का नागरिक हो जाता है।
इसराइल उसे बिना किसी शर्त के अपनाएगा।

क्यों ?

क्योंकि वो उनका धर्मभाई है। क्योंकि वो यहूदी है। और क्योंकि यहूदी धर्म ही उनका राष्ट्रधर्म भी है।

लेकिन यदि किसी हिन्दू के साथ ऐसा कुछ होता है, तो ?
तो भारत तो उसे नहीं अपनाएगा।

क्यों ?

क्योंकि उसे अपनाएगा तो फिर बंगलादेशियों को भी अपनाओ वाला तर्क दिया जाएगा। सवाल उठाए जाएंगे कि अगर पाकिस्तान या बंगलदेश से प्रताड़ित हिन्दुओं को अपना रहे हो तो मयन्मार से विस्थापित रोहिंग्या मुसलमानों को क्यों नहीं अपनाया था ?

ऐसे तर्क संवेधानिक रूप से सही भी होंगे क्योंकि संविधान के अनुसार हमारे राष्ट्र का कोई धर्म नहीं है। भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है जी किसी धर्म को नहीं मानता या यूँ भी कह सकते हैं कि हर धर्म को समान रूप से मानता है। परन्तु क्या ऐसा हकीकत में है ?

बिल्कुल नहीं। क्योंकि भारत 60 वर्षो तक एक ऐसा देश बन कर रहा है जिसे हर धर्म की पीड़ा दिखाई देती है सिवाय हिन्दू पीड़ा के।

ऐसे परिदृश्य में यदि ममता दीदी आपको कुछ आंशिक प्रतिबंधों के साथ ही सही, अगर त्यौहार मनाने की इज़ाज़त दे रही है तो आप लोगों को उनका अहसान मानना चाहिए। वो तो शुक्र मनाओ डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर जी का जो संविधान में भारत को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बना गए। इसीलिए आज आपको हिन्दू त्यौहार मानने की छूट तो है भले ही कुछ प्रतिबंधों के साथ हो। मत भूलो कि आप एक देशरहित धर्म (स्टेटलेस रिलिजन) से वास्ता रखते हैं। भूल गये भारत के धर्मनिरपेक्ष इतिहास का वो स्वर्णिम दिन जब भारत के अब तक के सब से पढ़े लिखे प्रधानमंत्री ने कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों का हो ।

दुर्भाग्यवश, आज तक भारत वासियों को यही नामालूम है कि अल्पसंख्यकों की परिभाषा क्या है किस वर्ग के लिए है ।

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