चंडीगढ़ : 21 सितंबर : सोनिका क्रान्तिवीर/अल्फा न्यूज इंडिया प्रस्तुति :— “भारत में आपका स्वागत है, यहां की शुद्ध हवा में सांस लीजिए. गंगा जैसी पवित्र और साफ नदी में स्नान कीजिए, उसका पानी पिएं. दिल्ली स्थित यमुना में मछलियों को दाना डालिए, यमुना के साफ पानी का इस्तेमाल कीजिए. भारत दुनिया के सबसे ज्यादा प्रदूषण मुक्त देशों में से एक है यहां आपका स्वागत है.”
भारत की हवा और पानी कितना साफ है ये इसी बात से समझा जा सकता है कि दुनिया के 15 सबसे प्रदूषित शहरों में से 14 भारत में हैं. एक तरफ प्रदूषण बढ़ रहा है तो दूसरी तरफ Air purifier और Water Purifier की बिक्री भी भारत में बहुत बढ़ रही है. इसमें प्यूरिफायर बनाने वाली कंपनियों का तो फायदा है, लेकिन यकीन मानिए इसमें आम लोगों का बहुत बड़ा नुकसान है. साथ ही, ये सरकार की सबसे बड़ी नाकामी है जो शायद हम समझ नहीं पा रहे. रोटी, कपड़ा और मकान जिसे जरूरत समझा जाता है उससे भी बड़ी जरूरत है हवा और पानी. सांस लिए बिना दो मिनट नहीं बिता सकते, भूखा रहकर इंसान तीन हफ्ते तक जीवित रह सकता है, लेकिन प्यासा रहकर वो 1 हफ्ता भी नहीं बिता सकता. ये वैज्ञानिक फैक्ट हैं, लेकिन शायद रोटी, कपड़ा और मकान की जरूरत को अहम मानकर हम ये भूल गए हैं कि हवा और पानी कितना जरूरी है. साफ हवा और साफ पानी हर इंसान की जरूरत है, लेकिन इसका असर क्या हो रहा है? हमे मिल रहा है प्रदूषित पानी और प्रदूषित हवा. नहीं, माफ कीजिए Purified हवा और Purified पानी.
तो इसमें दिक्कत क्या है?
कई विज्ञापन हमें बताते हैं कि शुद्ध हवा और पानी पर हमारा हक है और वो हमें सिर्फ Air Purifier या Water Purifier से ही मिलेंगे. ये सही है कि शुद्ध हवा और पानी पर हमारा हक है, लेकिन वो सिर्फ इन मशीनों से ही मिलेंगे क्या? ये नाकामी है इंसानी दिमाग की कि अगर उसे 10 बार एक झूठ बोला जाए तो उसे ही सच माना जाता है. एक गूगल सर्च आपको बता देगी कि आखिर एयर प्यूरिफायर और वाटर प्यूरिफायर का नुकसान क्या है? क्यों इनके कारण हम नई-नई बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं? ये सही है कि दूषित हवा-पानी से भी कई तरह की बीमारियां फैलती हैं, लेकिन सादे पानी और हवा में कई तरह के मिनरल भी होते हैं जो इंसान के लिए जरूरी होते हैं. पर हम मशीनों पर इतने निर्भर हो गए हैं कि ये भूल ही गए कि ये मिनरल कितने जरूरी हैं जिन्हें ये मशीनें हमसे छीन रही हैं. खुद ही सोचिए, आखिरी बार आपने नल का पानी कब पिया होगा?
RO की बिक्री और समस्याओं पर हो चुकी हैं कई रिसर्च
Reverse Osmosis यानी RO एक ऐसा प्रोसेस है जिसमें पानी को प्यूरिफाई किया जाता है ताकि उसमें से कीटाणु और सॉलिड पदार्थ निकाले जा सकें. लेकिन इस प्रोसेस में जरूरी मिनरल और नमक (Mineral Salt) पानी से निकल जाते हैं और हमें मिलता है मरा हुआ पानी. भारत की बात करें तो यहां Water purifier market 24% की दर से आगे बढ़ रहा है. अगले दो सालों में ये सेल 2.5 मिलियन यूनिट से भी ज्यादा आगे बढ़ जाएगी. ये तब है जब आगरा, जोधपुर, वाराणसी, उदयपुर जैसे कई शहरों में भी अब इसकी बिक्री बढ़ गई है. Kent जो भारत में 40% मार्केट पर कब्जा किए हुए है उसका टर्नओवर 1000 करोड़ से भी ज्यादा हो गया है.
जहां एक ओर ये सब कुछ वाटर प्यूरिफायर की बिक्री से जुड़ा हुआ है वहां इसकी समस्याएं भी बहुत ज्यादा हैं.
NGT की रिपोर्ट बताती है वाटर प्यूरिफायर की समस्याएं-
National Green Tribunal यानी NGT ने सरकार को निर्देश जारी करते हुए एक रिपोर्ट तैयार की थी. ये इसलिए ताकि आरओ सिस्टम का अति में होने वाला इस्तेमाल कम हो सके. रिपोर्ट में साफ तौर पर निर्देश दिए गए थे कि जहां भी पानी में सॉलिड (total dissolved solids (TDS)) की मात्रा 500mg प्रति लीटर से कम हो वहां पर RO सिस्टम का इस्तेमाल बैन हो जाना चाहिए. इसी के साथ, रिपोर्ट में ये भी लिखा था कि सरकार लोगों को बिना मिनरल वाला पानी पीने के दुष्परिणामों के बारे में बताए.
इस रिपोर्ट में ये भी लिखा था कि सरकार ऐसा प्रावधान बनाए कि जहां भी RO का पानी इस्तेमाल हो रहा है वहां पर 60 प्रतिशत से ज्यादा बर्बाद हुआ पानी वापस इस्तेमाल में लाया जाए. जैसा कि आपको पता है अगर 1 लीटर पानी वाटर प्यूरिफायर में इस्तेमाल होता है और पीने लायक बनता है तो 1 लीटर ही वेस्ट भी होता है.
इस रिपोर्ट में ये भी आया है कि 13 राज्यों के 98 जिलों में पानी में TDS की मात्रा ज्यादा है वहां प्यूरिफायर बहुत जरूरी है, लेकिन बाकी जगह अन्य तरीके भी इस्तेमाल किए जा सकते हैं.
WHO की गाइडलाइन के मुताबिक TDS कंटेंट जो 300mg प्रति लीटर के नीचे है वो बेहद अच्छा समझा जाता है और 900mg से ऊपर बहुत खराब और 1200mg से ऊपर को तो इस्तेमाल ही नहीं करना चाहिए.
लेकिन भारत में ऐसे कई शहर हैं जहां ये मात्रा NGT की बताई मात्रा के हिसाब से है फिर भी वाटर प्यूरिफायर का इस्तेमाल इस तरह से हो रहा है कि पानी उसके बिना इस्तेमाल ही नहीं किया जा सकता. अगर ऐसा होता है तो यकीनन ये बहुत बड़ी समस्या है. कितना पानी साल में वाटर प्यूरिफायर के कारण खराब होता है? क्या किसी सरकारी विज्ञापन में ये दिखाया गया कि इसके नुकसान क्या हैं या फिर क्या आपके इलाके का नल का पानी शुद्ध है? नहीं बिलकुल नहीं. ऐसे में क्या उम्मीद की जाए साफ पानी की. साफ पानी की जगह हम तो शायद सिर्फ समस्याएं ही ले रहे हैं.
Air Purifier के हाल भी कुछ ऐसे ही हैं-
पूरी दुनिया में करीब 50 लाख लोग हर साल सिर्फ हवा में प्रदूषण के कारण मर जाते हैं. इसमें कई लोगों को बीमारियां हो जाती हैं. अगर सिर्फ भारत की बात करें तो 12 लाख से ज्यादा मौतें हर साल वायु प्रदूषण के कारण होती हैं. चीन और भारत दोनों में ही लोग इसके कारण मारे जाते हैं. PM2.5 पार्टिकल जो दिल्ली एनसीआर में दीवाली के समय रहता है वो कई लोगों की बीमारियों का कारण बनता है.
इस सब खतरे के आगे हम एयर प्यूरिफायर का इस्तेमाल करते हैं. कार में, ऑफिस में, घर में, लिफ्ट में, सभी जगह हवा को प्रदूषण मुक्त बनाने का काम चल रहा है. पर क्या कभी ये सोचा जाता है कि इनका असर क्या होता है? सबसे पहले तो अगर एयर प्यूरिफायर सही मटेरियल से नहीं बना है तो ये उल्टा असर करेगा. दूसरे कई तरह के एयर प्यूरिफायर सिर्फ Ozone बनाते हैं. यानी वो Ozone के कण हवा में फेकते हैं. ऐसे प्यूरिफायर बहुत आसानी से मार्केट में उपलब्ध हैं और लोग बिना सोचे समझे उन्हें ले भी लेते हैं. प्यूरिफायर बनाने वाले कहते हैं कि ये सभी तरह के बैक्टीरिया और खराब बदबू को खत्म कर देता है, लेकिन सच तो ये है कि कम मात्रा में Ozone कुछ असर नहीं दिखाएगा. लेकिन इसका लेवल इंसानों के लिए खतरनाक हो सकता है. US FDA ने Ozone का इस्तेमाल मेडिकल फील्ड में बंद कर दिया है. Ozone से सांस नली की समस्याएं हो सकती हैं और फेफड़ों में भी दिक्कत होती है.
अन्य तरह के एयर प्यूरिफायर आते हैं Air Ionizer जो सिर्फ charged ions हवा में फेंकते हैं. इससे बैक्टीरिया आदि दीवार पर चिपक जाते हैं. पर इनपर तो बाकायदा केस हो चुके हैं. इससे खतरा ज्यादा होता है न कि हवा प्यूरिफाई. ये जर्म्स के साथ-साथ धूल के कण और ऐसे ही खराब पदार्थ भी घर की दीवारों पर जमा देते हैं.
UV air purifiers के भी अपने नुकसान हैं. ये भी Ozone हवा में फैलाते हैं. लेकिन एक खराब यूवी एयर प्यूरिफायर जिसमें पारा (mercury) भरा होता है वो अगर थोड़ा सा भी गड़बड़ है तो हवा में पारा फैलेगा.
कितने बिकते हैं भारत में एयर प्यूरिफायर?
ऐसा माना जा रहा है कि भारत में एयर प्यूरिफायर सबसे ज्यादा तेज़ी से बिकने वाले होम अप्लायंस में से एक हैं. जो कुछ सालों पहले तक जरूरत नहीं समझे जाते थे वो अब 2.8-3 लाख के आंकड़े में हर साल बढ़ रहे हैं. यानी 30% की ग्रोथ. भले ही ये ज्यादा न समझा जाए, लेकिन कार के एयर प्यूरिफायर, ऑफिस और लिफ्ट, एसी और अन्य जगहों के एयर प्यूरिफायर मिला लें तो ये बेहद खतरनाक आंकड़ा बन जाएगा. एयर प्यूरिफायर अंदर की हवा तो फिर भी ठीक कर देते हैं, लेकिन बाहर और भी ज्यादा प्रदूषण फैलाते हैं. साथ ही एयर कंडीशनर की तरह ये भी माहौल को गर्म करते हैं.
पर लोगों के पास कोई और चारा नहीं इसे खरीदने के अलावा.
Purifier की बिक्री सरकार की नाकामी ही है..
भारत में जागरुकता की बहुत कमी है. गंगा को हम मां मानते हैं, लेकिन उसी को इतना प्रदूषित कर दिया है कि एक ताजा रिपोर्ट ने बताया कि गंगा का पानी अब न तो नहाने, न इस्तेमाल करने योग्य बचा है. वाराणसी और कलकत्ता जैसे शहरों में तो गंगा बहुत ज्यादा दूषित हो चुकी है. ऐसा ही हाल हवा का है. भले ही हम कितने भी प्यूरिफायर इस्तेमाल कर लें, लेकिन पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा के किसानों को सरकार ये नहीं समझा पा रही है कि वो पराली जलाना बंद कर दें. हर साल नवंबर-दिसंबर में दिल्ली गैस चेंबर बन जाता है, लेकिन हमें क्या हम तो एयर और वाटर प्यूरिफायर से खुश हैं. क्या ये नाकामी नहीं है सरकार की कि लोगों को इसके फायदे तो दिखते हैं, लेकिन इसकी खराबी नहीं दिखती. पर क्या करें हमारे देश में दुनिया की सबसे बड़ी मूर्ती तो बनाई जा सकती है, लेकिन लोगों को बीमारी, समस्या, प्रदूषण आदि के लिए जागरुक नहीं किया जा सकता है।। साभार सोनिका व्हाट्सएप।।