ॐ जय शिव ओंकारा” का मूल महत्व व मार्गदर्शन

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  • चंडीगढ़ 31 जुलाई : आरके शर्मा विक्रमा प्रस्तुति :—*”त्रिगुणास्वामी”*

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*”ॐ जय शिव ओंकारा”, यह वह प्रसिद्ध आरती है जो देश भर में शिव-भक्त नियमित गाते हैं..*

*लेकिन, बहुत कम लोग का ही ध्यान इस तथ्य पर जाता है कि, इस आरती के पदों में ब्रम्हा-विष्णु-महेश तीनो की स्तुति है..*

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*एकानन (एकमुखी, विष्णु) चतुरानन (चतुर्मुखी, ब्रम्हा) पंचानन (पंचमुखी, शिव) राजे..*

*हंसासन(ब्रम्हा) गरुड़ासन(विष्णु ) वृषवाहन (शिव) साजे..*

 

*दो भुज (विष्णु) चार चतुर्भुज (ब्रम्हा) दसभुज (शिव) ते सोहे..*

 

*अक्षमाला (रुद्राक्ष माला, ब्रम्हाजी ) वनमाला (विष्णु ) रुण्डमाला (शिव) धारी..*

*चंदन (ब्रम्हा ) मृगमद (कस्तूरी , विष्णु ) चंदा (शिव) भाले शुभकारी (मस्तष्क पर शोभा पाते है)..*

 

*श्वेताम्बर (सफेदवस्त्र, ब्रम्हा) पीताम्बर (पीले वस्त्र, विष्णु) बाघाम्बर (बाघ चर्म ,शिव) अगें..*

 

*ब्रम्हादिक (ब्राम्हण, ब्रम्हा ) सनकादिक (सनक आदि, विष्णु ) भूतादिक (शिव ) सगें (साथ रहते है)..*

 

*कर के मध्य कमंडल (ब्रम्हा) चक्र (विष्णु) त्रिशूल (शिव) धर्ता..*

*जगकर्ता (ब्रम्हा) जगहर्ता (शिव ) जग पालनकर्ता (विष्णु)..*

 

*ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका (अविवेकी लोग इन तीनो को अलग अलग जानते है)*

 

*प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनो एका (सृष्टि के निर्माण के मूल ओंकार नाद में ये तीनो एक रूप रहते है, आगे सृष्टि निर्माण, पालन और संहार हेतु त्रिदेव का रूप लेते है…)*

 

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*ॐ नमः शिवाय सभी का कल्याण हो ❤*

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