आधुनिक युग में असली जीवन पिछड़ा, सब कुछ बिछड़ा

Loading

चंडीगढ़ : 27 जुलाई : अल्फा न्यूज इंडिया डेस्क :—-
———सच सादगी का—————

छोटा सा गाँव मेरा पूरा बिग बाजार था…..!!
एक नाई, एक मोची,एक काला लुहार था…..!!
छोटे छोटे घर थे,हर आदमी बङा दिलदार था…..!!
कही भी रोटी खा लेते,हर घर मे भोजऩ तैयार था…..!!
बाड़ी की सब्जी मजे से खाते थे जिसके आगे शाही पनीर बेकार था….!!
दो मिऩट की मैगी ना,झटपट दलिया तैयार था…..!!
नीम की निम्बोली और शहतुत सदाबहार था…..!!

छोटा सा गाँव मेरा पूरा बिग बाजार था…..!!
अपना घड़ा कस के बजा लेते…..!!
समारू पूरा संगीतकार था…..!!
मुल्तानी माटी से तालाब में नहा लेते,साबुन और स्विमिंग पूल बेकार था…..!!
और फिर कबड्डी खेल लेते,हमे कहाँ क्रिकेट का खुमार था…..!!
दादी की कहानी सुन लेते,कहाँ टेलीविज़न और अखबार था…..!!
भाई -भाई को देख के खुश था,सभी लोगों मे बहुत प्यार था…..!!

छोटा सा गाँव मेरा पूरा बिग बाजार था…..!!
साभार एक वहाटस एप यूजर। ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

159071

+

Visitors