कुरुक्षेत्र : 14 : आरके शर्मा विक्रमा प्रस्तुति :—गुरु ही ज्ञान व ध्यान है। आप के पापाचार भरे जीवन रूपी तलवार के लिए गुरुवर ही मार्गदर्शक रुपी म्यान है।
आपने देखा होगा की जो हमारे पुराणों में वर्णित है की कोई भी ऋषि मुनि संत किसी को भी इतनी आसानी से शिष्य नहीं बनाते थे।
श्री सदगुरुदेव जी कभी भी ऐसे ही किसी को भी शिष्य धारण नहीं करते क्योंकि उस शिष्य के सभी पाप पुण्य श्री सदगुरुदेव जी को भी प्राप्त होते हैं क्योंकि उस शिष्य की चाहे वह अच्छा है या बुरा उसके इस जीवन के उद्धार की सारी की सारी जिम्मेवारी श्री सतगुरु देव महाराज जी पर आ जाती है ।
आप सभी गुरु पूर्णिमा के अवसर पर अपने श्री सतगुरु देव महाराज जी के चरणों में शीश नवाए वह प्रार्थना करें कि हमारे अच्छे-बुरे जैसे कर्म हैं आप उन्हें सुधारने की कृपा करें व मेरे सभी कर्मों को मेरे सभी पापों को अपने श्री चरणों में स्थान दें वह मेरे जीवन को मुक्ति की ओर अग्रसर करें ।
इसीलिए श्री सदगुरुदेव जी का महत्व भगवान से भी पहले आता है क्योंकि यह कहा जाता है कि अगर आप पाप और पुण्य करेंगे वैसे ही कर्म आपके गुरुदेव जी को प्राप्त होंगे साथ ही साथ आप जो भी पाठ मंत्र उच्चारण दान पुण्य करेंगे और उन में कोई त्रुटि रह गई जिस वजह से कोई कमी रह गई तो वह भी श्री सतगुरु देव जी के चरणों में जाएगा और उनके आशीर्वाद से वह त्रुटि त्रुटि नहीं मानी जाएगी।
यह कहा जाता है कि जिस जिस ने अपने जीवन में किसी संपूर्ण गुरु को धारण किया है वह अगर मंत्र उच्चारण या कोई धार्मिक कार्य या कोई भी पाठ गलत तरीके से करता है या उसमें कोई त्रुटि रह जाती है तो भी उसे दोष नहीं लगता क्योंकि श्री सतगुरु देव महाराज एक संपूर्ण गुरु होने के नाते उनकी गलतियां क्षमा करते हैं वह दोष और त्रुटि जो भी हो जैसे भी हो उसे स्वयं धारण करते हैं और अपने शिष्यों को भक्तों को हर तरह के दोष से व पाप से मुक्त रखते हुए उनके हर सत्कर्म का उन्हें संपूर्ण फल प्राप्त कराते है।
जय गुरु देव जी के पास रहो कभी मत उदास निराश हताश बेआस रहो– अल्फान्यूजइंडिया डोट इन ।।।