चंडीगढ़ : 2 जून : आर्थिक सुधारों के नाम पर श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी बदलाव किए और जन सेवाओं का निजीकरण किया तो सरकार को देश के कर्मचारी एवं मजदूरों के तीखे विरोध का सामना करना पड़ेगा। यह चेतावनी आल इंडिया स्टेट गवर्नमेंट इम्पलाईज फैडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुभाष लांबा ने रविवार को दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी के समापन पर बोलते हुए दी। उन्होंने कहा कि समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरों के मुताबिक नई सरकार के शुरुआती 100 दिनों श्रम कानूनों में पूंजीपतियों के हकों के मजदूर विरोधी बदलाव किए जाएंगे और सरकार नियंत्रित 42 सावृजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का निजीकरण किया जाएगा या उनको बंद करने का प्रस्ताव है।
उन्होंने कहा कि इस बात की तस्दीक नीति आयोग के वाईस चेयरमैन राजीव कुमार ने भी एक इंटरव्यू में की थी। पंजाब सबोर्डिनेट सर्विसेज फैडरेशन (पीएसएसएफ) वैज्ञानिक द्वारा आयोजित इस राष्ट्रीय कार्यकारिणी की मीटिंग में हरियाणा, पंजाब, चंडीगढ़, हिमाचल सहित 25 राज्यों एवं केंद्र शासित राज्यों के संगठनों के सेंकड़ों प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। पीएसएसएफ के राज्य प्रधान रविन्द्र लूथरा व महासचिव सुखदेव सैनी ने सभी राज्यों से आए प्रतिनिधियों का गर्मजोशी से स्वागत किया।
आल इंडिया स्टेट गवर्नमेंट इम्पलाईज फैडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुभाष लांबा व महासचिव ए.श्रीकुमार ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी के समापन के बाद रविवार को आयोजित पत्रकार वार्ता में बोलते हुए कहा कि केन्द्र में पुनः सत्तारूढ हुई एनडीए सरकार को लोकसभा चुनाव में मिले भारी जनमत का सम्मान करते हुए नव उदारवादी आर्थिक नीतियों की समीक्षा करनी चाहिए। जन सेवाओं का निजीकरण करने की बजाय इनको मजबूत करके आम आदमी को बेहतर जन सेवाएं प्रदान करने का कदम उठाने चाहिए। उन्होंने बताया कि केन्द्र एवं राज्य सरकारों में पचास लाख पद रिक्त पद पड़े हुए हैं। लेकिन सरकार इनको स्थाई भर्ती से भरने की बजाय आउटसोर्सिंग पर भर्तियां करने पर आमादा है। सरकार न तो अनुबंध आधार पर लगे कर्मचारियों को पक्का कर रही है और न ही उन्हें समान काम समान वेतन देने के प्रति गंभीर है।
तमाम संधर्षो के बावजूद केन्द्र सरकार जनवरी,2004 के बाद सेवा में आए कर्मचारियों पर पुरानी पेंशन स्कीम में लागू करने को तैयार है। उन्होंने बताया कि सरकार विदेशी निवेशकों के लिए अच्छा माहौल बनाने के नाम पर श्रम कानूनों में पूंजीपतियों के हकों में बदलाव करने वाली है। 44 केन्द्रीय श्रम कानूनों को 4 कोड में बदला जा रहा है। सावृजनिक क्षेत्र की इकाइयों को बंद करके उनकी जमीनों को कौड़ियों के भाव में देशी व विदेशी पूंजीपतियों के हवाले करने के प्रयास किए जा रहे हैं। बिजली एवं ट्रांसपोर्ट सेक्टर को विशेष तौर पर निशाना बनाया जा रहा है। उन्होंने बताया कि मीटिंग में दिसंबर महीने में राष्ट्रीय जरनल कौंसिल आयोजित करने का फैसला लिया गया।