भारत माँ के सीने पर अपनों की आज गद्दारी से मातम का रंग बिखरा है !
कहने को है खूब महंगाई, फिरभी कदम कदम पर इमां बिक रहा है
बेटे रणबाँकुरे हो रहे हैं शहीद, बेबस माँ का ही आँचल सिसक रहा है !!
बहिने हाथ में लिये थी राखी,विधवा हो गई अब तो होली और वैशाखी !
अपनों ने खेला विश्वासघात का खेल, पुरे परिवार में माँ रह गई एकांकी !!
कौन है जो छलिया कर रहा माँ बहिनों बेटियों सुहागिनों से फरेब !!
किस ने किस के निरीह निर्दोष दामन पर डाली है दमन की ही जरेब !!!
कौन, जो दुःख वियोग झेलते बूढ़े बाप के कंधे पर हाथ धरेंगे या बैठक ही करेंगे !
कौन हैं जो इनके जख्मों पर मरहम का दम भरेंगे,नारे नहीं, या मदद कुछ करेंगे !
सूनी कलाई रह जाती तो भला था, माँ का पूत अपाहिज ही रह जाता तो भला था
किया विभीषण ने विनाश, इकलौता दीप बुझा, किया वंश नाश, विध्वंशक विकास !!
चंद पल भी नेता नौटंकी गमगीन रह न सके, तोपों की गूँज में बाप बेटा फफक न सके !
उजड़ी मांग लिए, गोद में सुहाग की अंश उठाये, ये वीरबाला मर कर मर भी न सके !!
धन्य धरा भारत की, धन्य तेरी वीरांगनाएं ,जो शक्ति हों शहीद की, गीत देशभक्ति के ही गायें !
रिपु का न धरते फ़िक्र,मरते भी करते तिरंगे का जिक्र, आओ! राज, शहीदों की गाथाएं गायें !!
आरके शर्मा विक्रमा /अल्फ़ा न्यूज इंडिया |