ईसाइयों मुसलमान कसाइयों में असली फर्क सबसे छुपा

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चंडीगढ़ गाजियाबाद मुम्बई 10 दिसंबर 2025 अनिल शारदा पंकज राजपूत दिलीप शुक्ला अरुण कौशिक प्रस्तुति –***असम में एक ईसाई मिशनरी भेजे गए थे, नाम था फादर क्रूज।उन्हें वहाँ एक प्रतिष्ठित परिवार के बच्चे को घर जाकर अंग्रेज़ी पढ़ाने का अवसर मिला। यह मौका मिलते ही पादरी साहब ने घर-परिवार का ध्यान से निरीक्षण करना शुरू कर दिया।जल्द ही उन्हें समझ आ गया कि इस घर की असली प्रभावशाली शक्ति बच्चे की दादी हैं। उनके मन में तुरन्त योजना बनी—अगर दादी को ईसा मसीह की बातों में फँसा लिया जाए, तो पूरे परिवार और फिर पूरे गाँव को भी धर्म परिवर्तन कराया जा सकता है।इसके बाद वे दादी को ईसा मसीह के “चमत्कारों” के बारे में समझाने लगे—कैसे ईसा कोढ़ियों का रोग ठीक कर देते थे,कैसे अंधों को दृष्टि दे देते थे,और न जाने क्या-क्या…दादी मुस्कराईं और बोलीं—“बेटा, हमारे राम और कृष्ण के चमत्कारों के आगे ये सब बहुत छोटा है। तुमने सुना है? हमारे राम ने सिर्फ एक स्पर्श से पत्थर को जीवित स्त्री में बदल दिया था। राम जी के नाम का असर इतना था कि पत्थर भी पानी पर तैर जाते थे—आज भी तैर रहे हैं।”पादरी साहब हर बार निरुत्तर रह जाते, पर अपनी कोशिशें नहीं छोड़ते।एक दिन वे चर्च से एक केक लेकर आए और दादी को खाने को दिया। उन्हें पूरा यकीन था कि दादी इसे छुएँगी तक नहीं। पर उनकी उम्मीद के विपरीत दादी ने केक लिया और खा भी लिया।यह देखकर पादरी के चेहरे पर घमंडी खुशी फैल गई।वे बोले—“माताजी, आपने चर्च का प्रसाद खा लिया। अब आप ईसाई हो गई हैं।”दादी ने उनके कान पकड़ते हुए झिड़का—“अरे अधर्मी! एक दिन तूने मुझे केक खिला दिया तो मैं ईसाई हो गई? और मैं तुझे रोज़ अपने घर का खाना देती हूँ, तो तू हिंदू क्यों नहीं हुआ? तू तो हर दिन इस सनातन भूमि की हवा पानी लेता है—तेरा रोम-रोम हिंदू बन जाना चाहिए था!”अपने धर्म और अपनी भूमि की रक्षा करने वाली वही दादी थीं—असम की महान स्वतंत्रता सेनानी कमला देवी हजारिका।दुर्भाग्य से, असम के बाहर कितने लोग उनका नाम जानते हैं?हमारा कर्तव्य है कि पूरा देश उनकी वीरता और बुद्धिमत्ता से परिचित हो।ll

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