होली के रंग इस्लाम मजहबियों की रोज़ी रोटी का जरिया फिर नफ़रत कहां

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चंडीगढ़ गाजियाबाद जयपुर 14 मार्च 2025 आरके विक्रमा शर्मा दिलीप शुक्ला एडवोकेट विनीता गुप्ता— कौन कहता है कि मुसलमान रंगों से परहेज करता है। होली के रंगों से नफरत करता है। सही मायने में देखा जाए तो आज से कई सैकड़ो साल पहले अनेकों मुसलमान परिवारों की रंगरेजों की यही रंग रुचि रोटी का जरिया था और आज भी है लेकिन आज हर सुविधा संपन्न सरकार से नाना प्रकार की सुविधाओं से लेवरेज मुसलमान हिंदुओं की होली के रंग से परहेज कर रहा है। लेकिन उसका रंगों का निर्माण करने का कारखाना पिचकारियां बनाने का कारखाना और इनको पैक करने के गत्तों के कारखाने पुरजोर कमाई कर रहे हैं। यहां इनको हिंदुओं के रंगों से कोई नफरत नहीं है। बस होली खेलने वाले दिन इन पर रंग नहीं डालना चाहिए। यह ओछी मानसिकता अभी से ही शुरू हुई है। मुसलमान बादशाह लोग गुलाल गोट से होली खेलते थे तब रंगों से किसी को कोई नफरत या परहेज नहीं था। क्योंकि तब घिनौनी राजनीति नहीं थी। गुलाल गोटे से राजा महाराजा और अच्छे घरानों से लेकर गरीब घरों तक लोग होली खेलते थे। यह बहुत नाजुक से, रंग अपने अंदर भर अंडे से होते हैं लेकिन किसी के सर पर भी करने पर चोट नहीं देते हैं उल्टा रंगों की फुहार खुशी उमंग आपसी भाईचारा का संदेश देते हैं। जयपुर में आज भी गुलाल गोट बनाए जाते हैं हिंदू लोग इन मुसलमान की रोजी-रोटी बढ़ाते हैं और इसे ही गुलाल गोटे से खरीदने हैं हालांकि गुलाल गोटे की जगह पिचकारियों ने गुब्बारे ने ले ली है। लेकिन गुलाल गोटे से होली खेलने का अपना ही आनंद और गर्व है।
300 साल पुराने समय में राजा महाराजा लाख से बने हुए गुलाल गोटे से खेलते थे। होली के रंग आज भी मनियांरो के बाजार जयपुर में चौड़ा रास्ता में यह गुलाल के गोटे मिलते हैं। पता है दुकान नंबर 51 असली रंग गुलाल के रंग🙏।।

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