चंडीगढ़ गाजियाबाद मुम्बई जेसलमेर 01.03.2025 अनिल शारदा दिलीप शुक्ला अरुण कौशिक चन्द्र भान सोलंकी प्रस्तुति — अलर्ट होशियार अलर्ट होशियार अलर्ट होशियार —पैसे खर्च करके “छावा” देखना टाइम और पैसा दोनो बर्बाद करना है….।जिस दृश्य को हम अपने गांव शहर में मुफ्त में लाइव देख रहे हैं उसको फिल्म बनाकर बड़े पर्दे पर पैसे खर्च कर “छावा ” देखने में क्या मतलब है? ‘छावा’ तो ब्लैक एंड वाइट जमाने की फ़िल्म है डायरेक्टर ने तो इसे कलरफुल बना दिया है… पब्लिक लाल खून देखकर बेचैन हो रही है जबकि खून का रंग तो ब्लैक एंड वाइट के जमाने में भी लाल ही होता था……! ये फिल्म अफगान में 100 वर्षो से, पाक में 70 वर्षो से,बांग्लादेश में लाइव धूम धड़ाके से चल रही है….. कश्मीर में 45 वर्ष पूर्व, संभल में 40 साल से, कैराना में 25 साल से और दिल्ली वाले 4 वर्ष पहले ही इसका ट्रेलर देख भी चुके है….₹500 खर्च करके छावा देखने से अच्छा है कि ₹100 की बिरयानी लेकर अब्दुल को अपने घर आमंत्रित कीजिए कुछ दिनों में छावा आपके घर पर खुद ही रिलीज हो जाएगी …….! काफिर जेहादी वहशी मानसिकता वाले से डर नहीं है। डर है तो घर के भीतर छिपे आस्तीन के सांपों और दोगले हिंदुओं से।। सबसे पहले इनका सर्वनाश यानी समुद्र करना होगा। और उनकी हर गतिविधियों से अपने आसपास की पुलिस को जरूर वाकिफ करवाते रहें।। शुभ भवतू।वंदे मातरम। साभार।।
