गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर गुरु के आगे हुए नतमस्तक सभी

Loading

 चंडीगढ़ ; करण शर्मा  / मोनिका शर्मा ;—- आज गुरु पूर्णिमा का पवन दिवस है ! मातापिता जन्म देते हैं पर उस जन्म  को सार्थक और उसका सदुपयोग करना तो गुरु ही सिखाता है ! यानि जीने की कला हम गुरु से ही ग्रहण करते हैं ये सद्विचार पंडित रामकृष्ण शर्मा, धर्म प्रज्ञ ने गुरु महिमा की बखानी भजनों की जुबानी श्री हनुमान मुनि मंदिर सेक़्टर 23 चंडीगढ़ में करते हुए व्यक्त किये ! गुरु का दर्जा भगवान से भी सर्वोपरि और सर्वसम्मानीय है ! इसी लिए जिस भी आमुक ने 
आपको ज्ञान दिया  कोई जानकारी दी वो गुरु तुल्य धर्म शास्त्रों में कहा गया है ! गुरु का अपमान सर्वनिंदनीय है सो गुरु का आदेश मानें उनका सद्सम्मान करें और गुरु घर की मर्यादा का विशेष ध्यान रखना गुरु के प्रिय बनने के सरल सहज गुण हैं !  

भक्त समाज में भक्त वीर हनुमान जी भक्त शिरोमणि हैं उसी भांति संत समाज के संत शिरोमणि संत कबीर हैं; संत कबीर फरमाते हैं ;– 
‘हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहिं ठौर॥’


अर्थात् भगवान के रूठने पर तो गुरु की शरण रक्षा कर सकती है किंतु गुरु के रूठने पर कहीं भी शरण मिलना संभव नहीं है। जिसे ब्राह्मणों ने आचार्य, बौद्धों ने कल्याणमित्र, जैनों ने तीर्थंकर और मुनि, नाथों तथा वैष्णव संतों और बौद्ध सिद्धों ने उपास्य सद्गुरु कहा है उस श्री गुरु से उपनिषद् की तीनों अग्नियां भी थर-थर कांपती हैं। त्रैलोक्यपति भी गुरु का गुणनान करते है। ऐसे गुरु के रूठने पर कहीं भी ठौर नहीं। अपने दूसरे दोहे में कबीरदास जी कहते है ;–

‘सतगुरु की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार लोचन अनंत, अनंत दिखावण हार’ 

अर्थात् सद्गुरु की महिमा अपरंपार है। उन्होंने शिष्य पर अनंत उपकार किए है। उसने विषय-वासनाओं से बंद शिष्य की बंद आंखों को ज्ञान चक्षु द्वारा खोलकर उसे शांत ही नहीं अनंत तत्व ब्रह्म का दर्शन भी कराया है। आगे इसी प्रसंग में वे लिखते है।

‘भली भई जुगुर मिल्या, नहीं तर होती हांणि।
दीपक दिष्टि पतंग ज्यूं, पड़ता पूरी जांणि। 

अर्थात् अच्छा हुआ कि सद्गुरु मिल गए, वरना बड़ा अहित होता। जैसे सामान्यजन पतंगे के समान माया की चमक-दमक में पड़कर नष्ट हो जाते हैं वैसे ही मेरा भी नाश हो जाता। जैसे पतंगा दीपक को पूर्ण समझ लेता है, सामान्यजन माया को पूर्ण समझकर उस पर अपने आपको न्यौछावर कर देते हैं। वैसी ही दशा मेरी भी होती। अतः सद्गुरु की महिमा तो ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी गाते है, मुझ मनुष्य की बिसात क्या?
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरु साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरुवे नमः ॥
 संकलन कर्ता ; सतीश चन्द्र शर्मा /प्रस्तोता; आरके शर्मा विक्रमा 

—————————————— 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

142222

+

Visitors