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चंडीगढ़ 11 जनवरी 2025 आर विक्रमा शर्मा अश्विनी शर्मा हरीश शर्मा अनिल शारदा — शंभूबॉर्डर पर हरियाणा हिमाचल पंजाब और उत्तरप्रदेश के किसान आंदोलन पर हैं। जहां अधिकतर आंदोलनकारी किसानों को आंदोलन को लेकर विषयगत विशेष जानकारी नहीं है। फिर भी किसान भाइयों के साथ कंधे से कन्धा मिला साथ बैठे हैं। आंदोलन लंबा लंबा चलनेके कारण किसानों में हताशा निराशा और मायूसी आना स्वभाविकता है। शारीरिक और मानसिक स्तर पर भी कमजोरी आने के कारण पर भी किसानों का आत्मिक बल अडिग है। इसी के चलते किसानों में आत्महत्या की ओर बढ़ते कदम सोचनीय और दयनीय हैं। 14 दिसंबर को किसान रणजोध सिंह ने सल्फास निकला था चार दिन बाद राजेंद्रा अस्पताल पटियाला में दुखद मौत हो गई थी। किसान पूरी तरह मानसिक तनाव में था की दिल्ली के लिए किसान कूच कर पाने में क्यों असमर्थ हैं। और अब 9 जनवरी 2025 को शंभू और खनोरी बॉर्डर पर रेशम सिंह किसान ने सल्फास निकला था अस्पताल में उसकी मौत हो गई है उससे पहले किसानों ने खुद उसको प्राथमिक चिकित्सा उपलब्ध करवाई थी। यह किसान रेशम सिंह तरण तारण जिले के पहुभिंड गांव का निवासी था। किसानों के अनशन पर अनेकों बार सुप्रीम कोर्ट ने भी संज्ञान लिए हैं। लेकिन किसानों को आत्महत्या से रोकने में सुप्रीम कोर्ट के सख्त आदेश भी काम नहीं आ रहे हैं। अल्फा न्यूज़ इंडिया की दोनों ओर को विनम्र गुहार है कि आपस में बैठकर शांति में वातावरण में एक सर्वमान्य हल निकाला जाए। आंदोलनसे किसानों को भरपूर फायदा होगा लेकिन आज इन दिनों में आम जनता को बहुत मुश्किल हालातों से गुजरना पड़ता है। यातायात अवरुद्ध होने से दुकानदारों को उद्योगपतियों को दिहाड़ी दारों को नौकरी पेशा लोगों को मुसीबतों से छुटकारा पाना मुश्किल हो गया है। अधिकतर आम जनता अब किसानों के आंदोलन से दुखी पीड़ित हो चुकी है। लोगोंको हैरानी हुई कि सिर्फ पंजाब हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान ही इस मांग के पीछे परेशान और दुखी हैं और बाकी देश के क्यों नहीं।। और अगर किसान इतने लंबे अरसे से आंदोलन पर बैठे हुए हैं तो उनके खेतों में काम करने वाले लोग आखिर कौन है। और आंदोलन से मिलने वाले लाभ से उन खेतों में काम करने वालों को क्या लाभ दिया जाएगा क्या किस उनके साथ इंसाफी करेंगे। आने वाले कलमें यह एक यक्ष प्रश्न बनकर उभरेगा। और किसानों और कामगारों में एक नई जंग को जन्म देगा।। जिस तरह आज किसानों के आंदोलन से सरकार तिलमिला रही है। कल ऐसे ही खेतों में काम करने वाले दिहाड़ीदार व कामगर लोगों के आंदोलन से किसान प्रभावित होंगे। खेतिहर मजदूर जब अपने हिस्से की बढ़ी हुई दिहाड़ी मजदूरी की रकम की खुलकर मांग करेंगे।


