चंडीगढं -3/12/24– अल्फा न्यूज़ इंडिया डेस्क — स्थानीय गांव धनास के मिल्क कलोनी स्थित श्रीमदभागवत कथा सनातन धर्म मन्दिर में आयोजित तृतीय दिन पर व्यासपीठ पर विराजमान परम पूज्य आचाय श्री तिलकभाणी जी ने बताया कि जीवन में जीने की कला रामायण. सोळाली है। और भागवत मरना (सिखाती है। जिस प्रकार राजा परीक्षित को श्राप मिलने पर घरवार छोड़ गंगा जी के पावन तट पर पहुंचकर हरि नाम का सिमरन किया। उसी प्रकार सभी प्राणियों को अपने जीवन को सफल बनाने के लिए प्रभू नाम का सिमरन करना चाहिए। राभागण कलियुग केवल नाम अध्धारा। सुमिर सुमिर पर उत्तरहि पारा। उन्होंने आगे कथा कहते हुए बताया कि पति-पत्नी एक दूसरे के पूरक है। यदि इन दोनों में किसी एक की बुद्धि में संशय आ गया तो गृहस्थि नही चल सकती। सता – शिन का प्रसंग गहरी शिक्षा देती है। घुद्ध वालक के जैसे प्रभु पाश के चरणों में अटूट विश्वास होना चाहिए। यदि हमारा विश्वास और निस्क्य जून के जैसा हो तो राक्षसकुल में उत्पन्न होने पर वहा जीव तर जाता है। कथा कहते हुए आचार्य जी ने बताया कि माता पिता की सेवा नर्तमान समय में अति आवश्यक है। तथा हमारा परम कर्तव्य है कि हम अपने कार्यों को धर्म की शिक्षा का ज्ञान कराएं। यद्यपि शिक्षा तो अच्छी दे रहे है। परन्तु संस्कार लुप्त होते जा रहे हैं। संस्कारों के महत्व सभी अपने बच्चों को समझाएं। इस अवसर पर सैकड़ों की संख्या में उपस्थित भक्तजनों ने कथा का श्रवण किया तथा भजन का आनन्द लिया।