विदेशी चकाचौंध में धंसती युवा पीढ़ी कंधों को तरसतीं मां बाप की सड़ती लावारिस लाशें

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चंडीगढ़ 30 नवंबर आरके विक्रमा शर्मा अनिल शारदा आधुनिक शिक्षित परिवेश में युवा पीढ़ी विदेशी चकाचौंध में धंसती जा रही है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के नौजवान विदेशी लोगों की जी हजूरी करने के लिए तत्पर उत्सुक रहते हैं। विदेशी पहरावे खानपान वहां के लाइफ स्टाइल के इतने घायल हो जाते हैं कि अपने वृद्ध मां-बाप को भी ठोकर मारधार किनारे कर देते हैं। मजबूरन यह मां-बाप बदकिस्मती से लावारिस की तरह जिंदगी जीते हैं। अपनी संतानों की इंतजारमें उनके आखरी दीदार को तरसते हुए बीमारियों में तड़पते हुए अपने प्राण त्याग देते हैं। उनकी लाश को कंधा देने वाला भी नसीब नहीं होता है। शुक्रिया भारत की सभ्यता और संस्कृति सहित मानवता सिखाती सनातन पद्धति का ।। भारत देश में आज भी इंसानियत जिंदा है और समाज सेवा में अग्रणी रहने वाले मानवता प्रेमी इस धरा पर मौजूद हैं।। अगर खुद समझदार नहीं है तो हालात और वाक्यातों से सबको सबक लेना चाहिए। लौट आओ, अपने मां-बाप के पास ताकि वह लबारिश तो ना मरें।।

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