चंडीगढ़ मुंबई 06 नवंबर आरके विक्रमा शर्मा अनिल शारदा प्रस्तुति —– सन्नाटा पैदा करने वाला सवाल ही यही है कि सन्नाटा क्या होता है? भारत माता का वीर योद्धा फील्ड मार्शल सैम बहादुर मानेकशॉ एक बार अहमदाबाद में एक जनसभा को सम्बोधित कर रहे थे। सम्बोधन की भाषा अंग्रेजी ही थी। जनसभा की भीड़ में हूटिंग शुरू हो गयी, “गुजराती में बोलिये!” कोई खड़ा होकर चिल्लाया, “हम आपको तभी सुनेंगे जब आप गुजराती में बोलेंगे। “फील्ड मार्शल सैम बहादुर मानेकशॉ साहब रुक गए। अपनी गम्भीर और गहरी नज़रों से श्रोताओं को निहारते हुए बोले, “मेरे दोस्तों, मैंने अपने लम्बे सेवाकाल में कई युद्ध लड़े हैं। इस दौरान मैंने पंजाब की सिख रेजिमेंट से पंजाबी सीखी। मराठा रेजिमेंट से मराठी सीखी। मद्रास सैपर्स से तमिल भाषा सीखी। बांग्ला मैंने बंगाल सैपर्स से सीखी। बिहार रेजिमेंट ने विशुद्ध हिंदी सिखाई। यहाँ तक कि मैंने गोरखा रेजिमेंट से नेपाली भाषा भी सीखी।” “दुर्भाग्यवश, गुजरात से मुझे एक भी सिपाही कभी भी न मिला। जिससे मैं, गुजराती सीख पाता।” अब पूरे जन समूह में ऐसा सन्नाटा पसर गया था कि एक सुई के गिरने की आवाज़ भी सुनी जा सकती थी। ऐसे सच्ची सादगी भरी जिंदगी को सबक़ सिखाती बात कहने का बल साहस और आत्मविश्वास भी भारत माता के वीर देशभक्त सपूत के सिवा और किसी में कभी हो ही नहीं सकता। ऐसे जांबाज सूरमे को कृतज्ञ राष्ट्र का सदैव नमन है।