चंडीगढ़- 8 अक्टूबर– आरके विक्रमा शर्मा/अनिल शारदा हरीश शर्मा बीरबल शर्मा — देश के जाने-माने अस्पतालों में पीजीआई का नाम अग्रणी श्रेणी में है। बीती रात पीजीआई इमरजेंसी में मरीज के तीमारदारों और रेजीडेंट डॉक्टरों में जो झगड़ा और बेफिजूल का ड्रामा हुआ। उसने पीजीआई सहित चंडीगढ़ प्रशासन पर अनुशासनात्मक और सुव्यवस्थित प्रबंधों को लेकर यक्ष प्रश्न खड़े कर दिए हैं। बहरहाल एक बानगी में देखा जाए तो डॉक्टरों की यह कथित बेफिजूल की गुंडागर्दी आधारहीन है। डॉक्टर्स ने मरीजों को मौत के हवाले छोड़कर एस्मा जैसे कानून को दर किनारे करते हुए मनमर्जी की हदें लांगी हैं। ऐसे सीधे आरोप भक्ति भोगियों ने और प्रत्यक्ष दर्शियों ने लगाए हैं। पुलिस अफसरों और पीजीआई के डायरेक्टर प्रोफेसर विवेक लाल ने दूरदर्शिता दिखाते हुए और स्थानीय सीनियर रेजीडेंट डॉक्टरों ने तालमेल बिठाते हुए सबको समझाया। तब जाकर 4 घंटे की मशक्कत के बाद आधी रात बीतने पर पीजीआई में सेवाएं शुरू हुईं। इस दौरान कितने रोगियों ने छटपटाहट में इलाज के इंतजार में जान गंवा दी या अस्पताल में पहुंचने के बावजूद भी असहनीय कष्ट सहे ये सब सरकारी आंकड़े बता रहे हैं। और कैमरा की फुटेज बता रही हैं ।लेकिन एक छोटी सी बात को लेकर डॉक्टरों ने खुद को थप्पड़ मारे जाने के झूठ भी कहे जो सीसीटीवी कैमरा की फुटेज में कहीं नहीं पाए गए। पुलिस को जबरदस्ती मरीजों के तीमारदारों पर केस दर्ज करने के लिए दबाव डाला गया लेकिन पुलिस ने झूठा पर्चा दर्ज नहीं किये। लेकिन डॉक्टरों ने अपने सीनियर रेजीडेंट डॉक्टरों को और अपने डायरेक्टर तक को इतला तक नहीं की। और खुद ही बहसबाजी आदि में उलझे रहे। सीरियस पेशेंट आदि की देखरेख का टाइम बेफिजूल की धौंस दिखाने में बिताते रहे। यह सभी की समझ से परे का सवाल है। डॉक्टरों के दिल यह देखकर भी नहीं पसीजे कि अमुक मरीज के दिमाग की नस फटी हुई है। कोई 60+ साल के एंबु बैग मरीज मौत और जिंदगी में झूल रहे हैं। डॉक्टरों की इस लापरवाही की चारों ओर निंदा हो रही है लेकिन पीजीआई के डायरेक्टर प्रोफेसर विवेक लाल और सीनियर रेजीडेंट डॉक्टरों की व स्थानीय सेक्टर 11 पुलिस स्टेशन अधिकारियों की व पीजीआई पुलिस चौकी के कर्मियों की सरहाना हो रही है। जिन्होंने सभी को बड़े अनुशासित और सम्मानित ढंग से शांत किया। कई पुलिस वाले मरीजों को सांत्वना देते भी देखे गए। और ऐसे में सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर्स भी पेशंटों से मिलते देखे गए। यह इंसानियत की बहुत अच्छी मिसाल है। लेकिन ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर ने जो हंगामा किया उस पर संज्ञान लेना सबसे भी ज्यादा जरूरी है। ताकि अनुशासन और डॉक्टरों का परमात्मा के बाद दूसरा दर्ज बना रहे। और दोषी डॉक्टरों पर पुलिस कार्रवाई ना करते हुए विभागीय अनुशासनात्मक कार्यवाही अवश्य होनी चाहिए यह स्थानीय बुद्धिजीवी वर्ग का कहना है।। ताकि सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन की भी अनदेखी भविष्य में ना की जाए। हाल ही में कोलकाता डॉक्टर रेप केस में हड़ताल पर गए डॉक्टरों को सुप्रीम कोर्ट ने फटकारा था। और कहा था कि कुछ सेवाएं 24 घंटे निरंतर कार्यरत रहने वाली हैं। उसमें कोई ढील व लापरवाही तक नहीं बरती जानी चाहिए।