चंडीगढ़, 29 अगस्त आरके विक्रमा शर्मा प्रस्तुति — एक अभूतपूर्व चिकित्सा प्रगति में, फोर्टिस हॉस्पिटल मोहाली ने फोर्टिस अस्पताल मोहाली ने जीवित दाता और मृतक दाता पर क्षेत्र का पहला एबीओ इन्कम्पैटेबल ट्रांसप्लांट ( ब्लड ग्रुप मैच हुए बिना मरीज का अंग प्रत्यारोपण ) कर नई उपलब्धियां स्थापित की हैं। ये उपलब्धियाँ अस्पताल के लिए नए मील के पत्थर साबित हुई हैं, जिससे यह उत्तर भारत में ट्रांसप्लांट सर्जरी में अग्रणी बन गया है।
पहले मामले में, फोर्टिस टीम ने ब्लड़ ग्रुप के न मिल पाने केे बावजूद दाता पत्नी का लीवर उसके पति को सफलतापूर्वक प्रत्यारोपित किया। दूसरे मामले में, एक ब्रेन-डेड मरीज के परिवार ने सफल परिणामों के साथ दो प्राप्तकर्ताओं को उसका लीवर और किडनी दान की।
अंग प्रत्यारोपण टीम में डॉ. जय देव विग, डॉ. मिलिंद मंडवार, डॉ. सुनील कुमार, डॉ. साहिल रैली, डॉ. अरविंद साहनी, डॉ. अन्ना गुप्ता, डॉ. अमित नागपाल, डॉ. स्वाति गुप्ता और डॉ. जसमीत शामिल थे, जिन्होंने प्रत्यारोपण किया जिसके बाद सभी रोगियों को पूर्णतः कार्यशील अंगों के साथ अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।
49 साल के हरजीत सिंह लीवर फेलियर से पीड़ित थे। उनकी पत्नी ने स्वेच्छा से लीवर डोनर के रूप में काम किया, लेकिन दोनों (ए़$और बी़$) के बीच ब्लड ग्रुप बेमेल था। चूंकि परिवार में कोई ऐसा कोई दाता नहीं था, इसलिए एबीओ इन्कम्पैटेबल लिवर प्रत्यारोपण किया गया। जो कि ट्रांसप्लांट एकमात्र विकल्प है। यह तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया है और प्रत्यारोपण को सफल बनाने के लिए इसमें अतिरिक्त उपचार के तौर-तरीके शामिल हैं। ब्लड ग्रुप की बाधा को दूर करने के लिए, प्राप्तकर्ता के रक्त से एंटीबॉडी हटा दी जाती है (प्लास्मफेरेसिस) और अतिरिक्त दवाएं दी जाती हैं जो अस्वीकृति पैदा करने वाले एंटीबॉडी और कोशिकाओं को रोकती हैं। हरजीत सिंह और उनकी पत्नी दोनों ठीक हो गए और उन्हें ऑपरेशन के बाद क्रमशः 10 वें और चौथे दिन अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।
मृतक डोनर, चंडीगढ़ के 70 वर्षीय इंद्रजीत सिंह को ब्रेन हेमरेज के कारण फोर्टिस अस्पताल मोहाली में भर्ती कराया गया था। तमाम कोशिशों के बावजूद वह ठीक नहीं हुए और उन्हें ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया। मेडिकल टीम ने परिवार को परामर्श दिया और अंगदान की संभावनाओं पर उनके साथ चर्चा की गई। दुख की इस घड़ी में, परिवार ने बहुत हिम्मत दिखाई और 4 गंभीर रूप से बीमार मरीजों को जीवन का बेहतरीन उपहार देने का फैसला किया, जिसमें दो कॉर्निया शामिल थे जिन्हें पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ भेजा गया था। उनके निस्वार्थ कार्य ने शिमला के 64 वर्षीय (पुरुष) मरीज की जान बचाई, जिनका लिवर ट्रांसप्लांट हुआ। मुलाना के 64 वर्षीय मरीज का उसी दिन दोहरी किडनी ट्रांसप्लांट किया गया, जिनकी किडनी फेल हो गई थी।
परिवारों के प्रयासों की सराहना करते हुए, फोर्टिस मोहाली के मेडिकल डायरेक्टर डॉ. विक्रमजीत सिंह ने कहा कि यह आयोजन फोर्टिस मोहाली के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है, जिसने पहले ही खुद को उत्तरी दिल्ली-एनसीआर में पहली निजी स्वास्थ्य सेवा सुविधा के रूप में स्थापित कर लिया है, जो जीवित और मृतक दाता लिवर प्रत्यारोपण के लिए उत्कृष्टता केंद्र बन गया है। हम दुख के क्षणों में निस्वार्थता और साहस दिखाने के लिए परिवारों के आभारी हैं। उनके इस दयालु व्यवहार ने 3 मरीजों की जान बचाई। फोर्टिस अस्पताल मोहाली पंजाब में अपनी तरह का पहला अस्पताल है, जो मृतक के साथ-साथ जटिल जीवित दाता लिवर प्रत्यारोपण करता है।”