पाप और पुण्य कभी भगवान श्री कृष्ण जी से विमुख नहीं करता है -श्री जी

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चंडीगढ़ 29 अगस्त आरके विक्रमा शर्मा प्रस्तुति- -सेवा पद्मपुराण में मनुष्य के पाप कर्मों का विश्लेषण किया गया है। ॐ और दिखाया गया है कि ये पापों के फल हैं। जो लोग सकाम कर्मों में लगे हुए हैं वे पाप पूर्ण कर्मों के विभिन्न रूपों एवं अवस्थाओं में फँसे रहते हैं। उदाहरणार्थ, जब बीज बोया जाता है तो तुरन्त वृक्ष नहीं तैयार हो जाता, इसमें कुछ समय लगता है। पहले एक छोटा सा अंकुर रहता है, फिर यह वृक्ष का रूप धारण करता है, तब इसमें फूल आते हैं, फल लगते हैं और तब बीज बोने वाले व्यक्ति फूल तथा फल का उपभोग कर सकते हैं। इसी प्रकार जब कोई मनुष्य पाप कर्म करता है, तो बीज की ही भाँति इसके भी फल मिलने में समय लगता है। ॐॐ इसमें भी कई अवस्थाएँ होती हैं। भले ही व्यक्ति में पापकर्मों का उदय होना बन्द हो चुका को, किन्तु किये गये पापकर्म का फल तब भी मिलता रहता है। कुछ पाप तब भी बीज रूप में बचे रहते हैं, कुछ फलीभूत हो चुके होते हैं, जिन्हें हम दुख तथा वेदना के रूप में अनुभव करते हैं।

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