दोहरी मानसिकता- पेटा निरीह जानवरों की चीख-पुकार सुन खुद दुम दबाकर दुबका

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चंडीगढ़ 17 जून अल्फा न्यूज इंडिया , प्रस्तुति — जहां कहीं भी हिंसा है वहां धर्म संप्रदाय पंथ मत मजहब कुछ भी नहीं हो सकता है। क्योंकि यह सभी इंसानियत का औरा बढ़ाने के लिए बनाए गए हैं। लेकिन जब इन्हीं धर्मों मजहबों की आड़ में निरीह बेजुबानों को हलाल कर तड़पा तड़पा कर मौत के घाट उतारा जाता है। तो पेटा पी ई टी ए की अहमियत संदिग्ध परिस्थितियों को नंगा करती हैं। बीती 17 तारीख को बेजुबान बेकसूर पशुओं की बेशुमार तादाद में बलि दीे गई है। और इनको कातिलों जालिमों के हाथों से बचाने वाले खुद अपनी दुम दबाकर ना जाने कहीं दुबके पड़े रहे। तो पेटा जैसी ऑर्गेनाइजेशन कागजी खाना पूर्ति के सिवा कुछ भी नहीं साबित हो पाती है।।

“”सार्वजनिक रूप से पशू क्रूरता (Animal Cruelty) हुई। लेकिन मजाल है कि एक भी तथाकथित पशू प्रेमी ने पशू क्रूरता (Animal Cruelty) के विरोध में किसी कानून का उल्लेख करते हुए आवाज उठाई हो।

सीधे-सादे, कमजोर व निरीह पशू की क्रूरतापूर्वक बलि दी गई। शेर की बलि देने का साहस क्यों नही होता।?

केवल अपनों को ही PETA Act के नाम से भयभीत करने के प्रयास क्यों होते हैं।

क्या PETA Act भी Partiality करता है?

क्या इससे यह सिद्ध नही होता कि जो डरता है – दबता है, उसे ही डराया – दबाया – धमकाया जाता है?

इसके जवाब में उक्त मजबूरी कुछ बुद्धिजीवियों का कहना है की कमजोरी को ही डराया नहींजाता है बल्किहै कमजोर जिनके बड़े के खूंटों से बंधे रहते हैं वही दोगली भूमिका निभाते हैं। और इन जानवरों की बेच-फरोखत करते हैं। जिनकी भावनाएं बहुल संख्या में प्रभावित होती हैं। इससे निपटने की कारगुजारी उन्हें खुद अंजाम तक पहुंचानी चाहिए। क्योंकि उनके धर्म म तो वनस्पति में भी प्राण होते हैं। तो किसी के प्राण लेने में भी कानून की धारा ही लागू होनी चाहिए। सनातनियों की धरती से यह जुल्मो-सितम कभी ख़त्म नहीं होंगे। बल्कि खुद शर्मा सट जुल्मअत्याचार करने वालों को भी इसी प्रकार का दंड देना चाहिए।।

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