गैरों और गोरों के नहीं अपनों के गुलाम हैं हम आजाद भारत वासी

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चंडीगढ़ 15 अगस्त:- आरके विक्रम शर्मा/करण शर्मा/ अनिल शारदा+राजेश पठानिया:–बेशक भारतीय मुल्क है लेकिन भारतवासी आज भी गुलाम मानसिकता के शिकार है भारतवासी भले ही अंग्रेजों के या गैरों के गुलाम नहीं है अपने देश के नेताओं के गुलाम है जो कई दशकों से दुनिया भर में शिक्षा शास्त्री कहे जाने वाले भारतीयों को गुलाम मानसिकता का धनी बना दिया गया है एक छोटा सा उदाहरण देखिए कि आज भी पुलिस थानों में उर्दू फारसी आदि के अल्फाज हाजिर है शुद्ध हिंदी यानी राष्ट्रीय भाषा में कोई हिंदुस्तानी आज तक अपनी शिकायत पुलिस थाने में दर्ज नहीं करवा सका है। यही हमारी अपाहिज आजाद मानसिकता है। आज भी फिरंगियों की बनाई हुई इमारतों में देश का मजबूत तंत्र चलाने वाली हुकूमते ं सज रहती हैं।

एक रसीले में प्रकाशित एक लेख के मुताबिक मुसलमानों की जिंदगी की पहली और आखिरी ख्वाहिश रहती है कि वह मक्का मदीना हज कर ले इसी तरह सिख पंथ के लोग भी अमृतसर स्थित हरि मंदिर साहब में गुरु की हाजिरी भरने का सपना संजोए रहते हैं दुनिया के सबसे प्राचीनतम और विशाल धर्म सनातन धर्म के आस्थावान भी चाहते हैं कि जीते जी चार धाम यात्रा संपूर्ण करें और अगर आदि अनादि शिव भगवान शक्ति दे समर्थ दे दो मणिमहेश की यात्रा भी की जाए लेकिन हज जाने वाले मुसलमानों के बारे में सुना है कि वह अपनी नेक कमाई जोड़कर ही हज यात्रा करते हैं तभी उनका हज करना परवान माना जाता है जब हज यात्रा का किराया अपने खून पसीने की मेहनत मशक्कत भरी कमाई की पूंजी हो लेकिन दुर्भाग्यवश हिंदुओं के खून पसीने की कमाई टैक्स के रूप में सरकार लेकर उसका एक लंबा चौड़ा हिसाब मुसलमानों को हज यात्रा के लिए दिया जाता है यही नहीं जलगांव में मस्जिदों में मजारों में मौलवियों को भी सरकार अच्छी खासी रकम बतौर भगा देती है यह पगार का पैसा हिंदुओं के खून पसीने की कमाई से लिया गया टैक्स है दूसरी और हिंदू और सिखों को किसी भी प्रकार कि धर्म यात्रा के लिए धर्म कार्यक्रम के लिए सरकारी सहायता मुहैया नहीं करवाई जाती है यह गंभीर विषय है सरकार किशोर उचित ध्यान देकर संशोधन और समाधान करना चाहिए यह अल्फा न्यूज़ इंडिया की पहली और आखरी गुहार है।।

मस्जिदों में मौलवियों को भारत सरकार हर महीने एक अच्छी खासी बड़ी रकम बतौर पगार उपलब्ध करवाती है लेकिन शर्म की बात है कि हिंदू और सिखों को यानी पंडितों और गुरुद्वारे के ज्ञानियों को बतौर पगार ₹1 भी सरकार से और से नहीं दिया जाता है हिंदुओं के पैसों पर हज करने वाले यही मुसलमान हंसाकर बोलते हैं कि मुसलमान जमात कटोरा लेकर किसी से भी कोई पैसा नहीं मांगती है लेकिन हज यात्रा के लिए मुसलमानों को आईआईटी पैकेज कि जो रकम उपलब्ध करवाई जाती है वह शुद्ध रूप से हिंदुओं की सरकार को दी गई राशि ही होती है अल्फा न्यूज़ इंडिया केंद्र सरकार से गुहार करते हैं कि धर्मनिरपेक्षता का फंडा अलग करके गुरुद्वारा के ज्ञानियों और मंदिरों के पुजारियों को भी बतौर वेतन उपलब्ध करवाया जाए।

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