चंडीगढ़:- 13 नवंबर:– आरके विक्रमा शर्मा/ हरीश शर्मा/ करण शर्मा +अनिल शारदा प्रस्तुति:— भगवान की भक्ति में व्यापार समर्थ और शक्ति समाई रहती है सच्चे मन से और हर स्तर से ऊपर उठकर भगवान में आस्था रखते हुए भक्ति में विलीन हुआ जाए तो भगवान कैसे नहीं मिल पाएं।
आज इसी भक्ति की असीम अनुकंपा का बखान ज्योतिष आचार्य पंडित कृष्ण मेहता अल्फा न्यूज़ इंडिया के माध्यम से लाखों भगवान में आस्था रखने वालों के लिए एक वैदिक कथा के साथ उपस्थित हैं।
सिंहकेतु पांचाल देश का एक राजा था*।राजा बहुत बड़ा शिवभक्त था। शिव आराधना और शिकार उसके दो चीजें प्यारी थीं। वह शिकार खेलने रोज जंगल जाता था ।
एक दिन घने जंगल में सिंहकेतु को एक ध्वस्त मंदिर दिखा। राजा शिकार की धुन में आगे बढ गया पर सेवक भील ने ध्यान से देखा तो वह शिव मंदिर था जिसके भीतर लता, पत्रों में एक शिवलिंग था ।
भील का नाम *चंड* था। सिंहकेतु के सानिध्य और उसके राज्य में रहने से वह भी धार्मिक प्रवृत्ति का हो गया था। चबूतरे पर स्थापित शिवलिंग जो कि अपनी जलहरी से लगभग अलग ही हो गया था वह उसे उखाड़ लाया।
चंड ने राजा से कहा- महाराज यह निर्जन में पड़ा था। आप आज्ञा दें तो *इसे मैं रख लूं*, पर कृपा कर पूजन विधि भी बता दें ताकि मैं रोज इसकी पूजा कर पुण्य कमा सकूं।
राजा ने कहा कि चंड भील इसे रोज नहला कर इसकी *फूल-बेल पत्तियों* से सजाना, अक्षत, फल मीठा चढाना। जय भोले शंकर बोल कर पूजा करना और उसके बाद इसे धूप-दीप दिखाना।
राजा ने कुछ *मजाक* में कहा कि इस शिवलिंग को *चिता भस्म जरूर* चढ़ाना और वो भस्म ताजी चिता राख की ही हो।फिर भोग लगाकर बाजा बजाकर खूब नाच-गाना किया करना।
शिकार से राजा तो लौट गया पर भील जो उसी जंगल में रहता था, उसने अपने घर जाकर अपनी बुद्धि के मुताबिक एक साफ सुथरे स्थान पर शिवलिंग की स्थापना की और रोज ही पूजा करने का अटूट नियम बनाया।
भीलनी के लिए यह नयी बात थी। उसने कभी पूजा-पाठ न देखी थी। भील के रोज पूजा करने से ऐसे संस्कार जगे की कुछ दिन बाद वह खुद तो पूजा न करती पर भील की सहायता करने लगी।
कुछ दिन और बीते तो भीलनी पूजा में पर्याप्त *रुचि लेने लगी*।एक दिन भील पूजा पर बैठा तो देखा कि सारी पूजन सामग्री तो मौजूद है पर लगता है वह चिता भस्म लाना तो भूल ही गया।
वह भागता हुआ जंगल के बाहर स्थित *श्मशान* गया। आश्चर्य आज तो कोई चिता जल ही नहीं रही थी। पिछली रात जली चिता का भी कोई नामो निशान न था जबकि उसे लगता था कि रात को मैं यहां से भस्म ले गया हूं।
भील भागता हुआ उलटे पांव घर पहुंचा।भस्म की डिबिया उलटायी पलटाई पर चिता भस्म तनिक भी न थी।चिंता और निराशा में उसने अपनी भीलनी को पुकारा जिसने सारी तैयारी की थी।
पत्नी ने कहा- आज बिना भस्म के ही पूजा कर लें, शेष तो सब तैयार है। पर भील ने कहा नहीं राजा ने कहा था कि चिता भस्म बहुत ज़रूरी है। वह मिली नहीं।क्या करूं ! भील चिंतित हो बैठ गया।
भील ने भीलनी से कहा- प्रिये यदि मैं आज पूजा न कर पाया तो मैं जिंदा न रहूंगा, मेरा मन बड़ा दुःखी है और चिन्तित है। भीलनी ने भील को इस तरह चिंतित देख एक *उपाय सुझाया।*
भीलनी बोली, यह घर पुराना हो चुका है. मैं इसमें आग लगाकर इसमें घुस जाती हूं। आपकी पूजा के लिए *मेरे जल जाने के बाद बहुत सारी भस्म बन जायेगी*। मेरी भस्म का पूजा में इस्तेमाल कर लें।
भील न माना बहुत विवाद हुआ। भीलनी ने कहा मैं अपने पतिदेव और देवों के देव महादेव के काम आने के इस अवसर को न छोड़ूंगी।भीलनी की ज़िद पर भील मान गया।
भीलनी ने स्नान किया। घर में आग लगायी।घर की तीन बार परिक्रमा की भगवान का ध्यान किया और भोलेनाथ का नाम लेकर *जलते घर* में घुस गयी।ज्यादा समय न बीता कि शिव भक्ति में लीन वह *भीलनी जलकर भस्म हो गई।*
भील ने भस्म उठाई।भली भांति भगवान भूतनाथ का पूजन किया। शिवभक्ति में घर सहित घरवाली खो देने का कोई दुःख तो भील के मन में तो था नहीं सो पूजा के बाद बड़े उत्साह से उसने भीलनी को *प्रसाद* लेने के लिये आवाज दी।
क्षण के भीतर ही उसकी पत्नी समीप बने घर से आती दिखी। जब वह पास आयी तो भील को उसको और अपने घर के जलने का ख्याल आया। उसने पूछा यह कैसे हुआ। तुम कैसे आयीं ? यह घर कैसे वापस बन गया ?
भीलनी ने सारी कथा कह सुनायी। जब धधकती आग में घुसी तो लगा जल में घुसती जा रही हूं और मुझे नींद आ रही है। जगने पर देखा कि मैं घर में ही हूं और आप प्रसाद के लिए आवाज लगा रहे है।
वे यह सब बातें कर ही रहे थे कि अचानक आकाश से एक विमान वहां उतरा, उसमें भगवान के चार गण थे। उन्होंने अपने हाथों से उठा कर उन्हें *विमान में बैठा लिया।*
गणों का हाथ लगते ही दोनों के शरीर दिव्य हो गए.दोनों ने शिव-महिमा का गुणगान किया और फिर वे अत्यंत श्रद्धायुक्त भगवान की आराधना का फल भोगने शिव लोक चले गये..!!
*(स्कंद पुराण की कथा)*
*🙏🏼🙏🏾🙏🏽ॐ नमः शिवाय*🙏🏿🙏🏻🙏