आयुर्वेद के महान प्रकांड पंडित *ऋषि धन्वंतरि* की जयंती वास्तविकता में धन्वंतरि त्रयोदशी

Loading

  • चंडीगढ़:-:22 अक्टूबर: आरके विक्रमा शर्मा प्रस्तुति:— का पर्व वास्तविकता में धन्वंतरि त्रयोदशी है। सोशल मीडिया पर अधिकांश एक दूसरे के लिए ‘धन’तेरस की बधाई देते हुए एक दूसरे की सुख समृद्धि व धन ऐश्वर्य की कामना कर रहे हैं। जबकि ‘धन’तेरस या धन ऐश्वर्य के आने से इस पर्व का कोई संबंध नहीं है। क्योंकि यह आयुर्वेद के महान प्रकांड पंडित *ऋषि धन्वंतरि* की जयंती है। ऋषि धन्वंतरी क्योंकि आयुर्वेद के महान पंडित थे, इसलिए उन्होंने संसार में नीरोगता पैदा करने के लिए जीवन भर कार्य किया। हाँ बीमारियों का उपचार कराने पर जो अनावश्यक व्यय होता है, यदि आयुर्वेद अपना लिया तो वह सब कम हो जाएगा, बच जाएगा। इस हेतु ही हम यहां धन ऐश्वर्य की प्राप्ति मान सकते हैं।

 

कितना अच्छा हो कि हम आज एक दूसरे के निरोग-स्वस्थ रहने की कामना करते हुए धन्वंतरि ऋषि के महान पुरुषार्थ को नमन करें और आयुर्वेद के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करते हुए उस के साथ जुड़ने का संकल्प लें।

काल खंड में समुचित शिक्षा के अभाव में धन्वंतरि त्रयोदशी से बिगड़ कर यह शब्द ‘धन’तेरस हो गया। जिससे हमारे महान ऋषि की जयंती पीछे छूट गई और हम रूढ़िवादी दृष्टिकोण अपनाकर इसे ‘धन’तेरस के रूप में मनाने लगे।

अतः हमारे द्वारा इस पर्व को धन्वंतरि त्रयोदशी के रूप में मनाने में ही इस पर्व की सार्थकता और वैज्ञानिकता है। इससे न केवल हम अपने ऋषि को विनम्र भावांजलि अर्पित कर सकेंगे बल्कि अपनी महान सांस्कृतिक विरासत के साथ अपने आप को समर्पित होता हुआ भी देखेंगे।

 

वर्तमान में ऐसा प्रचलन है कि, आज के दिन स्वर्ण, चांदी, तांबे आदि धातु की खरीदी करना शुभ होता है। इसलिए लोग जमकर आभूषण, बर्तन इत्यादि अन्य सामग्री आवश्यकता न होते हुए भी खरीदते हैं।

 

आइए! समझते हैं धनतेरस क्या है?

धनतेरस में दो शब्द हैं…

पहला है धन, जिसका सामान्य अर्थ लगाया जाता है – पैसा, रुपया, सोना, चांदी आदि और

दूसरा है तेरस, जिसका अर्थ है – त्रयोदशी।

अर्थात्

“धनतेरस” के दिन त्रयोदशी तिथि होती है।

कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को यह पर्व मनाया जाता है। पर इस त्रयोदशी को स्वर्ण आदि आभूषण खरीदने से क्या लाभ और क्या शुभ?

 

*क्या साल भर आभूषण व बर्तन आदि की दुकानें बंद रहती है?*

 

*क्या दूसरे अन्य किसी दिन इन वस्तुओं को खरीदना अशुभ है?*

बिल्कुल नहीं☝️

 

*फिर सच्चाई क्या है?*

“””””””””””””””””””””””””””’

 

धन का सबसे पहला अर्थ है – शरीर

“पहला सुख निरोगी काया,

दूसरा सुख घर में हो माया”

“माया” तो दूसरे स्थान पर है।

पहली संपत्ति तो हमारा “शरीर” ही है।

 

यदि किसी से कोई उसका एक हाथ मांग ले और बदले में कई लाख रुपए देने की बात कहे तो, वह कदापि स्वीकार नहीं करेंगे।

 

इसका तात्पर्य है कि पहला धन तो शरीर ही है, इससे बड़ा धन कुछ नहीं है।

 

अब आप पूछेंगे ?

इसका धनतेरस से क्या मतलब है जानिए.

“”””””””””””””””””””‘”””””””””””””””””””””””””

 

आयुर्वेद के विद्वान ऋषि धन्वंतरि ने अपनी बात प्रारंभ की है, शरीर रूपी धन से।

 

आयुर्वेद्य मनीषी धन्वन्तरि ने स्वस्थ व निरोग शरीर को सबसे बड़ा धन बताया है।

कहावत तो सुनी है …

*”जान है तो, जहान है”*

हमारा सुंदर स्वास्थ्य भी महत्वपूर्ण पूंजी है और शरद ऋतु में शरीर का ध्यान रखना यह आयुर्वेद के अनुसार भी बहुत आवश्यक है, क्योंकि शरद ऋतु में ध्यान रखा गया शरीर पूरे वर्ष भर स्वस्थ रहता है।

*”जीवेम शरदः शतम्”* इस वेद मंत्र-भाग में शरदः शब्द का उल्लेख है अर्थात् हम सौ वर्ष तक जियें, परन्तु शरद ऋतु की उपेक्षा करके कोई व्यक्ति सौ वर्ष तक नहीं जी सकता। इसीलिए हमारा पहला धन शरीर है।

ध्यान रहे ! व्यक्ति संपत्ति कमाने के लिए इस अनमोल शरीर और मानव जन्म को दांव पर लगा देता है। फिर शरीर को ठीक करने के लिए पूरी संपत्ति को गवां देता है। इसलिए आइए असली धन को समझें और धन्वंतरि त्रयोदशी ही मनाएं। कालांतर में लोगों ने स्वर्ण आभूषण, रत्नादि को हीं बड़ा धन मान लिया उन्हें इकट्ठा करने लगे और शरीर रूपी धन को गौण मान लिया, जो अज्ञानता का प्रमाण है।

ईश्वर आपको एवं आपके परिवार को स्वस्थ, दीर्घायु और आनन्दमय जीवन प्रदान करें। इस पवित्र अवसर पर हम सब एक दूसरे के *निरोग व स्वस्थ* रहने की कामना करते हैं।

 

🌻✨🌻✨🌻✨🌻✨🌻

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

132213

+

Visitors