गुल्लर चिकित्सीय गुणों की है लार्जेस्ट खान;— वैद्य किशोर कौशल

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चंडीगढ़:- 05 अक्तूबर:- आरके विक्रमा शर्मा/करण शर्मा/अनिल शारदा/राजेश पठानिया प्रस्तुति:—–आर्युवेदिक मतानुसार:

गूलर स्वाद में मीठा, कषैला, भारी तथा इसकी प्रकृति ठंडी होती है।

पित्त, कफ, रक्तविकार को यह नष्ट करता है।

गर्भ से सम्बंधित रोग, रक्तप्रदर, मधुमेह, आंखों के रोग, अतिसार, सूखा रोग, पेशाब से सम्बंधित रोग तथा प्रमेह रोग को यह ठीक कर सकता है।

इसके सेवन से शरीर में ताकत की वृद्धि होती है तथा हडि्डयों को जोड़ने में यह लाभकारी है।

 

यूनानी चिकित्सकों के अनुसार:

गूलर दूसरे दर्जे में गर्म और पहले दर्जे में गीला होता है।

यह आंखों के रोग, सीने के दर्द, सूखी खांसी, गुर्दे और तिल्ली के दर्द, सूजन, खूनी बवासीर, खून की खराबी, रक्तातिसार (खूनी दस्त), कमर दर्द एवं फोड़े फुन्सियों को ठीक करने में लाभकारी होता है!

 

वैज्ञानिक मतानुसार:

गूलर का रासायनिक विश्लेषण करने पर यह पता चला है कि इसके फल में..

कार्बोहाइड्रेट 4%,

रंजक द्रव्य 8.5%,

भस्म 6.5%,

अलब्युमिनायड 7.4%,

वसा 5.6%,

आर्द्रता 13.6% पाया जाता है।

इसमें कुछ मात्रा में फास्फोरस व सिलिका भी पाया जाता है।

इसकी छाल में 14% टैनिन और दूध में 4 से 7.4% तक रबड़ होता है।

 

गूलर का पका फल खाने में मीठा लगता है। मीठा होने के कारण इसमें कीड़ें आसानी से लग जाते हैं। इसका सेवन करने से पहले इसे अच्छी तरह से देख लें कि कहीं इसमें कीड़े तो नहीं हैं यदि कीड़े लगे हों तो उन्हें निकालकर गूलर के सही भाग को सुखाकर उपयोग में लेना चाहिए।

गूलर के पकने के दिनों इसका एक दो फल नियमित रूप से दो हफ्ते तक खाया जाए तो कई प्रकार के आंखों के रोगों से बचा जा सकता है।

 

विभिन्न रोगों में उपयोग:

1. वायु से अंग जकड़ना:

गूलर का दूध जकड़न वाले अंग पर लगाकर इस पर रूई चिपकाएं इससे लाभ मिलेगा।

 

2. रक्तपित्त (खूनी पित्त):

पके हुए हुए गूलर, गुड़ या शहद के साथ खाना चाहिए अथवा गूलर की जड़ को घिसकर चीनी के साथ खाने से लाभ मिलेगा और रक्तपित्त दोष दूर हो जाएगा।

 

हर प्रकार के रक्तपित्त में गूलर की छाल 5 ग्राम से 10 ग्राम तथा उसका फल 2 से 4 ग्राम तथा गूलर का दूध 10 से 20 मिलीलीटर की मात्रा के रूप में सेवन करने से लाभ मिलता है!

 

3. सिंगिया के जहर:

गूलर की छाल के रस में घी मिलाकर गर्म करके रोगी को इसका सेवन कराने से सिंगिया का जहर उतर जाता है।

 

4. आंखों में दर्द:

गूलर के दूध से आंखों पर लेप करें इससे आंखों का दर्द दूर होता है!

 

5. फोडे़:

फोड़े पर गूलर का दूध लगाकर उस पर पतला कागज चिपकाने से फोड़ा जल्दी ठीक हो जाता है।

 

6. अतिसार (दस्त):

गूलर की 4-5 बूंद दूध को बताशे में डालकर दिन में 3 बार सेवन करने से अतिसार (दस्त) के रोग में लाभ मिलता है।

 

आंव या अतिसार (दस्त) में गूलर की जड़ के चूर्ण को 3 से 5 ग्राम की मात्रा में ताजे फल के साथ दिन में दो बार सेवन करने से लाभ मिलता है।

 

अतिसार (दस्त) और ग्रहणी के रोग में 3 ग्राम गूलर के पत्तों का चूर्ण और 2 दाने कालीमिर्च के थोड़े से चावल के पानी के साथ बारीक पीसकर, उसमें कालानमक और छाछ मिलाकर फिर इसे छान लें और इसे सुबह शाम सेवन करें इससे लाभ मिलेगा।

 

गूलर की 10 ग्राम पत्तियां को बारीक पीसकर 50 मिलीलीटर पानी में डालकर रोगी को पिलाने से सभी प्रकार के दस्त समाप्त हो जाते हैं।

 

7. बालातिसार और रक्तातिसार:

बच्चों के अतिसार (दस्त) तथा रक्तातिसार (खूनी दस्त), वमन (उल्टी) और कमजोरी में गूलर का दूध 10 बूंद सुबह और शाम दूध में मिलाकर सेवन कराएं इससे लाभ मिलता है।

 

10 से 20 ग्राम गूलर के दूध को बताशे मिलाकर खाने से रक्तातिसार (खूनी दस्त) की बीमारी समाप्त हो जाती है।

 

गूलर का पानी पीने से रक्तातिसार (खूनी दस्त) ठीक हो जाता है।

 

8. गर्भवती स्त्री को दस्त होना:

गूलर की जड़ का पानी गर्भवती स्त्री को सेवन कराएं इससे उसका अतिसार रोग ठीक हो जाता है।

 

9. गर्मी:

पके हुए कीड़े रहित गूलरों में पीसी हुई मिश्री डालकर सुबह के समय खाने से गर्मी में राहत मिलती है।

 

गूलर के दूध में मिश्री डालकर पीने से हर प्रकार की गर्मी से मुक्ति मिलती है।

 

10. गर्मी के कारण जीभ पर छाले पड़ना:

गर्मी के कारण जीभ पर छाले होने पर गूलर के कांटे और मिश्री को पीसकर सेवन करने से लाभ मिलता है।

 

11. बच्चों के शरीर से गर्मी का प्रभाव अधिक होना:

गूलर के रस में मिश्री डालकर बच्चों को पिलाने से शीतला (चेचक) की गर्मी दूर होती है।

 

12. भस्मक (बार बार भूख लगना):

भस्मक रोग (बार-बार भूख लगना) में गूलर की जड़ का रस चीनी के साथ पिलाने से लाभ मिलता है।

 

13. बिच्छू का जहर:

जहां पर बिच्छू ने काटा हो उस स्थान पर गूलर के अंकुरों को पीसकर लगाए इससे जहर चढ़ता नहीं है और दर्द से आराम मिलता है।

 

14. विसूचिका:

विसूचिका (हैजा) के रोगी को गूलर का रस पिलाने से रोगी को आराम मिलता है।

 

15. कर्णशूल:

गूलर और कपास के दूध को मिलाकर कान पर लगाने से कान का दर्द ठीक हो जाता है।

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