ब्रह्मज्ञान को जानना ही मुक्ति नहीं उसे प्रतिपल जीना वास्तविक मुक्ति 

Loading

चण्डीगढ़/समालखा:- 16 अगस्त:-आरके विक्रमा शर्मा/ अनिल शारदा/ हरीश शर्मा+ एनके धीमान प्रस्तुति:—– ‘‘ब्रह्मज्ञान को जीवन का आधार बनाकर निरंकार से जुड़े रहना और मन में उसका प्रतिपल स्मरण करते हुए, सेवा भाव को अपनाकर जीना ही वास्तविक भक्ति है। पुरातन संतों एवं भक्तों का जीवन भी ब्रह्मज्ञान से जुड़कर ही सार्थक हो पाया हैं। यह उक्त उद्गार निरंकारी सत्गुरू माता सुदीक्षा जी महाराज ने ‘मुक्ति पर्व’समागम के अवसर पर लाखों की संख्या में एकत्रित विशाल जन-समूह को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किये। यह जानकारी श्रीमति राजकुमारी मेम्बर इंचार्ज प्रेस एवं पब्लिसिटी विभाग संत निरंकारी मण्डल ने दी।

 

सत्गुरू माता जी ने आशीर्वाद देते हुए फरमाया कि ‘‘ब्रह्मज्ञान को जानना ही मुक्ति नहीं अपितु उसे प्रतिपल जीना ही वास्तविक मुक्ति है। यह अवस्था निरंकार को मन में बसाकर उसके रंग में रंगकर ही संभव है क्योंकि ब्रह्मज्ञान की दृष्टि से जीवन की दशा एवं दिशा एक समान हो जाती है।

 

जीवन में आत्मिक स्वतंत्रता के महत्व को सत्गुरू माता जी ने उदाहरण सहित बताया कि जिस प्रकार शरीर में जकड़न होने पर उससे मुक्त होने की इच्छा होती है उसी प्रकार हमारी आत्मा तो जन्म जन्म से शरीर में बंधन रूप में है और इस आत्मा की मुक्ति केवल निरंकार की जानकारी से ही संभव है। जब हमें अपने निज घर की जानकारी हो जाती है तभी हमारी आत्मा मुक्त अवस्था को प्राप्त कर लेती है। उसके उपरांत ब्रह्मज्ञान की दिव्य रोशनी मन में व्याप्त समस्त नकारात्मक भावों को मिटाकर भयमुक्त जीवन जीना सिखाती है और तभी हमारा लोक सुखी एवं परलोक सुहेला होता है। ब्रह्मज्ञान द्वारा कर्मो के बंधनों से मुक्ति संभव है क्योंकि इससे हमें दातार की रजा में रहना आ जाता है। जीवन का हर पहलू हमारी सोच पर ही आधारित होता है जिससे उस कार्य का होना न होना हमें उदास या चिंतित करता है अतः इसकी मुक्ति भी निरंकार का आसरा लेकर ही संभव है।

 

संत निरंकारी मिशन द्वारा प्रतिवर्ष 15 अगस्त, अर्थात् ‘स्वतंत्रता दिवस’ को ‘मुक्ति पर्व’ के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन जहां पराधीनता से मुक्त कराने वाले भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को नमन किया जाता है वहीं दूसरी ओर आध्यात्मिक जागरूकता के माध्यम से प्रत्येक जीव आत्मा को सत्य ज्ञान की दिव्य ज्योति से अवगत करवाने वाली दिव्य विभूतियों शहनशाह बाबा अवतार सिंह जी, जगत माता बुद्धवंती जी, निरंकारी राजमाता कुलवंत कौर जी, सत्गुरू माता संविदर हरदेव जी एवं अन्य भक्तों को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए उनके जीवन से सभी भक्तों द्वारा प्रेरणा प्राप्त की जाती है।

 

15 अगस्त, 1964 से ही यह दिन जगत माता बुद्धवंती जी और तत्पश्चात् 1970 से शहनशाह बाबा अवतार सिंह जी के जीवन के प्रति समर्पित रहा। शहनशाह बाबा अवतार सिंह जी द्वारा संत निरंकारी मिशन की रूपरेखा एवं मिशन को प्रदान की गई उनकी महत्वपूर्ण उपलब्धियों के लिए निरंकारी जगत सदैव ही उनका ऋणी रहेगा। सन् 1979 में संत निरंकारी मण्डल के प्रथम प्रधान लाभ सिंह जी ने जब अपने इस नश्वर शरीर का त्याग किया तभी से बाबा गुरबचन सिंह जी ने इस दिन को ‘मुक्ति पर्व’ का नाम दिया। ममता की दिव्य छवि निरंकारी राजमाता कुलवंत कौर जी ने अपने कर्म एवं विश्वास से मिशन के दिव्य संदेश को जन जन तक पहंुचाया और अगस्त माह में ही उन्होंने भी अपने इस नश्वर शरीर का त्याग किया। माता सविन्दर हरदेव जी ने सत्गुरू रूप में मिशन की बागडोर सन् 2016 में संभाली। उसके पूर्व 36 वर्षो तक उन्होंने निरंतर बाबा हरदेव सिंह जी के साथ हर क्षेत्र में अपना पूर्ण सहयोग दिया और निरंकारी जगत के प्रत्येक श्रद्धालु को अपने वात्सल्य से सराबोर किया। वह प्रेम, करूणा और दैवी शक्ति की एक जीवंत मिसाल थीं।

 

अंत में सत्गुरू माता जी ने सभी के लिए मंगल कामना करते हुए कहा कि जब हम निरंकार को जीवन का आधार बना लेते है तब सेवा, सुमिरन, सत्संग को हम प्राथमिकता देते हुए इस निरंकार के रंग में स्वयं को रंग लेते है जिससे हम अहम् भावना से मुक्त हो जाते है।

 

इस संत समागम में सत्गुरू माता सविंदर हरदेव जी के विचारों का संग्रह ‘‘युग निर्माता” पुस्तक का विमोचन निरंकारी सत्गुरू माता सुदीक्षा जी महाराज के कर कमलों द्वारा हुआ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

93873

+

Visitors