हिंदू धर्म का अपमान+उपहास उड़ाने वाले का वही हश्र हो जो दूसरे धर्म वाले करते हैं हश्र

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चंडीगढ़:– 31 अगस्त:– आरके विक्रमा शर्मा /राजेश पठानिया :–—दुनिया में मुख्यता सबसे प्राचीनतम और महानतम धर्म सनातन धर्म हिंदू धर्म हजारों हजारों साल पुराना कहा गया है! हजारों साल पहले ऋग्वेद की रचना इस धर्म की ही पराकाष्ठा है! उसके बाद दो अढ़ाई हजार साल पहले और कई धर्म धरती पर सामने आए। जैसे इस्लाम क्रिश्चियन आदि‌ यह भी कहा जाता है कि यह सभी बाद के धर्म धर्मों के महासागर से ही उपजे हैं। और छोटी छोटी नदियों का रूप लेकर समाज की सेवा मार्गदर्शन और सुधार में जुटे हुए हैं। हर धर्म में दूसरे धर्म की मान्यताओं को मानना जरूरी नहीं है।

लेकिन आदर भाव करना बहुत जरूरी है ।हिंदू धर्म की विशालता इसलिए है कि इस धर्म को मानने वाले दूसरे धर्मों का बखूबी आदर करते हैं। और कभी किसी भी दशा में किसी का हंसी मजाक या मखौल उड़ाना सम्मान को ठेस पहुंचाना बेइज्जत करना आदि नहीं किया जाता है। लेकिन आजकल सिख धर्म की भी बेअदबी के किस्से हर रोज अखबारों में पढ़कर, हमें अपने शिक्षित होने पर शर्म आती है। हिंदू धर्म के देवी-देवताओं का उपहास उड़ाया जाता है। दुनिया की तमाम भाषाओं की जननी महान संस्कृत में रचे गए श्लोकों का उपहास उड़ाया जाता है। और दूसरे धर्म वाले चटखारे लेकर सुनते और पढ़ते हैं। यह बहुत निंदनीय और शर्म की अफसोस जनक बात है क्योंकि अगर औलाद अपने बाप का निरादर करती है तो कहीं ना कहीं उसके जन्म में उसकी पालना में संधि का स्थान खुद ब खुद बन जाता है आजकल सोशल मीडिया पर श्रीमद् भागवत गीता के कुछ श्लोक और संस्कृत के श्लोकों का उपहास उड़ाया जा रहा है और धर्मांध लोग दुर्ग वृत्ति के धनी लोग इस पोस्ट को आगे से आगे शेयर कर कर अपने आप को ही एक बाप की औलाद नहीं बता रहे हैं। सभी धर्मों को चाहिए कि धर्म की और पूजनीय देवी-देवताओं, ऋषि-मुनियों, पीर पैगंबरों, गुरु फकीरों का उपहास उड़ाने वालों का विरोध करें। सामाजिक बहिष्कार करें। याद रखें, जो आज बाहर के परिवार के लिए जहर उगल रहा है। वह अपने परिवार में भी एक दिन जरूर जहर उगलेगा। तब उसके परिवार वालों को सिवाय पश्चाताप के कुछ भी हाथ नहीं लगेगा। ऐसे लोगों का सामूहिक बहिष्कार जरूरी है। उनको समझाया जाना चाहिए। धर्म, इंसानियत व शिक्षा को मुख्य धारा से जोड़ना चाहिए ना कि उनका  हाथ पैर सिर हड्डियां तोड़ना चाहिए।।

सोशल मीडिया पर वायरल होती यह पोस्ट किसी नपुंसक का परिचय है।।।।

संस्कृत की क्लास मे गुरूजी ने पूछा = पप्पू इस श्लोक का अर्थ बताओ.

“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन”.

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पप्पू = राधिका शायद रस्ते मे फल बेचने का काम कर रही है.😎

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गुरूजी = मूर्ख, ये अर्थ नही होता है. चल इसका अर्थ बता:-

“बहुनि मे व्यतीतानि, जन्मानि तव चार्जुन.” 😋

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पप्पू = मेरी बहू के कई बच्चे

 

पैदा हो चुके हैं, सभी का जन्म चार जून को हुआ है.😬😑

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गुरूजी गुस्सा हो गये फिर पुछा :-

“तमसो मा ज्योतिर्गमय”

पप्पु= तुम सो जाओ माँ मैं ज्योति से मिलने जाता हुँ. 😂😂😂

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गुरूजी = अरे गधे, संस्कृत पढता है कि घास चरता है. अब इसका अर्थ बता:-

“दक्षिणे लक्ष्मणोयस्य वामे तू जनकात्मजा.”

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पप्पू = दक्षिण मे खडे होकर लक्ष्मण बोला जनक आजकल तो तू बहुत मजे मे है.

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गुरूजी = अरे पागल, तुझे १ भी

 

श्लोक का अर्थ नही मालूम है क्या ?

पप्पू = मालूम है ना. 😃

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गूरूजी = तो आखरी बार पूछता हूँ इस श्लोक का सही सही अर्थ बताना.-

हे पार्थ त्वया चापि मम चापि…….!

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क्या अर्थ है जल्दी से बता.

पप्पू = महाभारत के युद्ध मे श्रीकृष्ण भगवान अर्जुन से कह रहे हैं कि…….. 😎😉

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गुरूजी उत्साहित होकर बीच मे ही

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कहते हैं = हाँ, शाबास, बता क्या कहा श्रीकृष्ण ने अर्जुन से……..? 😘

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पप्पू =

भगवान बोले = अर्जुन तू भी

 

चाय पी ले, मैं भी चाय पी लेता हूँ. फिर युद्ध करेंगे.

गुरूजी बेहोश…………..

 

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