चंडीगढ़/जयपुर+जैसलमेर:- 28 अगस्त:- आरके विक्रमा शर्मा+ एडवोकेट विनीता शर्मा/ चंद्रभान सोलंकी प्रस्तुति:—- आज पर्यावरण – दिवस पर माता अमृता देवी को कृतज्ञ भारतवासी समाज का शत शत नमन है! पेड़ो की रक्षा के लिए अदभुत बलिदान जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते हैं ।
जोधपुर (राजस्थान) के राजस्व विभाग के अभिलेखों से पता चलता है कि एक बार जोधपुर रियासत के महाराजा को महल की मरम्मत हेतु लकड़ी की आवश्यकता पड़ी। उन्होंने अपने कारिन्दों को आदेश दिया कि वे जोधपुर से 25 किलोमीटर दूर खेजड़ली गांव में खेजड़ी के जंगल से पेड़ों की कटाई करके लकड़ी की व्यवस्था करें। महाराजा के हुक्म का पालन करने कि लिए कुछ सिपाही मजदूरों के साथ कुल्हाड़ी लेकर उस गांव में पहुंचे, जहां खेजड़ी का विशाल घना जंगल है।
वहां पेड़ों की कटाई शुरू हुई ही थी कि गांव के लोग इकट्ठा हो गए और वृक्षों को काटने का विरोध किया। किन्तु उनका विरोध मात्र मौखिक विरोध था। किसी में साहस नहीं था कि आगे बढ़कर समूह का नेतृत्व करें। अमृता देवी, जो घर में चक्की पीस रही थी, को जब पेड़ों की कटाई की खबर मिली तो उसने पेड़ काटने वालों को ललकारा और कहा कि हम प्राण देकर वृक्षों की कटाई रुकवाएंगे।
उसने आगे कहा कि “जो सिर साटे रुख रहे तो भी सस्तो जांण”। इतना कहकर वह पेड़ से चिपक गई। सिपाहियों ने राजाज्ञा उल्लंघन की दुहाई देते हुए उसका सर काट दिया। मां का अनुसरण करते हुए उसकी दो बेटियों ने भी पेड़ से चिपक कर अपना शीश कटवाया। अब क्या था, ग्रामीण लोग एक-एक पेड़ से चिपक गए। सिपाहियों के आदेश से मजदूरों ने पेड़ से चिपके लोगों को एक-एक करके काटना शुरू किया।
अंतिम बलिदान मुकलावा ने अपनी नवविवाहिता पत्नी के साथ दिया। यह घटना 28 अगस्त, 1730 (भाद्रपद शुक्ल 10, सम्वत् 1787) की है। महाराजा जोधपुर को जब इस हृदय-विदारक घटना की जानकारी मिली तो वे घटनास्थल पर आए और जनता से क्षमा मांगते हुए पेड़ों की कटाई रोक दी। और घोषणा की कि अब भविष्य में इस क्षेत्र के जंगलों में कोई हरा पेड़ नहीं काटेगा। वह राजाज्ञा आज भी ज्यों की त्यों लागू है।
पर्यावरण प्रदूषण रूपी जिस दानव से आज समूची मानव सभ्यता भयभीत है उसका आभास महान वीरांगना अमृता देवी को आज से 275 वर्ष पहले ही हो गया था। अमृता देवी एवं उनके गांव के साथियों का वृक्षों की रक्षा के लिए बलिदान देना पूरे विश्व के लिए प्रेरणा स्रोत एवं ज्योति पुञ्ज बन गया है। खेजड़ली गांव में उन अमर बलिदानियों का स्मारक बना है।
बलिदान स्थल पर प्रतिवर्ष “वृक्ष शहीद मेला” लगता है। राजस्थान के अतिरिक्त गुजरात, मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब एवं उत्तर प्रदेश के हजारों श्रद्धालु यहां इकट्ठा होते हैं और अमर शहीदों को अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। 1997 से राज्य सरकार द्वारा घोषित अमृता देवी पुरस्कार प्रतिवर्ष अधिक से अधिक वृक्षारोपण करने वालों को दिया जाता है।
जयपुर स्थित विश्व वानकी उद्यान के निकट झालना क्षेत्र में वीरांगना अमृता देवी की स्मृति में राज्य सरकार द्वारा अमृता देवी उद्यान की स्थापना कर उनकी 275वीं पुण्य तिथि पर जन उपयोग के लिए अर्पित किया गया है। 35 हेक्टेयर में फैले इस वृक्ष उद्यान में दुर्लभ प्रजाति के पेड़-पौधे भू-क्षरण को रोकते हैं।
अमृता देवी बलिदान दिवस 28 अगस्त को भारत में पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए। इस प्रस्ताव का अल्फा न्यूज़ इंडिया दिल से हर कदम हर समय हर संभव सहयोग समर्थन करेगी। इस दिन अधिक से अधिक वृक्षारोपण करना ही अमर बलिदानी वीरांगना अमृता देवी सहित 363 शहीदों के प्रति सच्ची श्रद्धाजलि।