चंडीगढ़:- 24 अगस्त:-आरके विक्रमा शर्मा/ अनिल शारदा:—शिवराम हरि राजगुरु भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख देशभक्त क्रान्तिकारी नायक थे। इन्हें भगत सिंह और सुखदेव के साथ 23 मार्च 1931 को फाँसी पर लटका दिया गया था। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में राजगुरु की शहादत एक महत्वपूर्ण अनुकरणीय घटना थी। राजगुरु हमेशा हिंदू धर्म की धर्मवत शिक्षाओं उपदेशो और भागवत ज्ञान को मारने वाले थे। भागवत गीता के ज्ञान की बुराई को खत्म करो और अच्छे लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अगर बलिदान भी देना पड़े तो सबसे आगे रहिए।
भारत माता के इस शेर पुत्र का जन्म 24 अगस्त 1908, राजगुरूनगर में हुआ था।
और देश की आजादी के लिए बलिदान का अमृत 23 मार्च 1931, लाहौर, पाकिस्तान में वंदेमातरम के जयघोष लगाते हुए पिया था। आपके साथ ही भगत सिंह और सुखदेव साथी को भी दुश्मनों ने यानी अंग्रेजों ने फांसी पर लटकाया था। आज देश इस शर्मनाक बात से भी वाकिफ हो चुका है कि इन तीनों की फांसी रुकवाने के लिए जवाहर लाल नेहरू और महात्मा गांधी ने एक भी कदम सार्थक नहीं उठाया था। जबकि उस वक्त अंग्रेज उनकी हर बात मानते थे। गांधी जी की कोई बात भी टाली नहीं जाती थी।
राजगुरु के भाग्यशाली पिता हरी नारायण और सौभाग्यशाली जननी मां पार्वती बाई शुद्ध रूप से सनातनी और हिंदू धर्म की मान्यताओं रीति-रिवाजों और अदर संस्कारों को मानने वाले पीढ़ी थी।
राजगुरु के भाई डिंकर हरी राजगुरु अपने भाई की देशभक्ति और भारत माता के लिए बलिदान देने की दृढ़ निश्चय को हमेशा नमन करते रहे।