चंडीगढ़/ जयपुर: 19 अगस्त:-आरके विक्रमा शर्मा+ एडवोकेट विनीता शर्मा प्रस्तुति:—-*डाँ.कैलाश शर्मा पाटोदा उपनिदेशक आयुर्वेद विभाग, अल्फा न्यूज़ इंडिया के माध्यम से लाखों पीड़ित प्रभावित रोगियों के लिए और स्वस्थ रहने के शौकीनों के लिए आयुर्वेद के बेशकीमती पर सस्ते और सुलभ होने वाले घरेलू नुस्खे और नुस्खे समय-समय पर प्रस्तुत करते हैं।
(1) *अजवायन का साप्ताहिक प्रयोग:-*
सुबह खाली पेट सप्ताह में एक बार एक चाय का चम्मच के बराबर अजवायन मुँह में रखें और पानी से निगल लें। चबाएँ नहीं। यह सर्दी,खाँसी,जुकाम, बदनदर्द,कमर-दर्द, पेट दर्द, कब्जियत और घुटनों के दर्द से दूर रखेगा। 10 साल से नीचे के बच्चों को आधा चम्मच अर्थात 2 ग्राम और 10 से ऊपर के सभी को एक चम्मच यानी 5 ग्राम लेना चाहिए !
(2) *मौसमी खाँसी के लिये सेंधा नमक :-*
सेंधा नमक की लगभग 5 ग्राम डली को चिमटे से पकड़कर आग पर, गैस पर या तवे पर अच्छी तरह गर्म कर लें। जब लाल होने लगे तब गर्म डली को तुरंत आधा कप पानी में डुबो कर निकाल लें और नमकीन गर्म पानी को एक ही बार में पी जाएँ। ऐसा नमकीन पानी सोते समय लगातार दो-तीन दिन पीने से खाँसी, विशेषकर बलगमी खाँसी से आराम मिलता है।
(3) *बैठे हुए गले के लिये मुलेठी का चूर्ण:-*
मुलेठी के चूर्ण को पान के पत्ते में रखकर खाने से बैठा हुआ गला ठीक हो जाता है या सोते समय एक ग्राम मुलेठी के चूर्ण को मुख में रख कर कुछ देर चबाते रहे। फिर वैसे ही मुँह में रख कर खाएं । प्रातः काल तक गला साफ हो जायेगा। गले के दर्द और सूजन में भी आराम आ जाता है।
(4) *मुँह और गले के कष्टों के लिये सौंफ और मिश्री:-*
भोजन के बाद दोनों समय आधा चम्मच सौंफ चबाने से मुख की अनेक बीमारियाँ और सूखी खाँसी दूर होती है, बैठी हुई आवाज़ खुल जाती है,गले की खुश्की ठीक होती है और आवाज मधुर हो जाती है।
(5) *खराश या सूखी खाँसी के लिये अदरक और गुड़:-*
गले में खराश या सूखी खाँसी होने पर पिसी हुई अदरक में गुड़ और घी मिलाकर खाएँ। गुड़ और घी के स्थान पर शहद का प्रयोग भी किया जा सकता है। आराम मिलेगा।
(6) *पेट में कीड़ों के लिये अजवायन और नमक:-*
आधा ग्राम अजवायन चूर्ण में स्वादानुसार काला नमक मिलाकर रात्रि के समय रोजाना गर्म जल से देने से बच्चों के पेट के कीडे नष्ट होते हैं। बडों के लिये- चार भाग अजवायन के चूर्ण में एक भाग काला नमक मिलाना चाहिए।
(7) *अरुचि के लिये मुनक्का हरड़ और चीनी:-*
भूख न लगती हो तो बराबर मात्रा में मुनक्का (बीज निकाल दें), हरड़ और चीनी को पीसकर चटनी बना लें। इसे पाँच छह ग्राम की मात्रा में (एक छोटा चम्मच), थोड़ा शहद मिला कर खाने से पहले दिन में दो बार चाटें।
(8) *बदन के दर्द में कपूर और सरसों का तेल:-*
10 ग्राम कपूर, 200 ग्राम सरसों का तेल- दोनों को शीशी में भरकर मजबूत ठक्कन लगा दें तथा शीशी धूप में रख दें। जब दोनों वस्तुएँ मिलकर एक रस होकर घुल जाए तब इस तेल की मालिश से नसों का दर्द, पीठ और कमर का दर्द और, माँसपेशियों के दर्द शीघ्र ही ठीक हो जाते हैं।
9) *जोड़ों के दर्द के लिये बथुए का रस:-*
बथुआ के ताजा पत्तों का रस पन्द्रह ग्राम प्रतिदिन पीने से गठिया दूर होता है। इस रस में नमक-चीनी आदि कुछ न मिलाएँ। नित्य प्रातः खाली पेट लें या फिर शाम चार बजे। इसके लेने के आगे पीछे दो-दो घंटे कुछ न लें। दो तीन माह तक लें।
10) *पेट में वायु-गैस के लिये मट्ठा और अजवायन:-*
पेट में वायु बनने की अवस्था में भोजन के बाद 125 ग्राम दही के मट्ठे में दो ग्राम अजवायन और आधा ग्राम काला नमक मिलाकर खाने से वायु-गैस मिटती है।
(11) *फटे हाथ पैरों के लिये सरसों या जैतून का तेल:-*
नाभि में प्रतिदिन सरसों का तेल लगाने से होंठ नहीं फटते और फटे हुए होंठ मुलायम और सुन्दर हो जाते है। साथ ही नेत्रों की खुजली और खुश्की दूर हो जाती है। तथा फटी हुई एडी पर इस तैल का प्रयोग किया जाता है तो लाभ मिलता है।*
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चंडीगढ़/ जयपुर: 19 अगस्त: आरके विक्रमा शर्मा/ एडवोकेट विनीता शर्मा प्रस्तुति:——*बहुमूत्र या महिलाओं का सोमरोग :–*
* इमली का गूदा ५ ग्राम रात को थोड़े जल में भिगो दे, दूसरे दिन प्रातः उसके छिलके निकालकर दूध के साथ पीसकर और छानकर रोगी को पिला दे | इससे स्त्री और पुरुष दोनों को लाभ होता है |
मूत्र- धारण की शक्ति क्षीण हो गयी हो या मूत्र अधिक बनता हो या मूत्रविकार के कारण शरीर क्षीण होकर हड्डियाँ निकल आयी हो तो इसके प्रयोग से लाभ होगा |
*अण्डकोशों में जल भरना :–**लगभग ३० ग्राम इमली की ताजा पत्तियाँ को गौमूत्र में औटाये | एकबार मूत्र जल जाने पर पुनः गौमूत्र डालकर पकायें | इसके बाद गरम – गरम पत्तियों को निकालकर किसी अन्डी या बड़े पत्ते पर रखकर सुहाता- सुहाता अंडकोष पर बाँध कपड़े की पट्टी और ऊपर से लगोंट कस दे | सारा पानी निकल जायेगा और अंडकोष पूर्ववत मुलायम हो जायेगें |
*लू-लगना :–** पकी हुई इमली के गूदे को हाथ और पैरों के तलओं पर मलने से लू का प्रभाव समाप्त हो जाता है | यदि इस गूदे का गाढ़ा धोल बालों से रहित सर पर लगा दें तो लू के प्रभाव से उत्पन्न बेहोसी दूर हो जाती है | इमली के गूदे का पानी पीने से वमन(उल्टी) , पीलिया, प्लेग, गर्मी के ज्वर में भी लाभ होता है |
*गले की सूजन –** इमली १० ग्राम को १ किलो जल में अध्औटा कर (आधा जलाकर) छाने और उसमें थोड़ा सा गुलाबजल मिलाकर रोगी को गरारे या कुल्ला करायें तो गले की सूजन में आराम मिलता है |
*खांसी :–** टी.बी. या क्षय की खांसी हो (जब कफ़ थोड़ा रक्त आता हो) तब इमली के बीजों को तवे पर सेंक, ऊपर से छिलके निकाल कर अंदर की गुठली को पीसकर कपड़े से छानकर चूर्ण रख ले| इसे ३ ग्राम तक घृत या मधु के साथ दिन में ३-४ बार चाटने से शीघ्र ही खांसी का वेग कम होने लगता है | कफ़ सरलता से निकालने लगता है और रक्तश्राव व् पीला कफ़ गिरना भी समाप्त हो जाता है |
*ह्रदय में जलन :–** ह्रदय की दाहकता या जलन को शान्त करने के लिये पकी हुई इमली के रस (गूदे मिले जल) में मिश्री मिलाकर पिलानी चाहियें |
*नेत्रों में गुहेरी होना :–* * इमली के बीजों के अंदर की गिरी पत्थर पर घिसें और इसे गुहेरी पर लगाने से तत्काल ठण्डक पहुँचती है |
*चर्मरोग : –** लगभग ३० ग्राम इमली (गूदे सहित) को १ गिलाश पानी में मथकर पीयें तो इससे घाव, फोड़े-फुंसी में लाभ होगा |
*उल्टी होने पर :–** पकी इमली को पानी में भिगोयें और इस इमली के रस को पिलाने से उल्टी आनी बंद हो जाती है |
*भांग का नशा उतारने में : –*नशा उतारने के लिये शीतल जल में इमली को भिगोकर उसका रस निकालकर रोगी को पिलाने से उसका नशा उतर जाएगा |
*खूनी बवासीर : –** इमली के पत्तों का रस निकालकर रोगी को सेवन कराने से रक्तार्श में लाभ होता है |
*शराब एवं भांग का नशा उतारने में : —** नशा समाप्त करने के लिए पकी इमली का गूदा जल में भिगोकर, मथकर, और छानकर उसमें थोड़ा गुड़ मिलाकर पिलाना चाहिए |लगभग ५० ग्राम इमली, लगभग ५०० ग्राम पानी में दो घन्टे के लिए भिगोकर रख दें उसके बाद उसको मथकर मसल लें | इसे छानकर पी जाने से लू लगना, जी मिचलाना, बेचैनी, दस्त, शरीर में जलन आदि में लाभ होता है तथा शराब व भांग का नशा उतर जाता है | जायका ठीक होता है |
*चोट – मोच लगना : –** इमली की ताजा पत्तियाँ उबालकर, मोच या टूटे अंग को उसी उबले पानी में सेंके या धीरे – धीरे उस स्थान को उँगलियों से हिलाएं ताकि एक जगह जमा हुआ रक्त फ़ैल जाए |
*पीलिया या पांडु रोग : –** इमली के वृक्ष की जली हुई छाल की भष्म १० ग्राम बकरी के दूध के साथ प्रतिदिन सेवन करने से पान्डु रोग ठीक हो जाता है |
*आग से जल जाने पर : –** इमली के वृक्ष की जली हुई छाल की भष्म गाय के घी में मिलाकर लगाने से, जलने से पड़े छाले व घाव ठीक हो जाते है |
*पित्तज ज्वर : –** इमली २० ग्राम १०० ग्राम पानी में रात भर के लिए भिगो दे | उसके निथरे हुए जल को छानकर उसमे थोड़ा बूरा मिला दे | ४-५ ग्राम इसबगोल की फंकी लेकर ऊपर से इस जल को पीने से लाभ होता है |
*सर्प , बिच्छू आदि का विष : –** इमली के बीजों को पत्थर पर थोड़े जल के साथ घिसकर रख ले | दंशित स्थान पर चाकू आदि से क्षत करके १ या २ बीज चिपका दे | वे चिपककर विष चूसने लगेंगे और जब गिर पड़े तो दूसरा बीज चिपका दें | विष रहने तक बीज बदलते रहे |