घर का पूजा स्थल रखें हमेशा सही दिशा कोण में वास्तु शास्त्र के अनुसार:– पंडित धर्मवीर शर्मा राजू

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चंडीगढ़+अबोहर:- 19 अगस्त:- आरके विक्रमा शर्मा/ धर्मवीर शर्मा राजू +अनिल शारदा /हरीश शर्मा:—-सनातन हिंदू धर्म से जुड़े लगभग हर व्यक्ति के घर में पूजा का स्थान होता ही है। हालांकि कुछ लोगों के घर में पूजा का स्थल बड़ा होता है तो कुछ घरों में छोटा होता है। ऐसा कहा जाता है कि जिस घर में पूजा स्थल होने से वहां रहने वाले लोगों के जीवन में न केवल सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है। बल्कि अन्य कई तरह के लाभ प्राप्त होते हैं। परंतु ये फायदे होते तभी हैं। जब घर में स्थित पूजा घर सही दिशा व सही स्थान पर होता है। क्योंकि अगर इसकी दिशा व दशा अच्छी न हो। तो इसके होने से अच्छे प्रभाव तो मिलना दूर इसके विपरीत वहां रहने वाले लोगों के जीवन में हर तरफ से केवल नकारात्मक ऊर्जा आती है। बल्कि जीवन में कई तरह की अन्य समस्याएं पैदा हो जाती हैं। तो आइए जानते हैं पूजा घर से जुड़े खास वास्तु शास्त्र अनुसार सुधारात्मक उपाय,,,,,,,,

वास्तु के अनुसार दिशाओं के ज्ञान को ही वास्तु कहते हैं। यह एक ऐसी पद्धति का नाम है, जिसमें दिशाओं को ध्यान में रखकर भवन निर्माण और उसका इंटीरियर डेकोरेशन किया जाता है। वास्तु के अनुसार भवन निर्माण करने पर घर-परिवार में खुशहाली आती, लेकिन अगर आपके घर में गलत दिशा में कोई निर्माण होता है, तो उससे आपके परिवार को किसी न किसी तरह की हानि होने लगती है। वास्तु के अनुसार पूजा घर बहुत महत्व होता है। अगर पूजा स्थान वास्तु विपरीत हो तो पूजा करते समय मन भी एकाग्र नहीं हो पाता और पूजा से पूर्ण होने पे लाभ नहीं मिल पाता है।

कहा जाता है कि घर में मंदिर होने से पॉजिटिव एनर्जी न केवल उस घर ब्लकि घर में रहने वाले सदस्यों पर हमेशा बनी रहती है। भारतीय संस्कृति है कि घर कैसा भी हो छोटा हो अथवा बड़ा, अपना हो या किराए का, लेकिन हर घर में मंदिर अवश्य होता है। वास्तु के अनुसार पूजा स्थल ईशान कोण यानि उत्तर-पूर्व दिशा में होना चाहिए। इस दिशा में पूजा घर होने से घर में तथा उसमे रहने वाले लोगो पर पॉजिटिव एनर्जी का संचार हमेशा बना रहता है।

वास्तुशास्त्र में पूजा घर के लिए सबसे उपयुक्त स्थान ईशान कोण को ही बताया गया है क्योंकि इसी दिशा में भगवान का वास होता है तथा ईशान कोण के देव गुरु वृहस्पति ग्रह हैं जो कि आध्यात्मिक ज्ञान का कारक भी हैं। लोक मत के अनुसार जब सर्वप्रथम वास्तु पुरुष इस धरती पर आए तब उनका शीर्ष उत्तर पूर्व दिशा में ही था यही कारण यह स्थान सबसे उत्तम माना जाता है। यूं तो एक अलग पूजा घर श्रेष्ठ माना जाता है, लेकिन मेट्रोपॉलिटन शहरों में जगह कम होने के कारण यह हमेशा मुमकिन नहीं होता। ऐसे घरों के लिए आप अपनी ज़रूरत के अनुसार दीवार पर या छोटे कोने में मंदिर रखने पर विचार कर सकते हैं

परंतु कई बार अनजाने में अथवा अज्ञान की वजह से पूजा स्थान का चयन गलत दिशा में हो जाता है परिणाम स्वरूप पूजा करने वाले को उस पूजा का सही फल नहीं मिल पाता है। अगर किसी कारणवश ईशान कोण में पूजा घर नहीं बनाया जा सकता है तो विकल्प के रूप में उत्तर या पूर्व दिशा का चयन करना चाहिए। यदि ईशान, उत्तर और पूर्व इन तीनो दिशा में आप पूजा घर बनाने में असमर्थ है तो पूर्व-दक्षिण दिशा का चयन करना चाहिए। भूलकर भी केवल दक्षिण दिशा का चयन नहीं करना चाहिए, क्योंकि इस दिशा में मृत्यु-देवता यानि नेगेटिव एनर्जी का स्थान होता है। इसके अलावा बता दें घर का मंदिर बनाते समय सिर्फ मंदिर की दिशा ही नहीं बल्कि अपनी दिशा का भी ध्यान रखना चाहिए। तो वहीं भगवान की किसी प्रतिमा या मूर्ति की पूजा करते समय मुंह पूर्व दिशा की तरफ होना चाहिए। बता दें अगर पूर्व दिशा की ओर मुंह नहीं हो पा रहा है तो पश्चिम दिशा भी शुभ मानी गई है। इन दोनों दिशा की तरफ पूजा करना वास्तु के हिसाब से उचित माना गया है।

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