लोक परलोक सतलोक ज्यों सुधारे गुरु ज्ञानी जानिए तिस:- पंडित रामकृष्ण शर्मा

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चंडीगढ़/रेवाड़ी : 10 अगस्त: आरके विक्रमा शर्मा/ करण शर्मा/ अनिल शारदा/ राजेश पठानिया /हरीश शर्मा प्रस्तुति:—– गुरु के बिना प्राणी इस लोक में भी नरक भोक्ता है और परलोक सिधारने के बाद भी नरक का भागी बनता है। गुरु ज्ञान से ही लोक परलोक सुधारा जा सकता है। गुरु बिना गति नहीं। गुरु ज्ञान बिना मार्गदर्शन नहीं मिल सकता है। और यह जीवन बिल्कुल नहीं सुधर सकता है। गुरु की शरण में आते ही शिष्य अपना जीवन और अपने पिछले 7 कूलों का जीवन सुख मय संतमय कृपा से जन्म मरण से रहित कर देता है। यह धर्मवत विचार जाने-माने समाज सेवक पंडित रामकृष्ण शर्मा ने अल्फा न्यूज़ इंडिया से श्री गीता धाम कुरुक्षेत्र में माता श्री सुदर्शन जी महाराज भिक्षु की शरण में बैठकर व्यक्त किए।

आज इसी प्रकार संत उमाकांत जी गुरु की महिमा का बखान करते हुए लोक परलोक सतलोक की यात्रा कि यात्री बनने का शुभम रहा प्रशस्त कर रहे हैं गुरु का स्मरण ही व्यक्ति की जून सुधार देता है तो सोचिए जब गुरु शरण में जाएंगे तब क्या कुछ नहीं इस और उस लोक का पाएंगे।

जैसे बाप मचले बच्चे को समझा ताड़ना देकर उसका हित ही करता है, सतगुरु भी पकड़े हुए सभी जीवों को पार करके ही दम लेते हैं*

 

*मानसरोवर में स्नान करने के बाद स्त्री-पुरुष का भेद खत्म और जीवात्मा निर्मल हो जाती है*

*सन्त उमाकान्त जी ने बताई जीवात्मा की सतलोक जाते समय की कुछ बारीकियां*

*बगैर गुरु की दया के सेवा नहीं मिलती है*

मृत्युलोक और नरकों में घोर दुःख पाती अपनी अंश जीवात्मा के दुःख से दुःखी होकर सन्त रूप होए जग में आये स्वयं सतपुरुष, अपने अपनाये हुए जीवों के न केवल बाहरी शारिरिक मानसिक बल्कि आध्यात्मिक दुःख को भी दूर करने वाले, इस कलयुग में सबसे सरल शब्द नाम योग साधना करवा कर जीवात्मा को अंतर में ले चलने वाले, वहां की अदभुत रचना को कभी-कभी मौज में आकर बता देने खोल देने वाले, उसका अनुभव करवा देने वाले, मौजूदा वक़्त के महापुरुष सन्त सतगुरु दुःखहर्ता त्रिकालदर्शी परम दयालु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 9 अगस्त 2022 प्रातःकालीन बेला में बावल आश्रम, रेवाड़ी (हरियाणा) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर प्रसारित संदेश में बताया कि आप लोगों के ऊपर गुरु की बहुत बड़ी दया है कि रक्षाबंधन कार्यक्रम के पहले आप लोग खबर लगते ही सेवा करने के लिए आ गए। बगैर गुरु की दया के सेवा नहीं मिलती है।

*शरीर छोड़ने के बाद भी सतगुरु अपनाये जीवों को पार करने में ज्यादा समय नहीं लेते, एक-दो जन्म बस*

जब सन्त सतगुरु धरती पर आते हैं, जीवों को पकडते हैं, जीवों की, सुरत की डोर को काल के हाथ से ले कर अपने हाथ में ले लेते हैं। और शरीर छोड़ने के बाद भी अंतर में गुरु पद तक बराबर आते रहते हैं और पार करने में ज्यादा समय नहीं लगाते हैं। एक जन्म, दो जन्म में ही पार कर दिया करते हैं। पकड़े हुए सभी जीवों को पार करके ही दम लेते हैं। जैसे बच्चा मचल जाता है लेकिन बाप समझा कर, ताड़ना देकर कैसे भी बच्चे को पढ़ाने, काबिल बनाने आदि जो भी लक्ष्य है, वैसा बना ही देता है। ऐसे ही सतगुरु का निशाना भी पकड़े हुए जीवों को अपने घर सतलोक पहुँचाने का होता है। एक भी जीव जब तक रहता है तब तक आना बंद नहीं करते। बराबर त्रिकुटी तक आते, संभाल करते रहते हैं। जिसको भी उस समय (गुरु के शरीर छोड़ने के बाद) प्रेमियों को संभालने का अधिकार होता है, सुरत की डोर खींच कर उसके पास पहुंचाते रहते, उससे प्रेरणा दिलाते रहते हैं। फिर भजन करवाकर पार करवा देते हैं। फिर दुबारा जन्म नहीं लेना पड़ता।

*गुरु भाई का रिश्ता बहुत बड़ा, अंतर में भी मिलते पहचानते हैं*

गुरु भाइयों का रिश्ता बहुत बड़ा होता है। गुरु भाई, गुरु बहन ऊपर के लोक में भी मिलते हैं, जिसकी पहुंच जहां तक होती है। वहां मुलाकात होती रहती है, भूलते नहीं हैं। मानसरोवर में स्नान करने के बाद जीवात्मा निर्मल, एक जैसी हो जाती है, स्त्री-पुरुष का भेद खत्म हो जाता है। ये भेद तो यहां मृत्युलोक के विस्तार के लिए बनाया। गुरु भाइयों से, हर जीव से प्रेम होना चाहिए क्योंकि सभी में प्रभु की ही अंश जीवात्मा है। सबकी कदर इज्जत करनी चाहिए लेकिन गुरु भाइयों का स्वागत सत्कार सम्मान होना ही चाहिए।

*जीवात्मा के सतलोक गमन के दृश्य का इशारा*

जब जीवात्मा ऊपर जाती है तो ऊपर सतलोक की जीवात्माएं मानसरोवर के पास उतर कर खुशी से स्वागत के लिए आती हैं (और ले जाती हैं) कि हमारा बिछुड़ा परिवार, भाई आ रहे हैं। जैसे विदेश से आये भाई को लेने दूसरा भाई स्टेशन पर जाता है। जैसे यहां के मंदिर में साफ होकर जाते हो वैसे वहां अपने घर में भी निर्मलता ही है। गंदगी वहां जा भी नहीं सकती। जैसे एयरपोर्ट पर डिटेक्टर अवैध चीज के लिए टीं की आवाज करता है ऐसे ही ऊपर के जीवों को संकेत मिल जाता है की इसमें अभी थोड़ी गंदगी है इसलिए यहां आ नहीं पायेगा लेकिन हमारा भाई है इसलिए चल कर के इसको साफ सुथरा कर दें। तो जैसे दूल्हे-दुल्हन को सजाते हैं वैसे वहां के सिस्टम से जीवात्मा को भी स्वागत के साथ ऊपर ले जाते हैं।

*ढपोल शंख मत बनो, सेवा करो*,,,,,,कहावत है- निर्वंशे नाश या तो बहु वंशे नाश। यानी बिना औलाद के या ज्यादा होने निकल जाने पर भी कुल खानदान का नाश हो जाता है। संगत में जब थोड़े लोग थे तब बहुत प्रेम था। रोटी बांट कर खाते थे। अपना बिस्तर दूसरे के लिए लगा देते थे, हम जमीन पर, बोरे पर सो जाएंगे, इतना सम्मान होता था। चूंकि संत हर तरह के जीवों को पकड़ते हैं तो अब आये लोगों को देख कर वैसी भावना बनने लगे गयी, सेवा भाव खत्म हो गया। सेवा से निर्मलता आती, ज्ञान होता, बुद्धि का विकास होता और प्रभु रीझता, मिलता, दया करता है। शंख बजाने से हार्ट, लंग आदि की नसें, उनकी रुकावट खुलती साफ हो जाती है। महाराज जी ने ढपोल शंख की कहानी से समझाया कि कुछ लोग ढपोल शंख होते हैं, जो बोलते ज्यादा और करते कम हैं। तो सन्तों ने उन्हें भी कह कर, दिखा समझा अनुभव करा कर सुधारा। इससे संबंधित गुरु गोविंद सिंह जी और धल्ला के दृष्टांत से समझाया कि दृष्टांत इसलिए सुनाया जाता है कि चीज को समझ जाओ और पकड़ लो और उससे फायदा लाभ मिलने लग जाये।‌।

 

 

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