*चण्डीगढ़, 1अगस्त: ( आरके विक्रमा शर्मा करण शर्मा अनिल शारदा राजेश पठानिया प्रस्तुति) सामयिक परिवेश हरियाणा के मंच पर बड़ी संख्या में जुटे कवियों ने बाॅंधा समा और आयोजक हुए गदगद और ढेरों को मिली शुभकामनाएँ, जिससे आयोजकों की खिलीं बांछें और सभी में प्रसन्नता छाई हैं । हालांकि यह एक ऑनलाइन कवि सम्मेलन था फिर भी कवियों और श्रोताओं ने मंच पर जुटकर यह दिखा दिया कि कलमकारी में अभी भी दम बाकी है और नई पीढ़ी में भी कुछ नया कर दिखाने का जज्बा है। मुंशी प्रेमचंद जयंती पर सावन मास में इस कवि सम्मेलन में महिलाएँ बड़ी संख्या में थीं। बरसात के मौसम में आंगन में झूले नहीं लग पाए तो भी ढलती सांझ में उन्होंनें कवि सम्मेलन में ही उपस्थिति देकर यह साबित किया है कि उनकी शिव साधना में रुचि है और इस सावन के दौरान उनमें बेहद खुशी है। कोरोना काल के बाद लोगों का यूँ जुटना भी एक बड़ा कारण है । हरियाणा सामयिक पटल के आयोजक विनोद कश्यप थे।जो हरियाणा में जनसम्पर्क अधिकारी पद से सेवानिवृत्ति के बाद भी साहित्य सेवा में जुटे हुए हैं। इस अवसर पर हरियाणा साहित्य अकादमी के निदेशक डाॅ० चंद्र त्रिखा मुख्य अतिथि के रूप में पटल पर हाज़िर रहे हैं। हालांकि उनके पांव में फ्रेक्चर है लेकिन देश की स्वतंत्रता की 75 वीं वर्षगांठ के अवसर पर उन्होंने सामयिक परिवेश मंच पर साहित्यकारों का हौंसला बढ़ाया। अपने अस्वस्थ होते हुए भी उन्होंने इस का भरपूर आनन्द लिया है। इस मौके पर सामयिक परिवेश पत्रिका की प्रधान सम्पादक ममता मेहरोत्रा और पंजाब केसरी टी. वी. हरियाणा के सम्पादक बलवंत तक्षक के भी आसीन होने से साफ झलकता है कि ऑनलाइन कवि सम्मेलन भी सफल हो सकता है, बस जरूरत है तो कुछ करने और एक साथ यूँ जुटने की और ऐसा साबित हो गया है। अपने संबोधन में भी उन्हें उन्होंने यही कहा कि जज्बा किसी रहमत का मोहताज नहीं है। अध्यक्ष ममता मेहरोत्रा ने मुंशी प्रेमचंद के प्रति अगाध श्रद्धा प्रकट की । यूँ तो गणेश और शिव वंदना से इस आयोजन की शुरुआत कंचन भल्ला ने की लेकिन ममता मेहरोत्रा जी ने भी पटल पर मौका खोए बिना गणेश वंदना से सभी को ताल बजाने के लिए तैयार किया । वंदना के बोल थे,
” गाईए गणपति जग वंदन, शंकर सुवन भवानी नंदन- – ”
इसके तुरंत बाद कंचन भल्ला के सरस्वती वंदना पर स्वर गूंजने लगे और माहौल में नई लहर सी जम गई । ममता मेहरोत्रा के स्वर के साथ कवियों और श्रोताओं ने भी साथ – साथ गायन किया।
मंच संचालक सोनिया प्रतिभा तुरंत पटल पर आईं और कार्यक्रम संचालन शुरू हो गया। उन्होंने एक सफल मंच संचालक की भूमिका निभाई।बीच बीच में सुधा भी पटल को जमाए रखने में उनकी सहयोगी बनीं।बेहतरीन मंच संचालन हुआ। इतना जरूर है की कोई कवि अपनी बारी पर नहीं आया तो वह दायित्व भी इस जोड़ी ने संभाला। श्रोताओं कभी यह अहसास नहीं होने दिया कि पटल पर किसी तरह की कमी भी आई है।
हरियाणा मंच के प्रभारी विनोद कश्यप ने कहा कि वह देश के विभिन्न आनलाइन मंचों पर अपनी रचनाएँ पेश करते रहते हैं लेकिन माँ शारदे की असीम कृपा से बेशक 40 में से 31 कवि ही मौके पर अपनी कविताओं से श्रोताओं के मन में अपनी अलग छाप छोड़ पाए हैं। लेकिन के बाद पटल पर आए कवियों को भी बाद में मौका दिया जाना उनका दायित्व है जिसे पूरा करेंगे और वह पूरा भी हुआ।
सम्मेलन में बूंदी से आए किशनलाल कहार की मुंशी प्रेम चंद पर कविता में –
“नमन प्रेम चंद साहित्यकार आप
गज़ब के कलमकार हुए।
गोदान , सेवा सदन और कहानियाँ आदि उपन्यास रचे ।”
के बाद अर्चना कोच्चर पधारी, जिन्होंने –
“सागर के मुहाने पर अपना नाम सजाया था,
लेकिन लहर का दुस्साहस आई
और नाम मिटाकर चली गई मंजर अति दुखदायी था।”
सोनिया तानी की देशभक्ति से परिपूर्ण कविता-
” भारत का रहने वाला हर एक देशवासी अपने आप में भारत है”
से समां बांधा और उनके बाद पृथ्वी बेनीवाल ने-
” तीज सावन सुदी में आई है
तीज पे अंग्रेजी 31 जुलाई है ”
पेश की । टीकू वासवानी के उदगार –
“कहने को तो संविधान है
पर रक्षक ही बेईमान है”
पर खूब तालियाँ बजीं । यहाँ ममता मेहरोत्रा से भी नहीं रहा गया और उन्होंने अपने गायन पर जमकर तारीफ पाई । नीरज चोपड़ा के बोल थे –
“घुमड़ घुमड़ कर आया सावन पेड़ों से करो प्यार,
आई है रुत सावन की छा गई
बूंदों से आई बहार”
से श्रोताओं में प्रसन्नता का पारावार रहा।
पटल के प्रभारी विनोद कश्यप ने हृदय की धड़कन को बढ़ने नहीं दिया, शायद वो मौके की तलाश में थे। एक कवि की अनुपस्थिति में उन्होंने कवि कड़ी को जोड़ते हुए कविता- ‘मेरा दोष’ पेश की, जिसके बोल-
” है मेरा केवल दोष यही सोए मज़लूम जगाता हूँ- – – – शोषक के तबले महलों में जब धिन्न- धिन्न तक तक करते हैं,
तब कुछ लोग भूख से व्याकुल हो पड़े सिस्कियाॅं भरते हैं , उन शब्दों की मैं चिता बना, शोषण की लाश जलाता हूँ”- सुनाकर सबका दिल जीत लिया। इस पेशकश के बाद तालियों की गडगड़ाहट और ‘वाह! वाह ‘ के साथ एक और एक और के स्वर गूंजे तो अतिथियों के कहने पर विनोद कश्यप को सामयिक परिस्थितियों का ताना बाना बुनती अपनी दूसरी कविता ‘सूत्रधार’ लेकर पटल पर आना पड़ा और समय गंवाए बिना उन्होंने ओजपूर्ण यह कविता सुनाई ”
मैं वक्त वक्त का सूत्रधार सोतों में प्राण जगाता हूँ,
जब बोझ धरा पर पापों का देख नहीं मैं पाता हूँ। ”
सुनाकर विश्व की वर्तमान परिस्थितियों को आड़े लिया। पटल पर ‘बहुत सुन्दर! बहुत सुन्दर और बधाइयाँ के बीच मंच संचालक सोनिया ने सभी को शांत करते हुए अगले कवि को आमंत्रित किया तो उन्होंने पटल पर केवल रचना ही प्रेषित की ।अगले उपस्थित अशोक योगी ने-
” बस अब बहुत हुआ जिसमें प्रकृति का रोदन झलकता है । ” के बाद सुशीला जोशी सस्वर – ” आया है तीजों का त्यौहार ” कविता से दिल बहलाया ।बाद में -संतोष नेमा ने- “मुस्कुराई हैं आंखें आज, कितने सालों बाद” और अगले क्रम पर मीना गर्ग ने “आज आई है मेरी कोहली दोस्तो” पेश कीं ।
जलपान के बाद सुनील मनोचा ने- “ब्रह्म मुहूर्त की वेला में” लघु कविता का रसास्वादन कराया ही था कि बलबीर ढाका -“दो वक्त की रोटी” कविता के
के साथ आये । संगीता शर्मा कुंद्रा अपने क्रम पर नहीं बाद में आई श्रोताओं को कविता गायन से मुग्ध कर दिया।नीरज राव खेड़ा, नीरजा चौपड़ा, मीनाक्षी कुरुक्षेत्र, त्रिलोक चंद फतेहपुरी, डा० चंद्र दत्त शर्मा, अंजू शर्मा, दीपक पाण्डेय, आभा सिंह, सुधा पांडे, अन्नपूर्णा, रेणु अब्बी, अचला ढिंगले , रमेश कुमार निर्मेश’ आदि कवियों ने चार घंटे तक समय बांधकर रखा।