सभी पूजा स्थल बराबर है यह बात सिर्फ हिंदू ही क्यों समझते जानते और पहचानते हैं बाकी क्यों नहीं

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चंडीगढ़/ नई दिल्ली:- 25 जुलाई: अल्फा न्यूज़ इंडिया डेस्क प्रस्तुति:—मान्यता प्राप्त न्यूज वेबसाइट ऑप इंडिया में 18 जुलाई 2022 को एक लेख छपा है। इस लेख में दिल्ली की हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह के दीवान का बयान छपा है। दीवान का नाम है मूसा निजामी, मूसा निजामी ने बयान दिया है कि निजामुद्दीन की दरगाह पर आने वाले हिंदुओं की संख्या में सालभर के भीतर करीब 80 फीसदी तक गिरावट आई है।

 

निजामी ने बताया कि पहले यहाँ खूब हिंदू आते थे। हर रोज दोपहर के 2 बजे से रात के 11 बजे तक दरगाह पर आने वालों में सबसे ज्यादा हिन्दू ही होते थे। लेकिन अब यहां इक्का-दुक्का हिंदू ही आते हैं। उन्होंने बताया कि पहले यहाँ हिंदू भंडारे भी करते थे। करीब-करीब रोज औलिया की दरगाह पर हिंदू अन्न-पैसा बाँटते थे, लेकिन अब वैसी स्थिति नहीं रही।

 

दरगाह के औलिया मूसा निजामी की उम्र 84 साल है। निजामी के मुताबिक उन्होंने कई दौर देखे पर ऐसा बुरा दौर कभी नहीं देखा। उनके मुताबिक ये‘नफरत’अभी और बढ़ेगी। उनका दावा है कि इसी नफरत के प्रचार ने दरगाह पर आने वाले हिंदू कम कर दिए हैं।

 

निजामी की बात की पड़ताल करने के लिए 17 जुलाई 2022 को ऑप इंडिया की टीम दरगाह पर गई तो निजामी की बात सही नजर आई।मुख्य सड़क से उतरकर ऑफ इंडिया की टीम ने जब दरगाह का रास्ता पकड़ा तो चहल-पहल थी, लेकिन हिंदू नजर नहीं आ रहे थे। ना रास्ते में,ना दरगाह के अंदर।दरगाह में करीब 2 घंटे बिताने के बाद जब ऑप इंडिया की टीम लौट रही थी तब भी कहीं हिंदू नजर नहीं आए।

निजामी के अनुसार दरगाह पर आने वाले हिंदुओं की संख्या में गिरावट अचानक नहीं हुई है। करीब सालभर से ऐसा दिख रहा है। उनका कहना है कि हिंदुओं के बीच प्रचार किया जा रहा है कि ये कब्र है।यहाँ सजदा करने से कुछ नहीं होता इसलिए मंदिर जाओ।

निजामी आगे बताते हैं कि हिंदुओं में नफरत पैदा की जा रही है।जब ऑप इंडिया ने उनसे नूपुर शर्मा को लेकर हुए हालिया विवाद,उदयपुर में कन्हैया लाल की निर्मम हत्या,अजमेर दरगाह से जुड़े लोगों की भड़काऊ बयानबाजी के असर को लेकर सवाल किया तो उनका कहना था कि ये सब होता रहता है, यानी ये आम बात है।

 

सबसे बड़ी बात ये है कि सूफीवाद ने हमेशा हिंदुओं को छलने का ही काम किया है। एक मशहूर सूफी गीत है “छाप तिलक सब छीनी रे तोसे नैना मिलाइके”। सभी जानते हैं कि छाप तिलक तो हिंदू धर्म का प्रतीक है। ये सूफी संगीत इस तरह से भी तो हो सकता था कि “दाढ़ी टोपी सब छीनी रे तोसे नैना मिलाइके”! लेकिन हिंदुओं को ठगने के लिए ही सूफीवाद का निर्माण किया गया।

 

यह बात अब धीरे धीरे हिंदुओं को भी समझ में आने लगी है।

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