हिंदुत्व के विरोध के कारण छीन ली जायेगी बहुचर्चित मुख्यमंत्री की कुर्सी

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मुंबई/चंडीगढ़: 25 जून:- अरुण कौशिक //आरके विक्रमा शर्मा/ राजेश पठानिया /अनिल शारदा प्रस्तुति:– राजनीति रंग बदलने में गिरगिट को पछाड़कर अग्रणी पंक्ति में सबसे बड़े स्थान पर काबिज है। इसमें कोई दो राय नहीं है। राजनीति में कब कौन क्यों कैसे किसके पक्ष में हल्ला बोल दे घर परिवार तक नहीं जानता है। कब कौन किस की खाट खड़ी कर दे टांग खींच ले। राजनीति में यह सब पर्दे के पीछे चलता है। पर दिखाई नहीं देता है।  और जिन को दिखाई देता है। उनके कंधों पर लोकतंत्र को संभालने की जनता ने वोट डालकर जिम्मेदारी और जवाबदेही डाली होती है।

पिछले 72 घंटे से सेकुलर खेमे में गज़ब का सन्नाटा पसरा हुआ है।खामोशी है,मरघटी खामोशी। केरल से जे एन यू तक 10 जनपथ से कोलकाता तक रवीश कुमार से लेकर अजित अंजुम तक….सब सन्निपात के मरीजों की तरह बुदबुदा रहे हैं बस कुछ बोल नहीं पा रहे हैं। इधर इन बेचारों का मरघट बना हुआ है। और उधर वोटर्स और देशवासी चुस्कियां लेते हुए चुट्टकियां ले रहे हैं।

कहां तो कल तक अग्निवीर के विरोध में जलती ट्रेनों में उन्हें एक नयी पारी दिख रही थी। शुक्रवार की पत्थरबाजी में एक नया मोड़ दिख रहा था। कहां ये एक साथ दो दो वज्रपात!!!!🌞 भगवान श्री कृष्ण महाराज ने महाभारत में स्पष्ट कहा है जो जैसा बीज बोओगे,उसको वैसी ही फसल यही काटनी पड़ती है।

जैसे ही राष्ट्रपति पद के लिए माननीया द्रौपदी मुर्मू जी के नाम का प्रस्ताव आया।  सालों से मजे लेते एलीट क्लब के सदस्यों को सांप सूंघ गया। ऊपर से द्रौपदी जी ने शिवमन्दिर में झाड़ू लगा कर नंदी के कान में धीरे धीरे जो मंत्र पढ़े। वह इनके लिए ज़हर की तरह सीने में उतर गया।

शबरी की अनंत प्रतीक्षा पूरी हुई‌ अब वह राजसिंहासन पर विराजेगी, यह विचार ही उनके मन में आरी की तरह चलने लगा ।

अभी इससे संभले भी नहीं थे कि माफियाओं और बौलीवुड के चहेते उद्धव ठाकरे को औकात बता कर मातोश्री भेजने की घटना घट गई।👹 सच ह तो है राजनीति वह ढोल है जो फटा हुआ होता है और बजाना पड़ता है या फिर बजा बजा कर तब तक बजाना पड़ता है जब तक कि यह फट ना जाए।

75 सालों के राजनैतिक इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि किसी दल से समर्थन इस बात पर वापस लिया जा रहा है कि वह पार्टी हिंदूवाद के रास्ते से भटक गई है।🔥 हिंदुत्व के मुद्दे इन लोगों के कारण ही सामने लाने पड़े हैं शर्म की बात है कि हिंदू हिंदुस्तान में नपुंसक ओं की बदौलत आज सुरक्षित नहीं है और अभी भी कायर लोग कायर जमात की चापलूसी करते हुए तलवे चाट रहे हैंl लेकिन भारत का सौभाग्य है आज उसकी बागडोर उस हाथ में है जिस हाथ को हर कोई अपने सर पर रखकर गौरव मानता है।

उपरोक्त दोनों महत्वपूर्ण घटनाएं हिंदुत्व के पुनर्जागरण का प्रतीक हैं।

अभी तक सरकारों को अल्पसंख्यक हित, बाबरी विध्वंस आदि के नाम पर बर्खास्त किया जाता रहा है।यह पहली बार हो रहा है कि हिंदु धर्म का मान नहीं रखने वाले उद्धव ठाकरे को विरोध का सामना करना पड़ रहा है।

यह बदलाव की बयार है

यह नये सफर का आगाज है

चाणक्य माने जाने वाले शरद पवार की घिग्घी बंधी हुई है।

कांग्रेस को पता नहीं चल रहा है कि वह मोदी का विरोध करे,इ डी का मुकाबला करे कि महाराष्ट्र सरकार बचाए?

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