प्रशंसा और निंदा दूसरों की होती है, फल तो अपने कर्मों का अच्छा या बुरा भोगना ही पड़ता है:– पंडित कृष्ण मेहता

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चंडीगढ़: 14 जून: आरके विक्रमा शर्मा/ करण शर्मा/ हरीश शर्मा/ अनिल शारदा /राजेश पठानिया प्रस्तुति;—*भीष्म चुप रहे , कुछ क्षण बाद बोले,” पुत्र युधिष्ठिर का राज्याभिषेक करा चुके केशव … ?*

*उनका ध्यान रखना , परिवार के बुजुर्गों से रिक्त हो चुके राजप्रासाद में उन्हें अब सबसे अधिक तुम्हारी ही आवश्यकता है” …. !*

 

*कृष्ण चुप रहे …. !*

 

*भीष्म ने पुनः कहा , “कुछ पूछूँ केशव …. ?*

*बड़े अच्छे समय से आये हो …. !*

*सम्भवतः धरा छोड़ने के पूर्व मेरे अनेक भ्रम समाप्त हो जाँय ” …. !!*

 

*कृष्ण बोले – कहिये न पितामह ….!*

 

*एक बात बताओ प्रभु ! तुम तो ईश्वर हो न …. ?*

 

*कृष्ण ने बीच में ही टोका , “नहीं पितामह ! मैं ईश्वर नहीं … मैं तो आपका पौत्र हूँ पितामह … ईश्वर नहीं ….”*

 

*भीष्म उस घोर पीड़ा में भी ठठा के हँस पड़े …. ! बोले , ” अपने जीवन का स्वयं कभी आकलन नहीं कर पाया कृष्ण , सो नहीं जानता कि अच्छा रहा या बुरा , पर अब तो इस धरा से जा रहा हूँ कन्हैया , अब तो ठगना छोड़ दे रे …. !! “*

 

*कृष्ण जाने क्यों भीष्म के पास सरक आये और उनका हाथ पकड़ कर बोले …. ” कहिये पितामह …. !”*

 

*भीष्म बोले , “एक बात बताओ कन्हैया ! इस युद्ध में जो हुआ वो ठीक था क्या …. ?”*

 

*”किसकी ओर से पितामह …. ? पांडवों की ओर से …. ?”*

 

*” कौरवों के कृत्यों पर चर्चा का तो अब कोई अर्थ ही नहीं* *कन्हैया ! पर क्या पांडवों की ओर से जो हुआ वो सही था …. ?* *आचार्य द्रोण का वध , दुर्योधन की जंघा के नीचे प्रहार , दुःशासन की छाती का चीरा जाना , जयद्रथ और द्रोणाचार्य के साथ हुआ छल , निहत्थे कर्ण का वध , सब ठीक था क्या …. ?* *यह सब उचित था क्या …. ?”*

 

*इसका उत्तर मैं कैसे दे सकता हूँ पितामह …. !*

*इसका उत्तर तो उन्हें देना चाहिए जिन्होंने यह किया ….. !!*

*उत्तर दें दुर्योधन, दुःशाशन का वध करने वाले भीम , उत्तर दें कर्ण और जयद्रथ का वध करने वाले अर्जुन …. !!*

 

*मैं तो इस युद्ध में कहीं था ही नहीं पितामह …. !!*

 

*”अभी भी छलना नहीं छोड़ोगे कृष्ण …. ?*

*अरे विश्व भले कहता रहे कि महाभारत को अर्जुन और भीम ने जीता है , पर मैं जानता हूँ कन्हैया कि यह तुम्हारी और केवल तुम्हारी विजय है …. !*

*मैं तो उत्तर तुम्ही से पूछूंगा कृष्ण …. !”*

 

*”तो सुनिए पितामह …. !*

*कुछ बुरा नहीं हुआ , कुछ अनैतिक नहीं हुआ …. !*

*वही हुआ जो होना चाहिए …. !”*

 

*”यह तुम कह रहे हो केशव …. ?*

*मर्यादा पुरुषोत्तम राम का अवतार कृष्ण कह रहा है ….? यह छल तो किसी युग में हमारे सनातन संस्कारों का अंग नहीं रहा, फिर यह उचित कैसे गया ….. ? “*

 

*”इतिहास से शिक्षा ली जाती है पितामह , पर निर्णय वर्तमान की परिस्थितियों के आधार पर लेना पड़ता है …. !*

*हर युग अपने तर्कों और अपनी आवश्यकता के आधार पर अपना नायक चुनता है …. !!*

*राम त्रेता युग के नायक थे , मेरे भाग में द्वापर आया था …. !*

*हम दोनों का निर्णय एक सा नहीं हो सकता पितामह …. !!”*

*” नहीं समझ पाया कृष्ण ! तनिक समझाओ तो …. !”*

 

*” राम और कृष्ण की परिस्थितियों में बहुत अंतर है पितामह …. !*

*राम के युग में खलनायक भी ‘ रावण ‘ जैसा शिवभक्त होता था …. !!*

*तब रावण जैसी नकारात्मक शक्ति के परिवार में भी विभीषण, मंदोदरी, माल्यावान जैसे सन्त हुआ करते थे ….. !* *तब बाली जैसे खलनायक के परिवार में भी तारा जैसी विदुषी स्त्रियाँ और* *अंगद जैसे सज्जन पुत्र होते थे …. !* *उस युग में खलनायक भी धर्म का ज्ञान रखता था …. !!*

*इसलिए राम ने उनके साथ कहीं छल नहीं किया …. ! किंतु मेरे युग के भाग में में कंस ,* *जरासन्ध , दुर्योधन , दुःशासन , शकुनी , जयद्रथ जैसे घोर पापी आये हैं …. !! उनकी समाप्ति के लिए हर छल उचित है* *पितामह …. ! पाप का अंत* *आवश्यक है पितामह , वह चाहे जिस विधि से हो …. !!”*

 

*”तो क्या तुम्हारे इन निर्णयों से गलत परम्पराएं नहीं प्रारम्भ होंगी केशव …. ?*

*क्या भविष्य तुम्हारे इन छलों का अनुशरण नहीं करेगा …. ?*

*और यदि करेगा तो क्या यह उचित होगा ….. ??”*

 

*ॐॐॐॐॐॐॐ*

 

*” भविष्य तो इससे भी अधिक नकारात्मक आ रहा है पितामह …. !*

 

*कलियुग में तो इतने से भी काम नहीं चलेगा …. !*

 

*वहाँ मनुष्य को कृष्ण से भी अधिक कठोर होना होगा …. नहीं तो धर्म समाप्त हो जाएगा …. !*

 

*जब क्रूर और अनैतिक शक्तियाँ सत्य एवं धर्म का समूल नाश करने के लिए आक्रमण कर रही हों, तो नैतिकता अर्थहीन हो जाती है पितामह* …. !

*तब महत्वपूर्ण होती है धर्म की विजय , केवल धर्म की विजय …. !*

 

*भविष्य को यह सीखना ही होगा पितामह* ….. !!”

 

*”क्या धर्म का भी नाश हो सकता है केशव …. ?*

*और यदि धर्म का नाश होना ही है , तो क्या मनुष्य इसे रोक सकता है ….. ?”*

 

*”सबकुछ ईश्वर के भरोसे छोड़ कर बैठना मूर्खता होती है पितामह …. !*

 

*ईश्वर स्वयं कुछ नहीं करता ….. !*केवल मार्ग दर्शन करता है*

 

*सब मनुष्य को ही स्वयं करना पड़ता है …. !*

*आप मुझे भी ईश्वर कहते हैं न …. !*

*तो बताइए न पितामह , मैंने स्वयं इस युद्घ में कुछ किया क्या ….. ?*

*सब पांडवों को ही करना पड़ा न …. ?*

*यही प्रकृति का संविधान है …. !*

*युद्ध के प्रथम दिन यही तो कहा था मैंने अर्जुन से …. ! यही परम सत्य है ….. !!”*

 

*भीष्म अब सन्तुष्ट लग रहे थे……उनकी आँखें धीरे-धीरे बन्द होने लगीं थी …. !*

*उन्होंने कहा – चलो कृष्ण ! यह इस धरा पर अंतिम रात्रि है …. कल सम्भवतः चले जाना हो … अपने इस अभागे भक्त पर कृपा करना कृष्ण …. !”*

 

*कृष्ण ने मन मे ही कुछ कहा और भीष्म को प्रणाम कर लौट चले , पर युद्धभूमि के उस डरावने अंधकार में भविष्य को जीवन का सबसे बड़ा सूत्र मिल चुका था* …. !

 

*जब अनैतिक और क्रूर शक्तियाँ सत्य और धर्म का विनाश करने के लिए आक्रमण कर रही हों, तो नैतिकता का पाठ आत्मघाती होता है ….।।*

 

*धर्मों रक्षति रक्षितः*

 

 

*।।जय श्री राम।।*

🌼🌸🙏🌺🌻

*।।जय माँ भारती।।*

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