आयुर्विज्ञान की भारतीय सोच को मिला है दुनिया का सबसे बड़ा चिकित्सा नोबल पुरस्कार

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चंडीगढ़:-14 जून :-आरके विक्रमा शर्मा/ राजेश पठानिया/ करण शर्मा:— सोशल मीडिया पर एक मैसेज खूब वायरल हो रहा है कि हिंदुस्तान के साथ-साथ समूची दुनिया में इसका प्रचार प्रसार देखते ही देखते लाखों से करोड़ों में होता जा रहा है। दरअसल जापान के प्रोफेसर तासुकु होंजो जो कि क्योटो यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हैं। और दूसरी और अमेरिका के टैक्सास यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जेम्स एलिसन ने दावा किया है कि एकादशी का व्रत करने से कैंसर जैसी घातक बीमारी कभी भी नहीं होती है। अगर कोई व्यक्ति 365 दिन में से कम से कम 20 दिन 10 घंटे बिना खाए पिए रहता है। उसे कैंसर होने की संभावना 90% तक कम हो जाती है। इतना बड़ा दावा और वादा करने वाले दोनों प्रोफेसरों ने आगे विस्तार पूर्वक बताया है कि जब शरीर भूखा होता है। तो शरीर उन सेल्स को ही खाने लग जाता है जिनसे कैंसर पैदा होता है। और हिंदुस्तान के आयुर्विज्ञान को यह बहुत बड़ी उपलब्धि और गौरव मिला है कि उक्त सोच को इस वर्ष का चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ है।

सनातन धर्म की वैज्ञानिकता का ध्वज पूरी दुनिया में फहराया है। भारतीय आयुर्विज्ञान दुनिया का सबसे सफल सबसे प्राचीनतम चिकित्सा प्रणाली तंत्र है। यह प्रणाली विकसित और आज तक विकासशील भी है। और चिकित्सा विज्ञान में आयुर्विज्ञान का कोई भी सानी नहीं है। भारतीय आयुर्विज्ञान चिकित्सा का लोहा जापान और अमेरिका जैसे विकसित देशों ने माना है। और अब पूरी दुनिया भारत के आयुर्विज्ञान का अवलोकन और अनुसरण कर रही है। कोरोनावायरस के दौरान तो पूरी दुनिया ने भारत के आयुर्विज्ञान अपनाया। और स्वस्थ दीर्घायु पाया। भारतीय आयुर्विज्ञान ने कोरोनावायरस के दौरान लोगों को जीवन दान देकर अपनी महत्ता पराकाष्ठा और बुनियादी अनिवार्यता का परचम फहराया है।

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