चंडीगढ़ :-5 जून :आरके विक्रमा शर्मा /करण शर्मा प्रस्तुति:– सच्ची लगन से काम करने वाले किसी बाह्य वातावरण अथवा परिस्थिति को काम में विघ्न डालने वाला बताकर कार्य से मुख मोड़ने का बहाना नहीं निकालते, बल्कि *घोरतम विपरीत परिस्थितियों में भी अंगद के चरण की तरह अपने कर्त्तव्य पर अटल रहते हैं।* उन्हें छोटी-मोटी परिस्थितियाँ काम से उखाड़ नहीं पातीं।
👉 अनेक लोग पीठ पीछे बुराई करने और सम्मुख आवभगत दिखलाने में बड़ा आनंद लेते हैं। समझते हैं कि संसार इतना मूर्ख है कि उनकी इस द्विविध नीति को समझ नहीं सकता। वे इस दोहरे व्यवहार पर भी समाज में बड़े ही शिष्ट एवं सभ्य समझे जाते हैं। *अपने को इस प्रकार बुद्धिमान् समझना बहुत बड़ी मूर्खता है।* एक तो दूसरे को प्रवंचित करना स्वयं ही आत्म-प्रवंचना है, फिर बैर प्रीति की तरह वास्तविकता तथा कृत्रिमता छिपी नहीं रह सकती।
👉 *गंदगी मनुष्य की आत्मा का ही नहीं, “व्यक्तित्व” का भी पतन कर देती है।* गंदगी से बचना, उसे छोड़ना और हर स्थान से उसे दूर करना, मनुष्य का सहज धर्म है। उसे अपने इस धर्म की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। क्या भौतिक और क्या आध्यात्मिक, किसी प्रकार का भी विकास करने के लिए जिन गुणों की आवश्यकता है, *स्वच्छता उनमें सर्वोपरि है।*
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