स्वार्थ से बने रिश्ते एक दिन जग जाहिर हो तमाशा बन जाते हैं –रितु वर्मा

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चंडीगढ़/पंचकूला:18 मई: आर के शर्मा शर्मा/ करण शर्मा अनिल शारदा/ हरीश शर्मा प्रस्तुति:– — रिश्ता चाहे कोई भी हो उसे निभाने के लिये पारदर्शिता होना बहुत जरूरी है । रिश्ता कहने मात्र से रिश्ता नही बना रह सकता , स्वार्थ से बने रिश्ते एक दिन जग जाहिर हो तमाशा बन जाते हैं । यह बात अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार ऑब्जर्वर्स की इंटरनेशनल ब्रेंडम्बेस्डर व चिराग कला अकेडमी की एक्सक्यूटिव निदेशिका रितु वर्मा ने दुनिया मे चल रहे परिवारों की समस्याओं को देखते हुए एक प्रेसविज्ञप्ति जारी करते हुए कही ।

उन्होंने कहा कि आजकल जिस प्रकार से रिश्तों की परिभाषा खत्म होती जा रही है। वो एक गम्भीर मोड़ ले रही है । आखिर क्यों हम रिश्तों में पड़ रही दरारों को दूर करने में विचार विमर्श नही करते । हर रिश्ते की अपनी एक परिभाषा होती है। जिसे समझने के लिये एक दूसरे के स्वभिमान को समझना बहुत जरूरी है । अगर हम अपने रिश्तों के स्वभिमान को ठेस पंहुचाना शुरू कर देते हैं। तो वो रिश्ते परिवार से बाहर निकल लोगो के बीच तमाशा बन कर रह जाते है ।

रितु वर्मा ने कहा कि नारी का स्वरूप बहुत ही अमूल्य व अपने परिवार द्वारा दिये संस्कारो व ससुराल की मर्यादा से बंधा होता है । जिसे निभाने में नारी ना जाने कितने कष्टों को सह उस पर अमल करते हुए परिवार के सँस्कार व ससुराल की मर्यादा को बनाये रखने मे अपने खुद की प्रतिभा को भी न्योछावर करने में भी पीछे नही हटती ।

उन्होंने कहा कि नारी आखिर तक अपने धर्म व जिम्मेदारी को बखूबी निभाती तो है। मगर जब बात उसके स्वभिमान पर आ जाये। तो उसकी हद जवाब देना शुरू कर देती है ।

उन्होंने कहा कि क्या हर रिश्ते को निभाने का दायित्व सिर्फ नारी का है। पुरुष का कार्य नारी के स्वभिमान को ठेस पहुचाना ही है ? आखिर कब तक नारी अपने पति की मर्यादा व अपने बच्चे के उज्ज्वल भविष्य को लेकर पिसती रहेगी ? ओर समाज मे पति पत्नी का रिश्ता व बच्चे का भविष्य उज्ववल करने का कार्य सिर्फ नारी का ही है ? आखिर कब तक इन रिश्तों को स्वार्थ का रिश्ता बना पुरुष और बच्चे नारी के स्वभिमान से खेलते रंहेगे । इन बातों पर समाज को समझना होगा कि जो रिश्ता टायरों पर ठीक ठाक चल रहा हो अगर एक टायर पेंचर हो जाये। तो यह रिश्ता कैसे आगे चल सकता है ।

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