यूरोप में मोदी, आपदा में अवसर की तलाश, दुनिया भर में मोदी हुए सबके लिए खास

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चंडीगढ़: 7 मई:- आरके विक्रमा शर्मा/करण शर्मा/ राजेश पठानिया/ अनिल शारदा प्रस्तुति:—*🌺पुष्परंजन के भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश यात्रा के संदर्भ में प्रासंगिक व्याख्या और महत्व सहित सटीक स्पष्टीकरण तथ्यगत उदाहरण अल्फा न्यूज़ इंडिया के माध्यम से लाखों सुधि पाठकों हेतु प्रेषित किए गए हैं।

मोदी जी ज़िम्मेदारी लेकर यूरोप से लौटे हैं। प्रधानमंत्री मोदी फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों अंतिम नेता थे, जिनसे बुधवार को बगलगीर हुए । पेरिस में मुलाक़ात के समय मैक्रों की सलाह थी कि यूक्रेन मामले में राष्ट्रपति पुतिन को समझाने के प्रयास पीएम मोदी करें।*

*🇮🇳तीन दिवसीय यात्रा में भारतीय पीएम का पहला पड़ाव बर्लिन था। 14 उभयपक्षीय करारों पर हस्ताक्षर के बाद जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने यूक्रेन संकट को लेकर रूस को भला-बुरा कहा, और पीएम मोदी से आशा व्यक्त की कि वे पुतिन को परिवर्तित कर सकते हैं। यही समवेत स्वर कोपेनहेगन में नॉर्डिक शिखर बैठक में उपस्थित नेताओं के थे।*

*🇮🇳इस पूरी यात्रा में पीएम मोदी बहुत नपे-तुले अंदाज़ में ‘सबकी सुनो, और अपनी करो’ की भूमिका में थे। पूरी सावधानी बरती कि पुतिन की आलोचना पर उनकी हामी किसी भी प्लेटफॉर्म पर न हो। बर्लिन में जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने कहा था कि हम रूस के विरुद्ध कड़े प्रतिबंधों में भारत का समर्थन चाहते हैं।*

*🇮🇳पीएम मोदी ने इसके बरक्स पुतिन के शब्दों को दोहराया, ‘हम मानते हैं कि इस युद्ध में कोई विजयी नहीं हो सकता।’ नरेंद्र मोदी ने रूस की निंदा से स्वयं को दूर रखा, पत्रकारों तक को सवाल पूछने की मनाही थी, जबकि आमतौर पर साझा प्रेस सम्मेलन में जर्मन मीडिया को किसी भी शासन प्रमुख से चार प्रश्नों को पूछने की अनुमति होती है।*

*🇮🇳जर्मनी-भारत के बीच हुए समझौतों में ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन कम करने, अक्षय ऊर्जा व हाइड्रोजन सहयोग को सुदृढ़ करने के वास्ते टास्क फोर्स का गठन, जैव विविधता को बचाने के साथ ही कृषि भूमि के इस्तेमाल को बेहतर करने का अहद दोनों नेताओं ने किया है। भारत और जर्मनी के बीच जो 14 उभयपक्षीय समझौते हुए, उसमें प्रवासी, परमाणु शोध, दोनों सरकारों के बीच समन्वय व संवाद जैसे विषय भी शामिल किये गये हैं।*

*🇮🇳जर्मनी ने अक्षय ऊर्जा, हाइड्रोजन और शेष विषयों में सहयोग के वास्ते 10 अरब यूरो की राशि आवंटित कर दी है। सबके बावजूद, बर्लिन के कूटनीतिक गलियारों में जिस गर्मजोशी की अपेक्षा हम कर रहे थे, वह संभवतः यूक्रेन की वजह से फीकी पड़ गई। ऐसे समय पीएम मोदी का जर्मनी जाना क्या सही था?*

*🇮🇳इस यात्रा में यूरोप को संदेश गया है कि भारत यूक्रेन मामले में निष्पक्ष भूमिका में है, और युद्ध का समापन चाहता है। मगर, इस संदेश के बरक्स दुश्वारियां बढ़ने का डर भी है।*

*🇮🇳यूरोपीय नेता चाहते थे कि पीएम मोदी, पुतिन की निंदा करें, रूसी पेट्रोल-गैस के साथ-साथ मिल्ट्री हार्डवेयर का बहिष्कार करें। ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’ वाला यूरोप क्या वास्तव में ऐसा कर पा रहा है? 27 सदस्यीय यूरोपीय संघ में शामिल हंगरी और स्लोवाकिया ने दो टूक कह दिया, ‘हमारे पास रूस से गैस-तेल लेने के सिवा और कोई विकल्प नहीं।’ ब्रसेल्स में एक आर्थिक थिंक टैंक है, ‘ब्रुएगल’। 2 मई, 2022 को ‘ब्रुएगल’ का निष्कर्ष था कि रूस से चरणबद्ध तरीके से तेल-गैस लेना यूरोप बिल्कुल बंद कर दे, यह संभव नहीं लगता।*

*🇮🇳2020 तक रूस कुल कच्चे तेल के निर्यात का 53 फीसद यूरोप भेजता रहा। तेल का बायकॉट तो शायद कर लें, क्योंकि उसकी सप्लाई के विकल्प टैंकर हैं। मगर, गैस का बहिष्कार कहां से संभव है? यूरोपीय नेता इस सवाल पर बगलें झांकते हैं। ‘ब्रुएगल’ का कहना है कि तेल-गैस का बहिष्कार करने का मतलब है, यूरोप दूसरी मंदी को दावत दे रहा है। एक और बात है, जाड़े से पहले गैस का इंतज़ाम नहीं हुआ तो ‘रूम वार्मिंग’ की मुश्किलें आन पड़ेंगी, जिससे लाखों जानों को ये जोखिम में डाल देंगे। तेल संकट से मुक़ाबले के लिए कार शेयरिंग व दिल्ली के ‘ऑड इवन’ फार्मूले पर भी यूरोप को सोचना होगा।*

*🇮🇳1973 में एक बार ओपेक देशों ने तेल पर प्रतिबंध आयद किया था। जर्मनी को विवश होकर ‘कार फ्री संडे’ की घोषणा करनी पड़ी, और तेल की राशनिंग भी कर दी थी। यूरोपीय नेता चाहते हैं कि तेल न मंगाकर रूस का बजट बिगाड़ दें। रूस का दबाव है कि तेल-गैस चाहिए तो डॉलर में नहीं, रूबल में पेमेंट करो। रूस की आय का 43 फीसद, गैस व तेल के निर्यात से प्राप्त होता है। पैरिस स्थित ‘आईईए’ के मुताबिक़, ‘रूस का 60 फीसद तेल ओएसईडी यूरोप को जाता है, और 20 प्रतिशत चीन आयात करता है। यूरोप के जो देश ओएसईडी के सदस्य हैं, क्या उनमें रूस तेल-गैस आयात को लेकर एका है? पेरिस स्थित ओएसईडी (आर्गेनाइजेशन फॉर कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट) की स्थापना 1961 में हुई थी, जिसके 38 सदस्य देश हैं। दूसरा पेंच ओपेक में फंसा है, उसके चोबदार सऊदी अरब ने साफ कर दिया है कि हम उत्पादन बढ़ायंेगे नहीं।’*

*‘🇮🇳आईईए’ के अनुसार, ‘रूस तेल उत्पादन के मामले में अमेरिका, सऊदी अरब के बाद तीसरे नंबर पर है। जनवरी, 2022 में रूस का टोटल तेल प्रोडक्शन 11.3 मिलियन बैरल प्रतिदिन (एमबीडी) का था। उस अवधि में अमेरिका का 17.6 एमबीडी और सऊदी अरब का 12 एमबीडी। ‘तेल की क़ीमतों का आकलन करने वालों की दो अलग-अलग राय हैं। एक समूह का कहना है कि कच्चे तेल की क़ीमत 120 से 130 डॉलर प्रति बैरल पर आ जाएगी। तेल बाज़ार पर नज़र रखने वाला दूसरा समूह कहता है कि रूस डिस्काउंट प्राइस पर तेल बेचेगा, तब क्रूड ऑयल की क़ीमतें जून, 2022 तक 100 डॉलर प्रति बैरल पर हो जाएंगी, और साल समाप्त होते-होते 60 डॉलर प्रति बैरल तक धड़ाम हो जाएंगी। पुतिन क्या ऐसा करेंगे?’*

*🇮🇳पीएम मोदी आपदा में अवसर कितना उठा पाते हैं? वह सबसे बड़ा सवाल है।*

*🇮🇳ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट आई है कि अंतर्राष्ट्रीय दबाव के बावज़ूद, भारत की पब्लिक और प्राइवेट रिफानरियां रूस से कच्चे तेल के आयात को लगातार बढ़ाये जा रही हैं। रूसी तेल कंपनियां भारत को कच्चा तेल सस्ते में दे रही हैं। 2021 में जो शिपमेंट हुआ था। उसके मुक़ाबले, इस साल 20 प्रतिशत अधिक है। यह मोदी चक्रव्यूह नीति का एक हिस्सा है, दूसरा है नार्डिक देशों से ऊर्जा सहयोग।*

*🇮🇳पइंडिया-नार्डिक समिट में पीएम मोदी फिनलैंड, नार्वे, स्वीडेन, डेनमार्क और आइसलैंड के शासन प्रमुखों से क्लीन एनर्जी, आर्कटिक रिसर्च, तकनीक के क्षेत्र में निवेश व हाईड्रोजन ऊर्जा तकनीक में बहुपक्षीय सहकार का संकल्प कर आये हैं। चीन फिलवक्त फ्यूल सेल इलेक्ट्रिक व्हीकल (ईसीईवी) उत्पादन में काफी आगे बढ़ चुका है, मोदी ने 2021 में ‘नेशनल हाइड्रोजन मिशन’ की घोषणा की थी। नार्डिक देश इस अभियान में भारत के साथ खड़े मिलते हैं, तो हाइड्रोजन ऊर्जा तकनीक के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन देखने को मिलेंगे।*

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