पंचकूला : 20 अप्रैल:- हरीश शर्मा+ करण शर्मा प्रस्तुति:—- हरियाणा विधानसभा के लगातार चार बार विधायक और प्रदेश के उपमुख्यमंत्री रह चुके भाई चन्द्रमोहन जी ने शिवालिक की पहाड़ियों में स्थित देश के ऐतिहासिक श्री कालेश्वर महादेव मठ कलेसर(यमुनानगर,हरियाणा) में पूर्व चेयरमैन श्री विजय बंसल,पूर्व कांग्रेस प्रत्याशी नलवा श्री रणधीर पणिहार,पूर्व पार्षद श्री संजीव राजू,श्री दीपांशु बंसल राष्ट्रीय कन्वीनर कांग्रेस छात्र इकाई एनएसयूआई आरटीआई सेल व अन्य लोगोों के साथ माथा टेका और पूजा अर्चना करके प्रदेशवासियों के सुख समृद्ध जीवन की मनोकामना की।मंदिर में गुरु शांतिदास व पंडितो द्वारा पूजा करवाई गई और मंदिर के इतिहास के बारे बताया गया।
भाई चंद्रमोहन ने बताया कि यह मंदिर यमुनानगर से 45 किलोमीटर की दूरी पर शिवालिक पहाड़ियों की तलहटी में यमुना नदी किनारे है। जोकि श्रद्धालुओं की अटूट श्रद्धा और आस्था का केंद्र है।मंदिर में स्वयंभू प्राचीन शिवलिंग है,4000 साल पुराना वट वृक्ष है,रामसेतु के निर्माण में लगे दो पत्थर जोकि 5 किलो से ज्यादा का भार होने के बावजूद पानी में नीचे नहीं जाते,मां पार्वती की पिंड मूर्ति दर्शन,हजारों साल प्राचीन मूर्तियां,जड़ी बूटी से तैयार शिव अमृत क्रोनिक डिजीज(किडनी,हार्ट,चर्म रोग,कैंसर) जैसी बीमारियों के उपचार में कारगर औषधि दी जाती है। यह मठ लोक समन्वय का प्रतीक माना जाता है।
भाई चंद्रमोहन ने कहा कि सभी लोग शिव अमृत का लाभ उठाएं। क्योंकि दूर दूर से लोग इस शिव अमृत के माध्यम से विभिन्न बीमारियों से राहत पा चुके हैं।
विजय बंसल ने बताया कि हरियाणा, हिमाचल प्रदेश व उत्तर प्रदेश के त्रिकोण पर स्थित श्री कालेश्वर महादेव मठ जो प्राचीनतम व धार्मिक ऐतिहासिक है। यहां पर खोदाई में निकले पत्थर शिलाओं से ज्ञात होता है कि प्राचीनकाल की संस्कृति में सांकेतिक भाषाओं का प्रयोग किया जाता था।पौराणिक मान्यता है कि इस मठ में स्वयं भगवान शिव स्वयंभू लिंग के रूप में विराजमान हैं। यह शिवलिंग बहुत अद्भुत है जिसके मूल में ब्रह्मा जी की नाभि, मध्य में विष्णु जी का चक्र और ऊपर भगवान शिव विराजमान हैं।
चंद्रमोहन ने बताया कि यहां पहाड़ पर भगवान शंकर और मां पार्वती की गुफाएं प्राचीनकाल से ही रहस्य बनी हुई थीं। ये गुफाएं पहाड़ पर ठीक उसी स्थिति में हैं जैसे कि यहां कालेश्वर महादेव मठ में भगवान शंकर व मां पार्वती के अलग अलग मंदिर बने हुए हैं। यहां पर स्थित पहाड़ियों को द्रोण घाटियां भी कहते हैं।मान्यता है कि गुरु द्रोणाचार्य ने पांडवों को शस्त्रों का ज्ञान दिया था। महाभारत काल से यहां का नाम काफी जुड़ा हुआ है। पांडवों को 12 वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास मिला, तो उन्होंने विराट नगरी में अज्ञात वर्ष बिताया था। यह विराट नगरी मठ से एक योजन दूर स्थित है, जिसे अब बहराल गांव के नाम से जाना जाता है।