कुंठा ग्रस्त दिमाग व दिल कभी सफलता का सेहरा नहीं सजाता:- ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता

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चंडीगढ़: 17 अप्रैल:- आर के विक्रमा शर्मा /करण शर्मा+ हरीश शर्मा प्रस्तुति:—जो अपनी जिन्दगी में कुछ करने में असफल रहते हैं, वे प्रायः आलोचक बन जाते हैं।दूसरों की कमियाँ देखना, निन्दा करना उनका स्वभाव बन जाता है। यहाँ तक कि ऐसे लोग अपनी कमियों -कमजोरियों का दोष भी दूसरों के सिर मढ़ देते हैं।सच यही है कि जीवन पथ पर चलने में जो असमर्थ हैं, वे राह के किनारे खड़े होकर औरों पर पत्थर फेंकने लगते हैं।दरअसल यह मन की रोगी दशा है। मानसिक ज्वर या मन की रोगग्रस्त स्थिति में ही मनुष्य ऐसे काम करता है।जब भी किसी की निन्दा का विचार मन में उठे तो जानना कि अब हम भी इसी रोग से पीड़ित हो रहे हैं।ध्यान रहे स्वस्थ मन वाला व्यक्ति कभी किसी की निन्दा में संलग्न नहीं होता।यहाँ तक कि जब दूसरे उसकी निन्दा कर रहे होते हैं, तो वह उन पर दया ही अनुभव करता है।शरीर से बीमार ही नहीं, मन से बीमार भी दया के पात्र हैं।लोकमान्य तिलक से किसी ने आश्चर्यचकित होते हुए पूछा, कई बार आपकी बहुत निन्दापूर्ण आलोचनाएँ होती हैं, लेकिन आप तो कभी विचलित नहीं होते। उत्तर में लोकमान्य मुस्कराए और बोले- निन्दा ही क्यों, कई बार लोग प्रशंसा भी करते हैं।ऐसा कहकर उन्होंने पूछने वाले की आँखों में गहराई से झाँका और बोले – यह है तो मेरी जिन्दगी का रहस्य, पर मैं आपको बता देता हूूँ।निन्दा करने वाले मुझे शैतान समझते हैं और प्रशंसक मुझे भगवान् का दर्जा देते हैं। लेकिन सच मैं जानता हूँ और वह सच यह है कि मैं न तो शैतान हूँ और न ही भगवान्। मैं तो एक इन्सान हूँ जिसमें थोड़ी कमियाँ है और थोड़ी अच्छाईयाँ और मैं अपनी कमियों को दूर करने एवं अच्छाईयों को बढ़ाने में लगा रहता हूँ।एक बात और भी है- लोकमान्य ने अपनी बात आगे बढ़ाई। जब अपनी जिन्दगी को मैं ही अभी ठीक से नहीं समझ पाया, तो भला दूसरे क्या समझेंगे। इसलिए जितनी झूठ उनकी निन्दा है, उतनी ही उनकी प्रशंसा है। इसलिए मैं उन दोनों बातों की परवाह न करके अपने आपको और अधिक सँवारने-सुधारने की कोशिश करता रहता हूँ।सुनने वाले व्यक्ति को इन बातों को सुनकर लोकमान्य तिलक के स्वस्थ मन का रहस्य समझ में आया, उसे अनुभव हुआ कि स्वस्थ मन वाला व्यक्ति न तो किसी की निन्दा करता है और न ही किसी निन्दा अथवा प्रशंसा से प्रभावित होता है।*

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