बहती नदियों में धातु के सिक्के समर्पित का पौराणिक वैज्ञानिक महत्व

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चंडीगढ़:- 12 मार्च:- आरके विक्रमा शर्मा/करण शर्मा+ अनिल शारदा प्रस्तुति:— नदी में सिक्के क्यों फेंके जाते हैं? जानिए 10 हिन्दू परंपराएं जिन को जानना सिर्फ सनातनी ही नहीं, बल्कि हर जनमानस के लिए बुनियादी तौर पर अनिवार्य है।

 

नदी में सिक्के डालने की परंपरा सालों से चली आ रही है। आखिर हम नदी में सिक्का क्यों डालते हैं?

इस धर्म परम्परा के पीछे एक बड़ी वैज्ञानिक महत्व छिपी हुई है। दरअसल, जिस समय नदी में सिक्का डालने की यह प्रथा या रिवाज शुरू हुआ था। यह परंपरा आदि अनादि समय से धर्म के आविर्भाव से ही प्रचलित है। उस समय में आज के स्टील के सिक्के की तरह नहीं बल्कि तांबे के सिक्के प्रचलन में थे। और तांबा जीवन और सेहत के लिए कितना फायदेमंद होता है। इस जीवन उपयोगी सत्य और वैज्ञानिक पहलू को तकरीबन हर कोई जानता है।

10 हिन्दू परंपराएं :—-

 

1. तांबे के सिक्के को नदी में डालने की प्रथा

 

पहले के ज़माने में पानी का मुख्य स्रोत नदियां ही हुआ करती थीं। लोग हर काम में नदियों के पानी का ही इस्तेमाल किया करते थे।

 

चूंकि तांबा पानी के प्यूरीफिकेशन करने में काम आता है और ये नदियों के प्रदूषित पानी को शुद्ध करने का एक बेहतर औजार भी रहा है इसलिए लोग जब भी नदी या किसी तालाब के पास से गुजरते थे, तो उसमें तांबे का सिक्का डाल दिया करते थे।

आज तांबे के सिक्के चलन में नहीं है, लेकिन फिर भी तब से चली आ रही इस प्रथा को लोग आज भी मान रहे हैं।

 

2. चूड़ियों का महत्व

 

पुराने समय मे ज्यादातर महिलाएं सोने-चांदी की चूड़ियां पहना करती थीं। माना जाता है कि सोने-चांदी के घर्षण से शरीर को इनके शक्तिशाली तत्व प्राप्त होते हैं जिससे महिलाओं को स्वास्थ्य लाभ मिलता है।

महिलाएं, पुरुषों से कमजोर होती हैं।

चूड़ियां उनके हाथों को मजबूत और शक्तिशाली बनाती हैं।

 

3. सिन्दूर लगाना

 

सिन्दूर हल्दी, नींबू और पारा के मिश्रण से तैयार किया जाता है। सिन्दूर महिला के रक्तचाप को नियंत्रित करने के अलावा उनकी सेक्सुअल ड्राइव को भी बढ़ाता है।

इसे उस जगह पर लगाया जाता है, जहां पर पिट्यूटरी ग्रंथि होती है, जहां पर सारे हार्मोन डेवलप होते हैं।

इसके अलावा सिन्दूर तनाव से भी महिलाओं को दूर रखता है।

 

4. बच्चों का कान छेदन

 

विज्ञान कहता है कि कर्णभेद से मस्तिष्क में रक्त का संचार समुचित प्रकार से होता है।

 

इससे बौद्धिक योग्यता बढ़ती है और बच्चों के चेहरे पर चमक आती है।

इसके कारण बच्चा बेहतर ज्ञान प्राप्त कर लेता है।

 

5. बड़ों के चरण-स्पर्श करना

 

बड़ों के चरण-स्पर्श करने से अपने से बड़ों की विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा शक्ति हमारे शरीर को नई ऊर्जा प्रदान कर ऊर्जावान, निरोगी और सकारात्मक विचारों से परिपूर्ण कर देती है।

 

सुखासन से पूरे शरीर में रक्त-संचार समान रूप से होने लगता है जिससे शरीर अधिक ऊर्जावान हो जाता है।

 

6. हाथों में मेहंदी लगाना

 

विज्ञान कहता है कि मेहंदी बहुत ठंडी होती है और इस लगाने से दिमाग ठंडा रहता है और तनाव भी कम होता है इसलिए शादी के दिन दुल्हनें मेहंदी लगाती हैं जिससे कि उन्हें शादी का तनाव न हो पाए।

 

7. सर पर चोटी रखना

 

सिर पर चोटी रखने की परंपरा को हिन्दुत्व की पहचान तक माना जाता है। असल में जिस स्थान पर शिखा यानी कि चोटी रखने की परंपरा है, वहां पर सिर के बीचोबीच सुषुम्ना नाड़ी का स्थान होता है।

सुषुम्ना नाड़ी इंसान के हर तरह के विकास में बड़ी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चोटी सुषुम्ना नाड़ी को हानिकारक प्रभावों से बचाती है।

 

8. भोजन के अंत में मिठाई खाना

 

जब हम कुछ मसालेदार भोजन खाते हैं तो हमारे शरीर में एसिड बनने लगता है जिससे हमारा खाना पचता है और यह एसिड ज्यादा न बने, इसके लिए आखिर में मिठाई खाई जाती है, जो पाचन प्रक्रिया शांत करती है।

 

9. तुलसी के पौधे की क्यों पूजा होती है ?

 

तुलसी में विद्यमान रसायन वस्तुत: उतने ही गुणकारी हैं जितना वर्णन शास्त्रों में किया गया है।

यह कीटनाशक है, कीटप्रतिकारक तथा खतरनाक जीवाणुनाशक है।

विशेषकर एनाफिलिज जाति के मच्छरों के विरुद्ध इसका कीटनाशी प्रभाव उल्लेखनीय है।

 

10. पीपल के वृक्ष की पूजा

 

पीपल की उपयोगिता और महत्ता वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दोनों कारणों से है।

यह वृक्ष अन्य वृक्षों की तुलना में वातावरण में ऑक्सीजन की अधिक से अधिक मात्रा में अभिवृद्धि करता है।

 

यह प्रदूषित वायु को स्वच्छ करता है और आस-पास के वातावरण में सात्विकता की वृद्धि भी करता है।

 

इसके संसर्ग में आते ही तन-मन स्वत: हर्षित और पुलकित हो जाता है। यही कारण है कि इस वृक्ष के नीचे ध्यान एवं मंत्र जप का विशेष महत्व है।

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