चंडीगढ़: 16 फरवरी:- अल्फा न्यूज़ इंडिया डेस्क प्रस्तुति:–मादा बिच्छू की मृत्यु बहुत ही दुखदाई रूप में होती है। मादा बिच्छू जब अपने बच्चों को जन्म देती है, तब ये सभी बच्चे जन्म लेते ही अपनी मांं की पीठ पर बैठ जाते हैं और अपनी भूख मिटाने हेतु तुरंत ही अपनी मां के शरीर को ही खाना प्रारंभ कर देते हैं, और तब तक खाते हैं, जब तक कि उसकी केवल अस्थियां ही शेष ना रह जाएं। वो तड़पती है और कराहती है, लेकिन ये बच्चे पीछा नहीं छोड़ते। और ये बच्चे उसे पलभर में ही नहीं मार देते, बल्कि कई दिनों तक मादा बिच्छू मौत से बदतर और असहनीय पीड़ा को झेलती हुई दम तोड़ती है। मादा बिच्छू की मौत होने के पश्चात् ही ये सभी बच्चे उसकी पीठ से नीचे उतरते हैं।
चौरासी लाख के कुचक्र में ऐसी असंख्य योनियां हैं, जिनकी स्थितियां अज्ञात हैं। कदाचित्, इसीलिए भवसागर को अगम और अपार कहा गया है। संतमत के मुताबिक यह भी मनुष्य योनि में किए गये कर्मों का ही भुगतान है। अर्थात्, इंसान इस मनुष्य जीवन में जो भी कर्म करेगा, नाना प्रकार की असंख्य योनियों में इन कर्मों के आधार पर ही उसे दुःख और सुख मिलते रहेंगे। यह तय है।
मनुष्य जन्म बड़ी ही मुश्किल से मिला है। ये जो गलियों में आवारा जानवर घूम रहे हैं न, इन्हें भी कभी मनुष्य जन्म मिला था और इनमें से भी कोई सेठ-साहूकार या कुछ और होंगे। इनके गुरु भी इन्हें नाम का भजन करने को कहते थे, तो ये भी हंस कर जवाब देते थे कि अभी हमारे पास समय नहीं है। वो मनुष्य जन्म हार गए, परमात्मा की भजन बंदगी नहीं की और पशु योनि में आ गए। अब देखो समय ही समय है, लेकिन अब गुरू नहीं है। बेचारे गली-गली आवारा घूमते हैं। कोई दुत्कारता है, तो कोई फटकारता है। कर्म बहुत रुलाते हैं और किसी को भी नहीं छोड़ते हैं।
अगर हम अब भी नहीं समझेंगे, तो कब समझेंगे?
परमात्मा की बंदगी कर्मफलों को भी धो डालती है। हमें चाहिए कि हम नियमित परमात्मा का भजन-सिमरन करते रहें और उसका शुक्रिया अदा करते रहें।